
पुरुलिया : रघुनाथपुर 1 ब्लॉक का हिन्दू बहुल आड़रा गांव में चारों ओर हिंदू धार्मिक स्थल और देवी मंदिर के बीच स्थित मजार पर प्रति वर्ष की तरह ही इस बार भी दो दिवसीय उर्स का आयोजन किया जाता है।
जानकारी के अनुसार हर साल 5 मार्च को इस दरगाह पर उर्स का आयोजन किया जाता है और सप्ताह के हर गुरुवार को इस दरगाह पर सिन्नी और चादर चढ़ाई जाती है। इस उर्स में शामिल होने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। इस उर्स में जाति या धर्म की परवाह किए बिना सभी के साथ मनाया जाता है। इसीलिए वहां सोलह आना मजार समिति है।
मजार सेवक मोहम्मद खुर्शीद, मो फहीम खान, इबरार हुसैन उर्फ बल्लू, सरफराज खान, सद्दाम हुसैन, सागर मेत्या, श्यामल मेत्या, नरेश मेत्या, दीनू मेत्या आदि को शामिल कर आड़रा दरगाह कमेटी का गठन किया गया है। विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से मंदिर का उर्स या पूजा संपन्न कराना उनकी जिम्मेदारी है।
लेकिन इस वर्ष रमजान माह और छात्र छात्राओं की परीक्षा के कारण कव्वाली आयोजित नहीं की गई। लोग संगीत के साथ मजार पर चादर चढ़ाने नहीं आ सके। इन्हीं कारणों से गुरुवार को उतनी संख्या में लोग नहीं उमड़े। इस वर्ष उर्स दो दिवसीय, बुधवार और गुरुवार को मनाया जाएगा, इसलिए पहले दिन भीड़ थोड़ी रही।
आड़रा मजार के बारे में बताया जाता है कि लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व, हजरत सैयद मैनुल हक, चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह नामक एक सूफी दरवेश पैदल यात्रा करते समय वे जंगल से घिरे एक खंडहर मंदिर के स्थल पर पहुंचे और भिक्षावृत्ति पर जीवनयापन करने लगे।
यह समय औरंगजेब के शासनकाल (1669 ई.) का था। बादशाह के अत्याचारों के दौरान बंगाल और बिहार समेत उत्तर भारत के सभी इलाकों में “सूफी दरवेश” रहते थे। वे लोगों की प्रार्थना के साथ-साथ पीड़ितों को सांत्वना देते थे। और जनता की अनुपस्थिति में वे साधना और भजन
