नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि दहेज की परिभाषा विस्तृत होनी चाहिए. इसके तहत वे सभी चीजें आनी चाए जो दुल्हन के मायके वालों से मांगी गई हैं. भले फिर मांग जमीन-जायदाद, सोना-चांदी की शक्ल में हो या अन्य सामान के रूप में. यहां तक कि अगर घर बनवाने के लिए भी पैसा दुल्हन के मायके वालों से मांगा गया है, तो उसे दहेज की ही मांग समझना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएस बोपन्ना और हिमा कोहली की बेंच ने यह फैसला दिया है. अदालत ने कहा कि ऐसी परिभाषा जो कानून के उद्देश्य को पूरा न करती हो, उसे बाधित करती हो, बदली जानी चाहिए. इसकी जगह उस परिभाषा को स्थापित करना चाहिए, बढ़ावा देना चाहिए, जो कानून के उद्देश्य को पूरा करती हो. दहेज-विरोधी कानून के मामले में यह बात प्रमुखता से लागू होती है. यह कुरीति हमारे समाज में गहरे तक पैठ चुकी है.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि इस संबंध में भारतीय दंड विधान की धारा 304-बी से जुड़े मामलों पर विचार करते हुए इस बात का खास ख्याल रखा जाना चाहिए. कानूनी प्रावधान की परिभाषा किसी तय में ढांचें में समझने के बजाय, उसे विस्तृत दायरे में समझना चाहिए. स्थापित संकुचित दायरे में समझी गई परिभाषा कानूनी प्रावधान के असली उद्देश्य को पूरी नहीं कर सकेगी. उसे बाधित करेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था देते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले को रद्द कर दिया. हाईकोर्ट ने दहेज की वजह से हुई एक महिला की मौत के मामले में उसके पति और श्वसुर को आरोपों से बरी कर दिया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि ससुराल पक्ष का मकान बनवाने के लिए महिला ने खुद अपने मायके वालों से पैसे मांगे थे. इसे दहेज नहीं माना जा सकता.