क्रांति कुमार पाठक
बिहार की सियासत में आरसीपी सिंह के जदयू से इस्तीफे के बाद से तेजी से हलचल राजनीतिक घटनाक्रम बदल रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी से फोन पर लंबी बातचीत की है। हालांकि, इस बात की जानकारी नहीं मिल पाई है कि दोनों के बीच किस मुद्दे को लेकर बात हुई है। लेकिन नीतीश कुमार की सोनिया गांधी से बातचीत के बाद बिहार प्रदेश कांग्रेस ने आज ही अपने सभी विधायकों को तलब किया है। कांग्रेस के बाद जीतन राम मांझी की पार्टी ने भी अपने सभी विधायकों को पटना बुला लिया है। बिहार कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन झा ने कहा कि आज राज्य और देश में स्थितियां ऐसी बन गई है जिससे लगने लगा है कि भाजपा पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गई है। मदन मोहन झा ने कहा कि बिहार में राजनीतिक घटना चक्र जितना तेजी से बदल रहा है वैसे में कांग्रेस भी चाहती है कि वह अपने विधायकों से सलाह मशविरा कर ले।
इससे पहले बिहार में बदलते सियासी समीकरण के बीच जदयू और राजद दोनों ने विधानमंडल की बैठक बुलाई है। खबर है कि 10 अगस्त की सुबह 9 बजे राजद विधानमंडल दल की बैठक राबड़ी देवी के आवास पर होगी, वहीं जदयू विधानमंडल दल की बैठक राजद की बैठक के बाद 11 बजे होगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जदयू के सभी सांसदो की भी एक बैठक बुलाई है, जिसमें जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह भी मौजूद रहेंगे। इस बैठक का विषय अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इस बैठक में भाजपा के साथ गठबंधन के भविष्य को लेकर चर्चा होने की आशंका व्यक्त कर रहे हैं। इस बीच भाजपा ने भी अपने सभी बड़े नेताओं को दिल्ली तलब किया है। इस तरह सत्तारूढ़ गठबंधन राजग के दो प्रमुख घटक दल भाजपा -जदयू के रिश्तों पर एक फिर से आशंकाओं के बादल मंडराने लगे हैं और भाजपा-जदयू के बीच सबकुछ ठीक नहीं लग रहा है। इस आशंका को उस वक्त और बल मिला जब 8 अगस्त को नई दिल्ली में आयोजित नीति आयोग की बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शामिल नहीं हुए। हालांकि ऐसा कहा जा रहा है कि इस बैठक में वे बिहार के उपमुख्यमंत्री को उस बैठक में भेजना चाहते थे। लेकिन उनको बताया गया कि इस बैठक में सिर्फ मुख्यमंत्री ही भाग ले सकते हैं। वैसे इस संबंध में यह भी कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नीति आयोग की रैंकिंग से बेहद नाराज रहते हैं, क्योंकि नीति आयोग की रैंकिंग में बिहार को विकसित राज्यों में सबसे हमेशा नीचे रखा जाता है और इसे लेकर नीतीश कुमार ने कई बार अपनी नाराजगी भी जताई है।
इस तरह विगत एक महीने में लगातार दूसरी बार ऐसा हुआ कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मीटिंग में शामिल नहीं शामिल हुए हैं। क्योंकि पिछले महीने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आयोजित रात्रिभोज और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में भी शामिल नहीं हुए थे। इसके अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बुलाई गई मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी नीतीश कुमार शामिल नहीं हुए थे। नीतीश कुमार ने उस बैठक में भी राज्य के उपमुख्यमंत्री को भेजा था।
देश में 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं और उसके एक साल बाद बिहार में विधानसभा चुनाव होंगे। पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पटना में भाजपा के सम्मेलन के दौरान स्पष्ट कर दिया कि आगामी दोनों चुनाव जदयू के साथ मिलकर लड़े जाएंगे। लेकिन इस बाबत जदयू नेताओं से पूछने पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया। इस बाबत जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि हम भाजपा से गठबंधन की बात को कहां नकार रहे हैं। मगर अभी इस पर बात करने का कोई मतलब है। जब चुनाव आएंगे तब देखा जाएगा। उस समय के स्थिति-परिस्थिति को देखता फैसला किया जाएगा। वहीं जदयू के वरिष्ठ नेता और बिहार के शिक्षा मंत्री विजय चौधरी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में जदयू के शामिल होने की बात को सिरे से नकारते हुए कहा कि उनकी पार्टी केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होगी। उनका कहना था कि नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में जदयू कोटे से किसी को मंत्री नहीं बनाया जाएगा। इस बारे में नीतीश कुमार पहले ही ऐलान कर चुके हैं और पार्टी अब भी उसी स्टैंड पर कायम है। उल्लेखनीय है कि आरसीपी सिंह केंद्र में जदयू कोटे से एकमात्र मंत्री थे।
फिर जदयू के शीर्ष नेताओं ने कहा है कि पार्टी का मकसद राज्य में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में वापसी करना है। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कुछ मीडिया संस्थानों से कुछ दिनों पहले ही कहा था कि उनकी पार्टी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी होने के दर्जे को फिर से पाने की दिशा में कार्यरत है। उन्होंने कहा था कि पार्टी वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में मिली हार को पीछे छोड़ देगी, जिसकी वजह उन्होंने एक साजिश को बताया था। ज्ञात हो कि उस वक्त चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने जदयू के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिसमें से कई उम्मीदवार भाजपा के बागी थे और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू की विधायकों की संख्या पांच साल पहले के 71 से घटकर 43 रह गई थी।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि राजग गठबंधन में अंदरखाने बड़ी मुसीबत उभर रही है। तिवारी का मानना है कि अपनी समाजवादी पृष्ठभूमि के कारण नीतीश कुमार भाजपा के हिंदूत्व एजेंडे के साथ खड़े होने में सक्षम नहीं होंगे। यह पूछे जाने पर कि क्या जदयू और राजद के बीच फिर से समायोजन की संभावना है, इस पर राजद प्रवक्ता ने यह कहकर सस्पेंस को बढ़ा दिया कि मैं केवल इतना कह सकता हूं कि बिहार को समाजवादी सरकार की जरूरत है और इसे यह जल्द ही मिलेगी। वहीं राजद सूत्रों ने बड़ा दावा किया है कि बिहार की तस्वीर बदलने की सूरत में अगर नया गठबंधन बनता है तो नीतीश कुमार के साथ 150 से ज्यादा विधायकों का समर्थन हो सकता है। ऐसी स्थिति में बिहार के सियासी गलियारों में यह कयास तेज हो गया है कि राज्य में 15 अगस्त से पहले नई सियासी तस्वीर देखने को मिल सकती है।