बनगांव लोकसभा सीट : मतुआ समुदाय का है गढ़, केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर की किस्मत दांव पर

Shantanu

कोलकाता, 25 फरवरी । कुछ ही दिनों के अंदर पूरे देश में लोकसभा चुनाव की घोषणा हो सकती है। इसके लिए देशभर में राजनीतिक रस्सा-कस्सी से शुरू हो गई है। पश्चिम बंगाल पर खास तौर पर निगाहें टिकी हैं, क्योंकि यहां आईएनडीआईए गठबंधन में सहमति नहीं बन पा रही है और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं।

राज्य में कुछ चुनिंदा ऐसी सीटें हैं जो हाई प्रोफाइल हैं और उन पर ना केवल राज्य, बल्कि पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं। ऐसी ही एक सीट है उत्तर 24 परगना की बनगांव लोकसभा सीट। यहां से वर्तमान में केंद्रीय मंत्री और बांग्लादेश से भारत आए शरणार्थी मतुआ समुदाय के प्रतिनिधि शांतनु ठाकुर सांसद हैं।

2009 में अस्तित्व में आई थी सीट

उत्तर 24 परगना जिले की बनगांव लोकसभा सीट 2009 में अस्तित्व में आई थी। इससे पहले यह क्षेत्र बारासात संसदीय क्षेत्र के तहत आता था, लेकिन परिसीमन 2009 की रिपोर्ट में बनगांव को अलग से लोकसभा क्षेत्र घोषित किया गया। इस संसदीय क्षेत्र का कुछ हिस्सा नादिया जिले में भी आता है। इस संसदीय सीट के अस्तित्व में आने के बाद से यहां तृणमूल का ही वर्चस्व रहा था। इस संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत सात विधानसभा सीटें हैं जिनमें कल्याणी, हरिनघाटा, बागदा, बनगांव उत्तर एवं दक्षिण, गोघाट और स्वरूपनगर शामिल हैं।

2014 के लोकसभा चुनावों में चुने गए सांसद कपिल कृष्ण ठाकुर के निधन के बाद 2015 में इस सीट पर उपचुनाव हुए जिसमें तृणमूल कांग्रेस की ही उम्मीदवार ममता ठाकुर जीतने में कामयाब रहीं। हालांकि उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार शांतनु ठाकुर को यहां के लोगों ने जीत दिलाई।

मतुआ समुदाय की भूमिका अहम

बांग्लादेश से सटे होने के कारण इस संसदीय क्षेत्र में दोनों देशों की सांस्कृतिक झलक देखने को मिलती है। यहां की आबादी कृषि पर सर्वाधिक निर्भर है। जातिगत आधार पर कुछ जगहों पर अल्पसंख्यक समुदाय का वर्चस्व है। सीट के लिए मतुआ समुदाय की भूमिका काफी अहम है। बनगांव लोकसभा क्षेत्र में 50 फीसदी से ज्यादा मतुआ समुदाय के लोग हैं।

पांच लोकसभा सीटों पर प्रभावी है मतुआ समुदाय

यह समुदाय 1947 में देश विभाजन के बाद शरणार्थी के तौर पर यहां आया था। बंगाल में इनकी आबादी लगभग 30 लाख है और उत्तर व दक्षिण 24-परगना जिलों की कम से कम पांच सीटों पर ये निर्णायक स्थिति में हैं। मतुआ समुदाय मुख्य रूप से बांग्लादेश से आए छोटी जाति के हिंदू शरणार्थी हैं और इन्हें लगभग 70 लाख की जनसंख्या के साथ बंगाल का दूसरा सबसे प्रभावशाली अनुसूचित जनजाति समुदाय माना जाता है। यही वजह है कि सभी दल इनको लुभाने की जुगत में हैं। इस संसदीय सीट ने तीन बार चुनाव देखा है। बनगांव लोकसभा सीट के पहले सांसद तृणमूल कांग्रेस के गोविंद चंद्र नस्कर बने थे। क्षेत्र में कृषि आधारित विकास कार्यों पर अधिक फोकस करने का दावा किया जाता है। यह वह इलाका है जिस पर भारतीय जनता पार्टी की निगाह बनी हुई है। सभी राजनीतिक दलों की नजर मतुआ समुदाय पर है। पेट्रापोल बॉर्डर बांग्लादेश से सटा हुआ है। यद्यपि अब सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त है। रोजगार के अभाव में लोगों का शहरों की ओर पलायन भी प्रमुख मुद्दा है। बनगांव लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र पश्चिम बंगाल के 42 संसदीय क्षेत्रों में से एक है।

नगर पालिका होने के साथ ही यह क्षेत्र बंगाल उपखंड का मुख्यालय भी है। इस क्षेत्र के प्रमुख शैक्षिक संस्थानों में पश्चिम बंगाल राज्य विश्वविद्यालय, दीनबंधु महाविद्यालय प्रमुख हैं।

क्या है मतदाताओं का आंकड़ा

बनगांव लोकसभा सीट के वर्तमान में सात विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। उनमें से आठ लाख 28 हजार 450 पुरुष वोटर हैं। महिला मतदाताओं की संख्या आठ लाख 76 हजार 159 हैं। थर्ड जेंडर के मतदाता 23 हैं। 2019 में कुल वोटरों की संख्या 14 लाख सात हजार 758 थी। जिनमें से कुल पुरुष मतदाता सात लाख 16 हजार 577 और महिला मतदाता छह लाख 87 हजार 887 थीं। 2019 में कुल मतदान प्रतिशत 82.58 फीसदी था। भाजपा के शांतनु ठाकुर को छह लाख 87 हजार 622 वोट मिले थे जिनकी बदौलत जीत हासिल की।

 

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