
कोलकाता, 24 जुलाई ।“साथ जियेंगे साथ मरेंगे, कि लोग हमें याद करेंगे”।
मशहूर गीतकार सावन कुमार साहब ने वर्ष 1984 में आई फिल्म लैला के लिए यह गीत लिखा था। भले ही उन्होंने मोहब्बत के इस मुकाम की कल्पना शब्दों में की थी लेकिन पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में यह बिल्कुल सजीव बनकर उभरी है। यहां एक दंपति का प्यार इस कदर रहा है कि मौत भी दोनों को जुदा नहीं कर सकी। मुर्शिदाबाद के कांदी गांव में एक मार्मिक घटना ने सबको चौंका दिया है। शंकर मंडल और नियति मंडल का लगभग पचास साल का दांपत्य जीवन, एक ही दिन में दोनों के निधन के साथ समाप्त हो गया। इस घटना से गांव और परिवार वाले शोक में डूबे हुए हैं।
शंकर मंडल (85) और उनकी पत्नी नियति मंडल (68) के तीन संतान हैं – एक बेटा और दो बेटियां। सभी शादीशुदा हैं और उनके बच्चे भी हैं। शंकर लंबे समय से उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे, जिसमें सांस लेने में तकलीफ शामिल थी। कुछ दिन पहले उनकी हालत बिगड़ने पर उन्हें भर्तपुर ग्रामीण अस्पताल ले जाया गया, जहां से इलाज के बाद उन्हें घर लाया गया। लेकिन उनकी स्थिति नहीं सुधरी और मंगलवार रात को उनका निधन हो गया।
शंकर का पार्थिव शरीर जब घर के आंगन में लाया गया, तो नियति भागकर आईं और रोते हुए पति के सीने पर सिर रख दिया। कुछ ही क्षणों में नियति भी निढाल हो गईं। परिवार वालों ने सोचा कि वे शोक में बेहोश हो गई हैं और पानी छिड़ककर उन्हें होश में लाने की कोशिश की, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। डॉक्टर को बुलाया गया और उन्होंने जांच कर बताया कि नियति की भी मृत्यु हो चुकी है। शंकर के निधन के लगभग तीन मिनट बाद ही नियति ने अंतिम सांस ली।
इस घटना से परिवार और पड़ोसी गहरे सदमे में हैं। गांव के लोगों का कहना है कि उन्होंने ऐसा दृश्य कभी नहीं देखा था। परिवार ने शंकर और नियति के अंतिम संस्कार की तैयारी की और दोनों का अंतिम संस्कार गांव के श्मशान में एक साथ किया गया।
क्या कहना है परिजनों का?
उनके बेटे, अनंत मंडल, ने कहा, “मुझे कभी नहीं याद है कि मैंने अपने माता-पिता को अलग देखा हो। वे हर चीज में एकमत होते थे और कभी झगड़ा नहीं करते थे। पिता मुझे डांटते थे और मां मुझे संभालती थीं, ऐसा कभी नहीं हुआ। वे एक साथ जिए और एक साथ मरे।” उन्होंने यह भी कहा, “कष्ट हो रहा है, लेकिन एक तरह से मुझे शांति मिल रही है।”
इस हृदयविदारक घटना ने यह साबित कर दिया कि शंकर और नियति का प्यार कितना गहरा था, जो उन्हें मृत्यु में भी अलग नहीं कर सका। मुर्शिदाबाद के कांदी गांव में इस घटना को सुनकर हर कोई शोकाकुल है।
