दिल्ली विश्वविद्यालय में “भारत विभाजन के सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव” पर राष्ट्रीय सेमिनार


मुख्य वक्ता रहे आरएसएस के सह-संपर्क प्रमुख भारत भूषण अरोड़ा तो मुख्य अतिथि जयपुर सिविल लाइंस विधायक गोपाल शर्मा

जयपुर/नई दिल्ली (आकाश शर्मा)। दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर इंडिपेंडेंस एंड पार्टिशन स्टडीज (सीआईपीएस) और कमला नेहरू कॉलेज (डीयू) के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार को कमला नेहरू कॉलेज के ऑडिटोरियम में “भारत विभाजन के सामाजिक एवं आर्थिक प्रभाव” विषय पर एकदिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में जयपुर के सिविल लाइंस से विधायक और वरिष्ठ पत्रकार गोपाल शर्मा ने हिस्सा लिया, जिन्होंने भारत के विभाजन के लिए तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व और ब्रिटिश राज को जिम्मेदार ठहराया।
सेमिनार की शुरुआत सीआईपीएस के निदेशक रविंद्र कुमार ने की, जिन्होंने केंद्र की स्थापना और इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कविता के माध्यम से आजादी के इतिहास और विभाजन की त्रासदी को रेखांकित करते हुए इसके लिए माफी मांगी। डीयू कल्चरल काउंसिल के चेयरमैन अनूप लाठर ने विभाजन के पीड़ितों के संस्मरण साझा किए और जम्मू-कश्मीर व पश्चिम बंगाल के अपने अनुभवों को प्रस्तुत किया।

मुख्य अतिथि गोपाल शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि भारत के विभाजन में ब्रिटिश सरकार और तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व की समान जिम्मेदारी थी। उन्होंने बताया कि अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने मात्र 72 दिनों में भारत के विभाजन की सहमति प्राप्त कर ली थी। उन्होंने माउंटबेटन की पुत्री पामेला के लेखन का उल्लेख करते हुए कहा कि शिमला प्रवास के दौरान नेहरू और माउंटबेटन परिवार के बीच कुछ रहस्यमय घटनाक्रम के बाद नेहरू ने विभाजन का प्रस्ताव स्वीकार किया। शर्मा ने जोर देकर कहा कि माउंटबेटन ने महात्मा गांधी को स्पष्ट रूप से बता दिया था कि कांग्रेस अब आपके साथ नहीं, बल्कि उनके साथ है।

सीआईपीएस के चेयरमैन रवि प्रकाश टेकचंदानी ने अपने संबोधन में कहा कि 1857 से 1905 तक स्वतंत्रता आंदोलन एक राष्ट्र की अवधारणा पर आधारित था, लेकिन विभाजनकारी मानसिकता ने निजी स्वार्थों के लिए अंग्रेजों से सांठगांठ की। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या जिन्ना शुरू से ही विभाजन के पक्षधर थे और किसने उनके मन को जहरीला बनाया? उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी की कविता “आजादी अभी अधूरी है…” के माध्यम से अपनी बात रखी और शोधार्थियों से विभाजन के पीछे के कारणों पर गहन शोध करने का आग्रह किया। टेकचंदानी ने अपने परिवार के विभाजन के दौरान झेले गए दर्द और सरयू से सिंधु तक की यात्रा के संस्मरण भी साझा किए।

की-नोट स्पीकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह-संपर्क प्रमुख भारत भूषण अरोड़ा ने अपने संबोधन में अल्लामा इकबाल के शेर “सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा” और उनके बाद के शेर में भारत को “नापाक” कहने के विरोधाभास पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि 1930 में मुस्लिम लीग के इलाहाबाद सम्मेलन में इकबाल ने अलग मुस्लिम राष्ट्र की बात उठाई थी। अरोड़ा ने सवाल उठाया कि इकबाल के विचारों में इतना बड़ा बदलाव क्यों आया और जिन्ना, सैय्यद अहमद खां जैसे नेताओं को विभाजन के लिए किसने उकसाया।

अंत में, कमला नेहरू कॉलेज की प्राचार्य प्रोफेसर पवित्रा भारद्वाज ने सभी अतिथियों, वक्ताओं और प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया। डीयू सीआईपीएस और कमला नेहरू कॉलेज के संयुक्त आयोजन में विभाजन के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर गहन विचार-विमर्श हुआ।

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