जान हथेली पर लेकर कवरेज करते पत्रकार ; वरिष्ठ पत्रकार सीताराम अग्रवाल

नयी दिल्ली/कोलकाता । इन दिनों देश में किसान आंदोलन चल रहा है, जो विभिन्न मांगों को लेकर दिल्ली कूच के मिशन पर है, परन्तु सरकार उन्हें दिल्ली आने से रोकने के लिए पूरी तरह से अमादा है। इसके लिए विभिन्न सीमाओं पर कई तरह की बाधाएं खड़ी कर रास्ते अवरूद्ध किये गये हैं , ताकि किसान किसी भी तरह दिल्ली न आ सकें। पिछले आंदोलन के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा को देखते हुए सरकार ने किसानों को रोकने के लिये इस बार काफी पुख्ता इंतजाम किये हैं। उधर किसानों ने भी अपनी मांगें मनवाने के लिए कमर कस ली है। इसके लिए आंदोलन चाहे जितने दिन चले, वे तैयार हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार वे 6 महीने का राशन- पानी अपने साथ लेकर चल रहे हैं। इसके लिए वे हर बाधाओं को पार कर दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। आज ( 14 फरवरी 2024 ) आंदोलन का दूसरा दिन है। हालांकि सरकार तथा किसान नेताओं के बीच बातचीत भी हुई है, पर अभी तक वह बेनतीजा रही है। अब जाहिर है, इस राष्ट्रीय घटनाओं को कवर करने के लिए पत्रकारों का झुंड विभिन्न स्थानों पर तैनात है। सीमाओं पर दोनों पक्ष ऐसे तैनात हैं, मानों जंग लड़ने पर आमादा हो। हालांकि अभी तक अश्रु गैस के गोले छोड़े जाने या छिटपुट पथराव के अलावा भारी हिंसा की कोई खबर नहीं है, पर समय के साथ जिस तरह से किसानों की संख्या बढ़ रही है, उससे किसी भी समय भारी हिंसा की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।


ऐसी विषम परिस्थिति में जो पत्रकार ग्राउन्ड जीरो पर कवरेज के लिए मौजूद है, वे कितना भारी खतरा उठाते हुए जान हथेली पर रख कर अपना काम कर रहे हैं, इसे जानने व समझने की जरूरत है। हालांकि पत्रकार किसी भी पक्ष का समर्थक नहीं होता, उसका काम तो घटनास्थल की हकीकत ज्यों का त्यों बयां कर दे, ताकि आम जनता वस्तुस्थिति को समझ सके,पर ऐसा करते वक्त वह कई बार दोनों पक्षों के बीच सैण्डविच बन जाता है। मैंने एक टीवी चैनल से लेकर कुछ चित्र दिये हैं। एक चित्र में एक महिला हेलमेट पहने हुए ऐसे नजर आ रही है, मानों वह युद्ध क्षेत्र में जंग लड़ने के लिए तैयार हो। पर वास्तव में वह ” आजतक ” चैनल की पत्रकार है। इनका नाम श्रेया चटर्जी है, जो चित्र लेते समय शम्भू बार्डर से अपना कर्तव्य पालन कर रही हैं। ज्ञातव्य है कि इसी बार्डर पर सबसे ज्यादा जमावड़ा है। जहां कल भी तनाव रहा। एक ओर से जहां भीड़ को तितर-बितर करने के लिए अश्रु गैस के गोले छोड़े जाते रहे तो दूसरी ओर से बीच- बीच में प्रावधान हुआ। आज भी यह हालत बनी रही। यहां तक कि आज अश्रु गैस के गोले छोड़े जाने से इतना धुंआ हुआ कि और कुछ दिखना दूभर था। इसका चित्र भी नीचे है। अब अश्रु गैस का गोला हो या फिर पत्थर , वह यह थोड़े ही देखेगा कि अमुक व्यक्ति पत्रकार है, इसलिए इसे छोड़ दो। अत: चपेट में आना स्वाभाविक है। यही नहीं देश में हुई विभिन्न घटनाओं में पत्रकारों को लाठियां भी लगी हैं, गोलियां भी लगी हैं। कई स्थानों पर तो पत्रकारों पर जान- बूझ कर हमला किया गया। उनके कैमरे, मोबाइल वगैरह छीन लिये गये या तोड़ दिये गये। हाल ही में प.बंगाल के सन्देशखाली का उदाहरण है, जहां प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा शाहजहाँ नामक एक व्यक्ति के आवास पर तलाशी लेने के लिए जाने पर ईडी अधिकारियों को पीटा गया। साथ ही पत्रकारों पर हमला किया गया, उनकी गाड़ियां तोड़ी गयीं। शायद इसी स्थिति का मुकाबला करने के लिए आजतक के पत्रकार ने अपनी वह वेशभूषा बनायी थी। कुछ महीनों पहले कोलकाता स्थित स्टार आनन्द ने बुलेट प्रूफ जैकेट व हेलमेट खरीदने की बात कही थी, ताकि कवरेज के लिए जानेवाले पत्रकारों की सुरक्षा हो सके। उस बारे में मैंने उसी दिन अपने फेसबुक पोस्ट में इसका उल्लेख किया था, जो नीचे दिया गया है। कहने का अर्थ यह है कि दिनो- दिन हालात जिस तरह से बदतर होते जा रहे हैं, उसमें मीडिया के लिए काम करना कठिन होता रहा है। एक बात और, बड़े हाउस तो अपने पत्रकारों के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट व हेलमेट व अन्यान्य उपकरण उपलब्ध करा देंगे, पर छोटे हाउस के पत्रकारों का क्या होगा। वैसे तो यह समस्या पूरे देश की है, अतः सभी संबधित सरकारों को इस ओर ध्यान देकर समुचित कदम उठाने चाहिये। अन्यथा भविष्य में सिर्फ बड़े हाउस ही ऐसी घटनाओं को कवर कर पायेंगे, छोटे हाउस नहीं। ऐसे हालात में किसी भी घटना का सही व सटीक चित्रण कहां तक हो पायेगा, यह भविष्य बतायेगा, क्योंकि पूरे देश में बड़े हाउसों की संख्या नगण्य है, जबकि मीडियम व लघु प्रतिष्ठानों की संख्या अधिक है। चूंकि मैं पिछले 5 दशकों से कोलकाता महानगर में हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में हूं, अत: अपनी अभिज्ञता के आधार पर कह सकता हूं कि यहां के हिन्दी पत्रों के बड़े हाउसों में भी इस तरह के खर्चे करने की मानसिकता फिलहाल तो नहीं है, भविष्य में हो जाय तो हिन्दी पत्रकारिता के विकास के लिए अच्छा होगा। वैसे राज्य सरकार ध्यान दे तो सबके लिए अच्छा होगा।

मैंने गत 28 अप्रैल 2023 को मेरे फेसबुक में निम्न पोस्ट किया था, जो कवरेज के दौरान पत्रकारों की कठिन परिस्थितियों का बखान करता है-

विकास या विनाश

अब पत्रकार भी कवरेज के समय पहरेंगे बुलेट प्रूफ जैकेट व हेलमेट
एक टीवी चैनल ने खरीदा है ये सामान
पर डिजिटल, सोशल व प्रिंट मीडिया के साधनविहीन पत्रकारों का क्या होगा ?

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