श्रीकृष्ण चंद्र शास्त्री ठाकुर जी महाराज ने आगे कहा कि परिक्षित जी ने शुकदेव जी से पूछा जल्दी मरने वाले की मुक्ति का मार्ग क्या है, धर्म क्या है अधर्म क्या है, गोविंद से मिलने का सहज पूछा, शुकदेव जी ने सब विस्तार से बताया। महाराज जी ने बताया कि जब राजा परीक्षित को श्राप लगा तब राजा परीक्षित जरासंध का मुकुट पहने थे बेईमानी के धन में कलि का वास है जब महाराज परीक्षित धर्मात्मा पुण्यात्मा ऋषि मुनियों सन्तों की सेवा पूजा करने वाले राजा थे जब उनकी बुद्धि विक्रित हुईं तो आप और हम कैसे बच सकते हैं केवल और केवल हरि नाम के जाप से ही हम बच सकते हैं और भी अन्य कथाओं का वर्णन किया, जैसे अंगुली माल की कथा जड़ भरत की कथा, खगोल भूगोल की कथा , अजामिल की कथा,रहुगुण कथा, पृथ्वी का भार कम करने को सूकर का रुप रखा, हिरण्यकश्यप का वध की कथा, भगवान कपिल देव एवं प्रहलाद चरित्र का वर्णन किया।