“छतों पर सस्ती क्वालिटी के प्लास्टिक की टंकियां कैंसर, अल्सर के साथ ही किडनी फेल कर रही है: डॉ मृत्युंजय”


कांति कुमार पाठक
आज शहरों क्या देहातों में भी लोगों के घरों की छतों पर पानी की आपूर्ति के लिए प्लास्टिक की रंग बिरंगी टंकियां आसानी से देखने को मिल जाती हैं। लेकिन कभी आपने यह सोचा है यह टंकियां खासकर जो सस्ती या घटिया क्वालिटी की प्लास्टिक की बनी होती है, हमारे स्वास्थ्य के लिए कितना खतरनाक व जानलेवा है। बेगूसराय (बिहार) के युवा एवं प्रसिद्ध फिजिशियन डॉ मृत्युंजय कुमार कहते हैं कि भीषण गर्मी के मौसम में या फिर बेहद ठंड के मौसम में सस्ती या घटिया क्वालिटी की प्लास्टिक की बनी टंकियों से ‘लेड’ नामक रसायन (केमिकल) का रिसाव होता है, जो कि पानी के साथ मिश्रित हो जाता है। यह रसायन मानव स्वास्थ्य के लिए धीमे जहर के समान है या यूं कहें लोगों के स्वास्थ्य के लिए यह धीमे जहर की तरह साबित होता है। डॉ मृत्युंजय बताते हैं कि लंबे समय तक इन टंकियों के पानी का उपयोग करते रहने के बाद व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है। इससे सबसे पहले व्यक्ति के मस्तिष्क में झुनझुनाहट, हाथों में कंपन और भूलने की जैसी बीमारियों से शुरुआत होती है। आगे चलकर इससे पेट के कैंसर, आंतों का कैंसर, अल्सर, किडनी फेल होने से लेकर बड़ी-छोटी आंतों में संक्रमण तक हो सकता है। ग्लोकल और नवलोक हाॅस्पीटल, बेगूसराय में सेवा देने वाले प्रसिद्ध जेनरल फिजिशियन व चर्मरोग विशेषज्ञ डॉ आनन्द कुमार वत्स के मुताबिक, वैसे तो पेट व ब्लड कैंसर होने के तो क‌ई कारण होते हैं। लेकिन प्लास्टिक की वस्तुओं में खाद्य या पेय पदार्थों के अत्यधिक उपयोग से भी यह रोग होने की प्रबल संभावनाएं होती हैं। डॉ आनन्द कुमार वत्स ने उदहारण दिया कि बेहतर क्वालिटी की प्लास्टिक की टंकियों से केमिकल रिसाव होने की संभावना न के बराबर होती हैं। लेकिन सस्ती या घटिया क्वालिटी का प्लास्टिक होने की स्थिति में टंकियों में जमा पानी 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान में उबलने लगता है, ऐसे में ‘लेड’ नामक रसायन (केमिकल) का रिसाव होने लगता है। इसी तरह से माइनस एक से कम तापमान होने पर भी इस रसायन का रिसाव होने लगता है। इसी तरह प्लास्टिक की पालिथिन, सिंगल यूज डिस्पोजल में चाय, सब्जी, दूध या फिर अन्य अधिक गरम-ठंडा खाद्य या पेय पदार्थों के लिए उपयोग करेंगे तो उसमें भी रसायन (केमिकल) रिसकर मिश्रित हो सकते हैं। फिर खाद्य या पेय पदार्थों के साथ वह आपके ब्लड में मिल जा सकते हैं। इससे हार्ट व क‌ई दूसरी बीमारियां यहां तक कि नर्व में रुकावट तक आने से हार्ट तक फेल हो सकता है। इसी तरह पेट व ब्लड कैंसर तक होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसी तरह जय मंगला क्लीनिक, बेगूसराय के युवा फिजिशियन व डायबिटीज विशेषज्ञ डॉ राहुल कुमार का कहना है कि प्लास्टिक की टंकियों के पानी के उपयोग के विकल्प हो सकते हैं। बेहतर गुणवत्ता वाले कंपनियों की पानी की टंकियों का ही उपयोग हमें करना चाहिए। विकल्प यह भी हो सकता है कि सीमेंट या फिर अन्य सेहत के लिए फायदेमंद धातु से टंकियों का निर्माण किया जा सकता है। प्लास्टिक की बोतल के बजाय घड़े का पानी का उपयोग करें।
कैंसर से बचाव के लिए जीवन शैली में बदलाव करना होगा। जैसे लोगों को नियमित जल्दी उठें और जल्दी सोएं। खाने में रेशेदार सब्जियां, अंकुरित अनाज, मोटा पिसा हुआ व एक से अधिक अनाज वाले आटे का उपयोग करना चाहिए। इसी तरह डॉ आंनद कुमार वत्स कहते हैं कि पानी की प्लास्टिक की टंकियों के अंदर कोटिंग होती है। इसलिए केमिकल (रसायन) के रिसाव की संभावनाएं अधिक रहती हैं। पानी या अन्य पेय पदार्थों वाली प्लास्टिक की बोतलों को फ्रिज के बजाय फ्रिजर में रखेंगे तो लेड नामक रसायन रिलीज होने लगता है। क्योंकि फ्रिज का तापमान औसत होता है जबकि फ्रिजर का तापमान माइनस में ही होता है। इसी तरह से अधिक गर्म तापमान में भी बोतलें रखेंगे तब भी यही प्रक्रिया होगी। इसलिए सिंगल यूज प्लास्टिक पर जो प्रतिबंध लगा है वह बिल्कुल सही है।

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