नई दिल्ली :आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात के बाद कई तरह के आयाम उभरकर सामने आए हैं।इस परिप्रेक्ष्य में भारत के बुद्धिजीवियों की क्या राय है,यह बहुत मायने रखता है।इस संदर्भ में राजनीतिक विश्लेषक और जाने माने सोशल एक्टिविस्ट संजय सिन्हा का कहना है कि,
‘ भारत के पीएम नरेंद्र मोदी के चीन दौरे से जो संकेत उभरे हैं , वे न केवल भारत के लिए नए कूटनीतिक मोर्चे के तहत भावी मुश्किलों से निपटने की तैयारी की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि इससे यह भी साबित होता है कि मौजूदा विश्व में विकसित या मजबूत देशों को इस तरह का भ्रम नहीं रखना चाहिए कि वे मनमाने तरीके से किसी अन्य देश पर अपनी नीतियां थोप सकेंगे।हालांकि अब भारत जल्दबाजी में किसी फैसले तक पहुंचने के बजाय सावधानी से परिस्थितियों का आकलन करने और अपने हित को तरजीह देने की नीति के तहत कदम बढ़ा रहा है।’
उन्होंने इस संवाददाता से बातचीत के क्रम में आगे कहा कि, ‘ अमेरिका अपनी सुविधा के मुताबिक जिस तरह शुल्क थोपने की नीति पर चल रहा है, उसमें भारत के सामने कुछ जटिल परिस्थितियां खड़ी हो रही हैं। इन्हीं से निपटने के लिए रूस और चीन के साथ भारत नए समीकरण बनने की संभावनाएं देख रहा है। मगर साथ ही भारत के लिए अपनी संप्रभुता का सवाल भी सबसे ऊपर है।दरअसल, यह जगजाहिर रहा है कि चीन के साथ सीमा पर भारत के लिए किस तरह के जटिल हालात बनते रहे हैं। शायद यही वजह है कि चीन के विदेश मंत्री से भारतीय विदेश मंत्री ने साफ कहा कि संबंधों में सुधार जरूरी है, लेकिन उसके लिए पहले सीमा पर तनाव घटाना होगा।’ श्री सिन्हा ने बताया कि,
‘ प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुलाकात से पहले जापान का दौरा किया, जहां उन्होंने जापानी प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा के साथ मुलाकात की। यह दौरा भारत की रणनीति को दिखाता है, जिसमें वह अमेरिका के साथ तनाव के बीच अपने व्यापार और निवेश को विविधता देने की कोशिश कर रहा है।दोनों देशों के बीच स्थिर और मैत्रीपूर्ण संबंध एक बहुध्रुवीय एशिया और विश्व के लिए ज़रूरी हैं।’