“बिहार में नीतीश कुमार ने एक बार फिर मारी पलटी”


क्रांति कुमार पाठक

बिहार की सियासत में उठी हलचल अब अपने चरम पर पहुंच गई है और सत्तारूढ़ जदयू- भाजपा गठबंधन टूट गया है। बिहार में पलटूराम से चर्चित जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार ने एक बार फिर भाजपा व राजग गठबंधन से नाता तोड़ कर राजद के साथ महागठबंधन की सरकार बनाने का फैसला ले लिया है। ज्ञात हो कि वर्ष 2013 में भी नीतीश कुमार ने भाजपा से धोखा कर राजद के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। फिर 2017 में नीतीश कुमार ने राजद का साथ छोड़कर भाजपा के साथ चले गए थे। इसी कारण राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव अक्सर नीतीश कुमार को पल्टूराम कह कर संबोधित किया करते थे।
दरअसल बिहार में आरसीपी सिंह की जदयू से विदाई के बाद से ही बिहार की सियासत में उबाल देखने को मिल रहा था। राजनीतिक गलियारों में सियासी उठापटक की चर्चा काफी तेज हो गई थी, कयासों का दौर जारी था। चर्चाएं यहां तक पहुंच गई थी कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा को छोड़कर एक बार फिर से राजद के साथ आ रहे हैं और भाजपा को बिहार की सत्ता से बेदखल करने का फैसला ले लिया गया है। बीते 7 अगस्त को रात के अंधेरे में नीतीश कुमार और राजद विधायक दल के नेता तेजस्वी यादव की मीटिंग और उसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मोबाइल पर हुई लंबी बातचीत ने भी परदे के पीछे से बिहार में लंबे समय से चल रहे सियासी ड्रामे को क्लाइमेक्स पर पहुंचा दिया और अंततः नीतीश कुमार ने एक बार फिर राजनीतिक पलटी मारने का फैसला कर लिया।
दरअसल, यह चर्चा काफी दिनों से जोरों पर थीं कि भाजपा के साथ लंबे वक्त से असहज महसूस कर रहे नीतीश कुमार अब इस रिश्ते को तोड़ कर बिहार में राजद-कांग्रेस और वामपंथियों के साथ मिलकर एक नया गठबंधन सरकार बनाने की तैयारी में हैं। इस आशंका को बल तब और मिला जब नीतीश कुमार ने 9 अगस्त को जदयू के सभी सांसदों और विधायकों को पटना तलब किया। फिर लगे हाथ राजद, कांग्रेस और सीपीआई एमएल ने भी अपने विधायक दल की बैठक बुलाई। और तो और जीतन राम मांझी की पार्टी ने भी अपने सभी विधायकों को पटना तलब कर लिया। इस खुलासे के बाद से ही पटना में यह अटकलबाजी लगने लगी थी कि बिहार में भाजपा-जदयू गठबंधन के बीच कभी भी तलाक हो सकता है और नीतीश कुमार महागठबंधन में फिर से शामिल हो सकते हैं।
पिछले कुछ दिनों से बिहार के सियासी गलियारों में इस तरह की चर्चा आम हो चली थी। हालांकि जदयू और राजद के नेता खुलकर इन रिश्तों को लेकर साफ-साफ बोलने से बच रहे थे। लेकिन अंदरखाने जदयू और राजद नेताओं के बीच सरकार गठन को लेकर बातचीत चल रही थी। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक दो-तीन दिन पहले ही नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह की रात के अंधेरे में क‌ई बैठकें हो चुकी थीं। इसी तरह न‌ए गठबंधन को लेकर नीतीश -सोनिया के बीच भी पहले से ही संवाद चल रही थी। जिसमें सोनिया गांधी ने बिहार में न‌ए राजनीतिक गठबंधन के लिए नीतीश कुमार को समर्थन देने के लिए पूरी तरह से आश्वस्त किया था। इसके साथ ही केंद्र की राजनीति और विपक्षी एकता को लेकर भी दोनों के बीच बातचीत हुई थी। बताया जा रहा था कि भाजपा की मौजूदा कार्यशैली पर भी दोनों नेताओं के बीच संवाद हो रही थी। संभवतः इसी बातचीत के बाद राजद-कांग्रेस की बीच नजदीकियां बढ़ने लगी थी और 7अगस्त को राजद की ओर से बुलाई ग‌ए प्रतिरोध मार्च में कांग्रेस शामिल हुई थी।
दरअसल, नीतीश कुमार और भाजपा के बीच कई मुद्दों को लेकर लंबे समय से मतभेद चल रहा था। साथ ही सहयोगी दलों के साथ हाल के दिनों में केंद्र सरकार के बर्ताव से नीतीश कुमार को भाजपा पर भरोसा खत्म सा हो गया था। जदयू के सूत्र बताते हैं कि ‘मोदी-शाह’ की मौजूदा ‘स्टाइल आफ पाॅलिटिक्स’ को देखते हुए नीतीश कुमार को ऐसी आशंका प्रबल लग रही थी कि देर-सबेर भाजपा उन्हें भी राजनीतिक रूप से निपटा देगी। नीतीश कुमार के पास इस बात पक्का प्रमाण था कि आरसीपी सिंह के जरिए भाजपा उन्हें कभी भी बिहार की सत्ता से सत्ताच्युत कर सकती थी। इसी कारण नीतीश ने ही आपरेशन आरसीपी कर भाजपा के प्लान को फिलहाल फेल कर दिया। इस आशंका के कारण ही लंबे अरसे से नीतीश कुमार जहां भाजपा से खफा थे और दूरी बना रखी थी। वहीं इसी आशंका के कारण नीतीश ने कुछ महीने पहले ही तेजस्वी यादव से नजदीकी भी बढ़ा ली थी और इफ्तार पार्टी में राबड़ी देवी के घर पैदल ही जाकर भविष्य के राजनीतिक समीकरण का संकेत भी दे दिया था। अंधेरी रात में दोनों नेताओं के बीच जो बातचीत हुई है उसमें नए राजनीतिक समीकरण का फार्मूला तय होने की बात कही जा रही थी।वह बात आज सच साबित हो गई है। ऐसा कहा जा रहा है कि भाजपा नेतृत्व को भी नीतीश-तेजस्वी के गुप्त मिशन की भनक लग चुकी थी। यही वजह थी कि भाजपा ने भी जहां 8 अगस्त को बिहार के क‌ई वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली तलब किया, वहीं भाजपा के चाणक्य और देश के गृहमंत्री अमित शाह ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फोन पर बातचीत कर नीतीश को मनाने की कोशिश की थी। लेकिन बात नहीं बन सकी।
हालांकि, कहा तो यह भी जा रहा था कि नीतीश कुमार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बिहार की राजनीति में बढ़ते दखल से काफी परेशान थे और असहज महसूस कर रहे थे। फिर एक चर्चा यह भी है कि भाजपा ने उन्हें उपराष्ट्रपति नहीं बनाया, जबकि नीतीश कुमार उपराष्ट्रपति बनना चाह रहे थे। इससे भी वह भाजपा से नाराज थे। उनकी यह नाराजगी उस समय भी देखने को मिली जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आयोजित तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के लिए रात्रिभोज और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में नीतीश कुमार शामिल नहीं हुए थे। फिर नीति आयोग की बैठक में भी नीतीश कुमार ने शामिल नहीं होने का फैसला किया था। इस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी वाले चार कार्यक्रमों से नीतीश कुमार लगातार दूर रहे। इतना ही नहीं 17 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बुलाई गई मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी नीतीश कुमार शामिल नहीं हुए थे। इसे भी नीतीश कुमार की ओर से नाराजगी के संकेतों के तौर पर देखा जा रहा था। फिर नीतीश कुमार इस बात से भी नाराज थे कि बिहार भाजपा के नेताओं द्वारा अक्सर उन पर अटैक किया जा रहा था और भाजपा की केंद्रीय नेतृत्व इसमें कोई दखल नहीं दे रही थी। फिर नीतीश कुमार इस बात से भी नाराज थे कि उनकी सलाह के बिना ही आरसीपी सिंह को भाजपा नेतृत्व ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया था। मुख्यमंत्री आवास पर जदयू विधायकों व सांसदों की हुई बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा पर जदयू को खत्म करने की साजिश और उन्हें अपमानित करने का आरोप मढ़ते हुए भाजपा से गठबंधन खत्म करने की घोषणा कर दी।
इस तरह भाजपा-जदयू गठबंधन टूटने और राजद-कांग्रेस और वामपंथियों के साथ नीतीश कुमार के नए गठबंधन की भनक लगने के साथ ही दिल्ली से पटना तक सियासी माहौल गरमा गया था। जिसका पटाक्षेप नीतीश कुमार के द्वारा राजग गठबंधन से अलग हो महागठबंधन में शामिल होने के फैसले के रूप में हुआ और बिहार को अंततः एक नई सरकार, महागठबंधन की सरकार के रूप में मिलेगा। जिसमें सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री तो नीतीश कुमार ही होंगे। किन्तु इस सरकार में कोई उपमुख्यमंत्री नहीं होगा। गृहमंत्री तेजस्वी यादव होंगे तो विधानसभा अध्यक्ष भी राजद से होगा। कहा तो यह भी जा रहा है वर्ष 2024 में नीतीश कुमार विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के चेहरा होंगे। ऐसे में शुरुआती आठ-दस महीने नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रह कर बिहार की जिम्मेदारी तेजस्वी यादव को सौंप कर लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट जाएंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Open chat
1
Hello
Can we help you?