
बाहुडा यात्रा में देश विदेश के लाखों श्रद्धालु हुए शामिल
बलभद्र के रथ को खींचते समय रस्सी टूटने से छह घायल

भुवनेश्वर, 28 जून । अपने मौसी के घर श्रीगुंडिचा मंदिर में रहने के बाद नौंवे दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा श्रीमंदिर लौट आए हैं ।
पुरी में भगवान जगन्नाथ की बाहुड़ा यात्रा देश विदेश के लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए हैं। भगवान बलभद्र के रथ तालध्वज को खींचते समय अचानक रस्सी टूटने से एक भोई सेवायत समेत छह श्रद्धालु घायल हो गए। उन्हें पुरी स्थित मेडिकल अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
गुरुवार को सुबह बाहुड़ा यात्रा पूरे विधिविधान और रीति नीति के साथ शुरू हुई। सुबह चार बजे मंगल आरती के साथ अन्य नीति संपादित हुईं। इसके बाद गोपाल बल्लभ व खिचड़ी भोग नीति हुई। इसके बाद चतुर्धा मूर्तियों की पहंडी बिजे की नीति शुरू हुई। सबसे पहले सुदर्शनजी की पहंडी शुरू हुआ। सुदर्शनजी देवी सुभद्रा के रथ दर्पदलन में बैठे। इसके बाद भगवान बलभद्र को पहंडी के जरिए तालध्वज रथ में लाया गया। इसके बाद माता सुभद्रा को पहंडी के जरिए दर्पदलन में लाया गया। सबसे अंत में जगन्नाथ पहंडी के जरिये नंदीघोष रथ में विराजमान हुए। इस दौरान चारों ओर हरि बोल और जय जगन्नाथ की ध्वनि गूंजती रही। भगवान बलभद्र के रथ तालध्वज को खींचते समय अचानक रस्सी टूट गई। इस कारण एक भोई सेवायत समेत छह श्रद्धालु घायल हो गए। उन्हें पुरी स्थित मेडिकल अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
पुरी के गजपति महाराज ने तीनों रथ पर छेरा पहँरा की नीति संपादित की। उन्होंने सबसे पहले तालध्वज इसके बाद दर्पदलन व सबसे अंत में जगन्नाथजी के रथ नंदीघोष में छेरा पहंरा किया। इसके बाद तीनों रथों को खिंचने की प्रक्रिया शुरू हुई। समाचार लिखे जाने तक भगवन बलभद्र का रथ तालध्वज व देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन सिंहद्वार के सामने पहुंच चुका था। भगवान जगन्नाथ जी का रथ नंदिघोष मार्किट चौक पहुंच चुका था। देर शाम तक बाहुड़ा यात्रा मौसी मां के घर से निकलकर बंगाली स्कूल चौक होते हुए तोरवा थाना काली मंदिर रोड, दयालबंद, गांधी चौक, शिव टाकिज चौक, तारबाहर,गिरजा चौक, सोलापुरी माता चौक, रेलवे स्टेशन, तितली चौक होते हुए श्री श्री जगन्नाथ मंदिर पहुंच गई। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बन रहा था।
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 4 बजे से रथों को खींचने की प्रक्रिया शुरू होना था, लेकिन इस बार सारी नीतियां काफी शीघ्र होने लगी। इस कारण लगभग तीन घंटे पूर्व ही यानी लगभग 01.10 पर भगवान बलभद्र के रथ को खींचने की प्रक्रिया शुरू हो गई। इसके बाद माता सुभद्रा का रथ दर्पदलन व अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष के खींचने की प्रक्रिया शुरू हुई।
