वाराणसी । चराचर सृष्टि के प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की उपासना का महापर्व लोक आस्था में गहराई तक गुंथा छठ पूजा का चार दिवसीय अनुष्ठान सोमवार से नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया है। व्रती महिलाओं ने प्रात:काल से ही स्नान-ध्यान कर व्रत का आरंभ किया। शुद्ध सात्विक बिना लहसुन-प्याज की लौकी और चना की सब्जी व दाल आदि खाकर व्रत का अनुष्ठान आरंभ हुआ। अब मंगलवार को दूसरे दिन भी व्रती महिलाएं पूरे दिन व्रत रखकर शाम को लोहंडा-खरना करेंगी। यानि पूरे दिन के व्रत के बाद शाम को बखीर-रोटी खाएंगी। कल यानी बुधवार को भगवान भास्कर को सायंकालीन व गुरुवार को प्रात:कालीन अर्घ्य दिए जाएंगे। व्रती महिलाएं अपने क्षेत्र के विभिन्न नदियों व तालाबों के घाटों पर भुवन भास्कर भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करेंगी। इसके लिए गंगा, वरुणा और असि के अलावा सूरजकुंड समेत तमाम कुंंडों और तालाबों पर वेदियां बनकर तैयार हैं।
सूर्य को अर्घ्य देने से नष्ट होते हैं कई जन्मों के पाप : बीएचयू ज्योतिष विभाग के प्रो. विनय कुमार पांडेय बताते हैं कि भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही यह निरोगी काया एवं सभी मनोरथ को पूर्ण करने वाला होता है। उन्होंने कहा कि भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के दौरान व्रती पीतल व तांबे के पात्रों का प्रयोग करें। इसके अलावा किसी प्रकार के बर्तनों का प्रयोग करना वर्जित माना गया है। पीतल के पात्रों से दूध का अर्घ्य देना सही है, वहीं तांबे के पात्र में जल से अर्घ्य देना चाहिए।
व्रती पर बनी रहती षष्ठी माता की कृपा : छठ व्रत करने वालों पर भगवान सूर्य और षष्ठी माता की कृपा बनी रहती है। मान्यता है कि नहाय-खाय से लेकर पारण तक व्रती पर भगवान सूर्य अपना आशीष प्रदान करते हैं। श्रद्धा पूर्वक व्रत करने वाले व्रती का आशीष लेने के लिए अपने व्यवहार और आचरण को शुद्ध बनाए रखने की जरूरत है। उन्होंने स्कंद पुराण के हवाले से कहा कि सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य प्राप्ति के साथ सौभाग्य एवं संतान की कुशलता के लिए रखा जाता है।
छठ व्रत के दिन व समय
नहाय-खाय – 8 नवंबर, दिन सोमवार
खरना – 9 नवंबर, दिन मंगलवार
सायंकालीन अर्घ्य – 10 नवंबर (बुधवार), शाम 5.25 बजे तक
प्रात:कालीन अर्घ्य व पारण – 11 नवंबर (शनिवार), सुबह 6.35 से आरंभ
पूजन सामग्री का है महत्व : भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ महापर्व छठ में प्रयोग होने वाले सामग्रियों की अपनी विशेषता और महत्ता है। भगवान सूर्य को अर्घ्य देने एवं पूजन सामग्री रखने के लिए बांस से बने सूप का प्रयोग किया जाता है। सूर्य से वंश में वृद्धि होने के साथ उसकी रक्षा के लिए बांस से बनी सामग्री का प्रयोग पूजन के दौरान किया जाता है। वहीं अर्घ्य के दौरान ईख को रख कर पूजा की जाती है, जो आरोग्यता का सूचक माना जाता है। प्रसाद के रूप में आटे से बने ठेकुआ समृद्धि के द्योतक हैं तो मौसमी फल मनोकामना प्राप्ति के सूचक माने जाते हैं।