ममता बनर्जी राजनीतिक लाभ के लिए ‘बंगाली अस्मिता’ का कर रहीं इस्तेमाल : शुभेंदु अधिकारी

 

कोलकाता, 22 जुलाई  ।पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर बंगाली भाषा और संस्कृति को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। मंगलवार को दिल्ली रवाना होने से पहले कोलकाता में मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि असली बंगाली प्रेमी तो भारतीय जनता पार्टी है, जबकि ममता बनर्जी केवल ‘बंगाली गौरव’ की भावना को भुना रही हैं।

शुभेंदु अधिकारी ने कहा, “मुख्यमंत्री खुद को बंगाली भाषा और संस्कृति की स्वघोषित रक्षक के रूप में पेश कर रही हैं, क्योंकि उन्हें एहसास हो गया है कि उनके खिलाफ जनविरोध बढ़ रहा है। लेकिन उन्हें यह अधिकार किसने दिया? दरअसल, वह एक दिखावटी बंगाली समर्थक हैं। इसके विपरीत भाजपा सच्चे अर्थों में बंगालियों, बंगाली भाषा और संस्कृति की प्रशंसक है।”

उन्होंने इस दावे के पीछे तर्क देते हुए याद दिलाया कि वर्ष 2012 में जब कांग्रेस ने प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया था, तब ममता बनर्जी ने उसका विरोध किया था और तीन अन्य नाम प्रस्तावित किए थे। अधिकारी ने कहा, “जिस भाजपा को ममता बनर्जी रोज कोसती हैं, उसके संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्वयं एक बंगाली थे। दिवंगत अर्थशास्त्री विवेक देबरॉय, जो प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार रहे, वह भी बंगाली थे। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के मौजूदा सदस्य संजीव सान्याल भी बंगाली हैं। हाल ही में हरियाणा के राज्यपाल नियुक्त हुए शिक्षाविद असीम कुमार घोष भी बंगाली हैं।”

उन्होंने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी की बंगाली भाषा और संस्कृति की रक्षक वाली छवि का असली उद्देश्य राज्य में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को संरक्षण देना है।

शुभेंदु अधिकारी की यह टिप्पणी ममता बनर्जी के उस बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने सोमवार को कोलकाता में आयोजित वार्षिक ‘शहीद दिवस’ रैली में घोषणा की थी कि उनकी पार्टी 27 जुलाई से राज्य भर में सप्ताहांत विरोध कार्यक्रम शुरू करेगी। यह विरोध भाजपा शासित राज्यों में बंगाली भाषी लोगों के कथित उत्पीड़न के खिलाफ होगा।

मुख्यमंत्री ने इस आंदोलन को एक नए “भाषा आंदोलन” की संज्ञा दी है। गौरतलब है कि ऐतिहासिक ‘भाषा आंदोलन’ पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हुआ था, जो बंगाली भाषा को आधिकारिक दर्जा दिलाने के लिए लड़ा गया था। यह आंदोलन 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता की नींव बना।

 

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