रानीगंज हिलबस्ती में 96 वर्षों से मां लक्ष्मी और मां सरस्वती की संयुक्त पूजा की परंपरा जारी

रानीगंज। पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में दुर्गापूजा के ठीक बाद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की पूजा धूमधाम से मनाई जाती है। इस परंपरा के अंतर्गत हर साल शरद पूर्णिमा की रात को मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। खासतौर पर वे पंडाल जहां दुर्गापूजा का आयोजन होता है, वहां मां लक्ष्मी की पूजा आवश्यक मानी जाती है। रानीगंज राजबाड़ी के चासा पारा काली मंदिर में इस वर्ष भी 151 वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार लक्ष्मी पूजा का आयोजन किया गया। वहीं बल्लभपुर स्थित हरे कृष्ण मंदिर में 451 वर्षों से लक्ष्मी पूजा का आयोजन हो रहा है। रानीगंज के हिलबस्ती इलाके में एक ऐतिहासिक मंदिर भी है, जहां लक्ष्मी पूजा के दिन मां लक्ष्मी और मां सरस्वती की एक साथ पूजा की जाती है। बीते 96 वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है। इस मंदिर में लक्ष्मी पूजा को लेकर विशेष तैयारियां की गई हैं और इसे भव्य रूप से सजाया गया है। पंडित प्रमोद पांडे ने इस अवसर पर कहा कि लक्ष्मी पूजा संपन्नता और समृद्धि का प्रतीक पर्व है। इस पर्व में धान के शिष्य को चढ़ाया जाता है, क्योंकि बंगाल की परंपरा के अनुसार धान की खेती का यह समय होता है, जब खेतों में फसल लहराने लगती है। आधी रात में मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा की जाती है। पूजा के बाद प्रसाद वितरण होगा और अगले दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा, जिसमें भजन संध्या का आयोजन किया गया है। साथ ही खिचड़ी भोग का आयोजन भी होगा, जिसमें सैकड़ों लोगों को भोग परोसा जाएगा। मंदिर कमेटी ने बताया कि पिछले 96 वर्षों से मां लक्ष्मी और मां सरस्वती की एक साथ पूजा की जाती है। इस विशेष पूजा की खास बात यह है कि पूर्णिमा के समाप्त होने से पहले ही पूजा सम्पन्न कर ली जाती है।

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