धनखड़ होंगे उपराष्ट्रपति : सख्त तेवर, मुखर रुख अब उच्च सदन में भी विपक्ष को सोच समझ कर करना होगा हंगामा

 

कोलकाता । पश्चिम बंगाल के वर्तमान राज्यपाल जगदीप धनखड़ अब देश के उपराष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। एक दिन पहले ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उनके नाम की घोषणा करते हुए कहा कि धनखड़ किसान के बेटे हैं और वरिष्ठ कानून विद भी।
वैसे तो पूर्व में वह केंद्र में मंत्री और सांसद भी रह चुके हैं लेकिन उनके जीवन का सबसे चर्चित समय पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में उनका कार्यकाल रहा है। 22 जुलाई 2019 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया था। अमूमन राजभवन की यह परंपरा रही थी कि राज्यपाल रबड़ स्टांप की तरह राज्य सरकार द्वारा भेजी गई फाइलों पर मुहर लगाते थे और स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस जैसे कार्यक्रमों में शिरकत करते थे। गाहे-बगाहे किसी समाजिक कार्यक्रम में गवर्नर की उपस्थिति के अलावा राज्यपाल की गतिविधियां राज भवन की चारदीवारी के अंदर ही सीमित रहती थीं। लेकिन बंगाल का राज्यपाल नियुक्त होते ही जगदीप धनखड़ ने इस रिति को पूरी तरह से बदल दिया। जब राज्यपाल बनकर आए तो पूरे देश में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर और नागरिकता अधिनियम पर विवाद चल रहा था। बंगाल भी हिंसा की आग में जल रहा था और जगह-जगह विरोध प्रदर्शन और हिंसक आंदोलनों को संभालने के बजाय ममता बनर्जी केंद्र पर हमलावर थीं। तब पहली बार राज्यपाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया और सीधे जनता से संवाद करते हुए नागरिकता अधिनियम का समर्थन किया। उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सार्वजनिक तौर पर नसीहत दी और कहा कि बंगाल की कानून व्यवस्था को संभालने आप विफल हैं लेकिन हिंसक आंदोलनों को हवा देने का काम कर रही हैं। राज्यपाल का यह बयान सुर्खियों में छा गया। अमूमन राजभवन के दायरे में सीमित रहने वाले राज्यपालों की लीक से हटकर जब धनखड़ ने ऐसी बातें कीं तो सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस को नागवार गुजरी। तो वहीं दूसरी ओर राज्य के लोगों को यह लगने लगा कि इस बार राजभवन में जो शख्स आए हैं वह राजसी ठाठ बाट में सीमित रहने वाले नहीं बल्कि हमारे आपके बीच उठने बैठने बातें सुनने और हमारे लिए खड़े होने वाले हैं। थोड़े दिनों बाद सितंबर के आखिरी सप्ताह में जादवपुर विश्वविद्यालय में वामपंथी छात्रों ने उग्र प्रदर्शन शुरू कर दिया। कुलपति को कमरे के अंदर बंद कर दिया। उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो जब पहुंचे तो उन्हें भी घेर लिया और तमाम केंद्रीय सुरक्षा के बावजूद उन्हें बाहर नहीं निकलने दे रहे थे। तब भी 70 वर्षीय राज्यपाल राजभवन में आराम फरमाने के बताए बिना देरी किए और बिना संभावित अपमान की परवाह किए जादवपुर विश्वविद्यालय परिसर में जा पहुंचे। छात्रों के उग्र हिंसक प्रदर्शन और तमाम आरोपों के बावजूद उन्होंने केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो को अपनी गाड़ी में बैठाया और वापस ले आए। बंगाल के लोगों को इस बात का विश्वास पक्का हो गया कि यह राज्यपाल राजभवन में शांत बैठने वाले नहीं।
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कोरोना मृतकों के शवों से बर्बरता के बाद ममता सरकार के खिलाफ खोल दिया था मोर्चा
– धीरे-धीरे समय का पहिया घूमा और पूरी दुनिया में कोरोनावायरस की दहशत फैल गई। देश के बाकी हिस्सों के साथ बंगाल में भी बेतहाशा मौतें होने लगीं और यहां मानव शवों के साथ बर्बरता का मामला सुर्खियों में छा गया। एक वीडियो सामने आया था जिसमें नगर निगम का कर्मचारी कोरोना से मरने वालों को लोहे की रॉड से जानवरों की तरह घसीटता हुआ गाड़ी में डाल रहा था। इस मामले पर राज्यपाल कहां चुप बैठने वाले थे। उन्होंने ममता सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। क्योंकि ममता बनर्जी राज्य की मुख्यमंत्री होने के साथ गृह और स्वास्थ्य मंत्री भी हैं इसलिए राज्य में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था को और मानव शवों से इस तरह की बर्बरता को लेकर उन्होंने सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया तक में कई बयान दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर सीधे तौर पर हमला बोलते हुए उन्हें लोगों से माफी मांगने की नसीहत दी। उसी समय 16 जून 2019 को हिन्दुस्थान समाचार को दिए विशेष साक्षात्कार में उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए दावा किया था कि पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के सांसदों, विधायकों और मंत्रियों के सोशल मीडिया अकाउंट एक प्राइवेट एजेंसी (प्रशांत किशोर की संस्था आईपैक) चलाती है और वहीं से राज्यपाल धनखड़ पर हमले बोले जाते हैं। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस राज्यपाल पर भाजपा की भाषा बोलने का आरोप लगाती रही लेकिन हर बार जब भी बोलने की जरूरत महसूस हुई राज्यपाल ने बोला और खूब बोला।
इस बीच पश्चिम बंगाल में विपक्षी भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ पुलिसिया अत्याचार होता रहा जिस पर राज्यपाल ने कई बार राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को तलब का रिपोर्ट तलब की। अमूमन प्रथा रही है कि राज्य में हर दिन होने वाली प्रशासनिक गतिविधियों की जानकारी राजभवन को दी जाए लेकिन ममता सरकार ऐसा नहीं करती थी। राज्यपाल ने इस बारे में नियमित तौर पर ट्विटर पर लिखा और लोगों को बताया कि राजभवन और राज्य सरकार के बीच क्या-क्या संवैधानिक रीति है और ममता सरकार कैसे संघीय परंपराओं को दरकिनार कर काम करती है।
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विधानसभा चुनाव के बाद प्रशासन से सीधा टकराव
– पश्चिम बंगाल में 2021 के बहुचर्चित चुनाव परिणाम के बाद जब राज्य भर में हिंसा भड़की और भाजपा कार्यकर्ताओं के घरों में आगजनी तोड़फोड़ सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं होने लगीं तब एक समय ऐसा आया था कि हर सुबह राज्यपाल के ट्वीट की सुर्ख़ियों से शुरू होती थी। इसमें वह राज्य सरकार की कार्यशैली, बंगाल में बिगड़ती कानून व्यवस्था और राज्य के लोगों की बदहाली पर वह लगातार ममता सरकार से कैफियत तलब करते थे। उनका बोलना सरकार को इतना नागवार गुजरा कि हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के पद से हटाने के लिए विधानसभा में विधेयक पारित किया। हालांकि उसे अभी तक अनुमति नहीं मिली है।
अमूमन विधानसभा से पारित हुए विधेयक को पहले राजभवन में अनुमति मिल जाती थी लेकिन जब से धनखड़ ने कार्यभार संभाला उसके बाद राज्य सरकार की ओर से भेजे गए हर एक प्रस्ताव के संवैधानिक पहलुओं को परखा और जहां भी कमी थीं, उन्हें वापस राज्य सरकार को लौटाते हुए दुरुस्त करने की नसीहत दी। इसी वजह से कई बार विधानसभा अध्यक्ष विमान बनर्जी के साथ उनका टकराव भी हुआ लेकिन वरिष्ठ कानून विद होने की वजह से राज्यपाल ने कभी हार नहीं मानी और हर मौके पर सरकार को झुकना पड़ा।
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ममता से व्यक्तिगत संबंध रहे मधुर
– भले ही वह राज्य सरकार और प्रशासन की कार्यशैली के खिलाफ मुखर रहे लेकिन ममता बनर्जी के साथ व्यक्तिगत संबंध हमेशा मधुर रहा। हर त्यौहार पर शुभकामनाओं का आदान-प्रदान, राखी पर रक्षाबंधन और जन्मदिन पर एक दूसरे को शुभकामनाएं।
इतने सालों के राज्यपाल के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान राज्यपाल ने एक बार ताल ठोक कर कहीं, “मैं रबड़ स्टांप नहीं। किसी के इशारे पर नाचने वाला नहीं हूं। जब भी संविधान के विपरीत काम होगा मैं बोलूंगा। मुझे भाजपा तृणमूल से कोई लेना-देना नहीं। बात बस इतनी है कि राज्य में संविधान के मुताबिक काम होना चाहिए। अगर नहीं होगा तो धनखड़ सवाल खड़ा करेंगे।”
राज्यपाल ने हमेशा कहा, “संविधान के मुताबिक जब तक ममता सरकार काम नहीं करेगी तब तक मैं उन्हें ऐसा करने के लिए कहता रहूंगा।
अब उपराष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। निश्चित तौर पर उच्च सदन में अमूमन हंगामा करने वालों को सोच समझकर ऐसा करना होगा। बंगाल के राज्यपाल के तौर पर जिस सख्त रुख का परिचय धनखड़ ने दिया है वह उपराष्ट्रपति के तौर पर भी कायम रहने वाला है। अगर संवैधानिक नियमों के विपरीत काम हुआ तो उसका खामियाजा भी हंगामा करने वालों को भुगतना पड़ेगा।
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उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर केंद्र ने दिया है बड़ा संकेत
-एक साल बाद 2024 में लोकसभा चुनाव होना है। उसके पहले भाजपा ने आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया और अब जाट समुदाय से आने वाले जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर बड़ा संकेत किया है। जल्द ही हरियाणा और राजस्थान में भी चुनाव होने हैं। किसान आंदोलन और किसानों के मुद्दे केंद्र के लिए बेहद अहम है।
धनखड़ के नाम का ऐलान भी अचानक नहीं हुआ है। असल में इसके पीछे किसान आंदोलन के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश समेत विभिन्न राज्यों में जाटों की नाराजगी की एक बड़ी भूमिका है। माना जा रहा है कि जाट समुदाय और किसानों को मनाने के लिए भाजपा ने धनखड़ को उपराष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनाया है। इसके अलावा इस कदम को भाजपा द्वारा सत्यपाल मलिक से दिए जा रहे नुकसान की भरपाई के तौर पर भी देखा जा रहा है। असल में मेघालय के राज्यपाल जाट नेता सत्यपाल मलिक लगातार केंद्र सरकार पर हमलावर हैं। उनकी बातों से जाट समुदाय की भी सरकार से दूरी बन रही थी। ऐसे में धनखड़ को आगे करके केंद्र की तरफ से जाट समुदाय को बड़ा संदेश देने की कोशिश की गई है।

 

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