पचमढी ; शंकर की नगरी मे , अव्यवस्थाओं का ताडंव
पचमढी , का नाम सुनते ही उसकी सुरम्यता के शीतल झकोरे पलकों का स्पर्श करने लगते है , और आंखों के सामने अनगिनत इन्द्र धनुषीय मौन स्वरूपों मे – कल कल करते झरनों , और प्रपातो की रमणीयता का दृश्य परिलक्षित होने लगता है।
पचमढी को कितने ही विश्लेषणों से अलंकृत कर वाणी और शब्दों को सार्थकता प्रदान की गई , इसे प्रदेश मे कही मिनी कश्मीर तो कही , सतपुड़ा की रानी , तो कही प्रिय दर्शनीय , तो कही मंहाकाल की नगरी के नाम से पहचाना जाता है
शंकर की इस नगरी मे अव्यवस्थाओं का तांडव करते भष्मासुर* की सी इस व्यवस्था का आखिरी कोन है जिम्मेदार—-
प्रश्न आज भी यथावत बना शंकर के श्रृध्दालुओ के सामने निष्तब्ध है*- आखिर कब तक चलता रहेगा यह खेला और मेला
सदियों सदियों की श्रृद्धा , भग्तो की आस्था और विश्वास का दम घुटने लगा है मात्र स्थानीय प्रशासन और सरकार की लापरवाही के परिणाम स्वरूप
पचमढी का प्राकृतिक परिवेश आज भी यथावत् अपनी नैसर्गिक सुन्दरता मे भारत के अन्य पर्यटक और धार्मिक स्थलो मे आज भी इसकी कोई सानी नहीं परन्तु क्या यह सौन्दर्य यथावत् बना रहेगा अब तो इसकी नैसर्गिक सुन्दरता से क्या खिलवाड़ नहीं किया जा रहा है , नित नये बदलते परिवेश और भौतिक आपाधापी के बीच पर्यटन संस्कृति ने पूरे बाजार मे अपने पैर पसार रखे है क्या इसके चलते भी पचमढी के तापमान मे अन्तर महसूस नहीं होता है , होता है , हम महसूस भी करते है परन्तु जुबान पर ताला डाल रखे है क्योंकि हम पशिचम की संस्कृति को जोडे रखे हुये है और आये दिन अपना वही रांग भी अपनाते है और झंडे बेनर और पोस्टरो के माध्यम से पचमढी बचाओ अभियान भी चलाते है प्रशासन रोज सुनता है इन आवाजो को पर क्या किसी के कांनो मे थोडी सी भी जूं रेगी
बहरहाल
पचमढी मे धार्मिक मेलो के आयोजन सदियों सदियों से होता आया है इसके लिए पचमढी मे महादेव मेला समीति का गठन यह विचार कर किया गया होगा कि धार्मिक स्थलो का विकास शिरडी अथवा मैहर की तर्ज पर इसका विकास किया जायेगा परन्तु ऐसा यहां कुछ दिखाई भी नहीं पडता , कुछ हठधर्मियो ने तो महादेव और चौरागढ़ की प्राकृतिकता को क्या अपने निजी स्वार्थ महादेव मेला समिति को अगूंठा दिखाकर अपना निजी ट्रस्ट नहीं बना लिया , ताकि न सरकार और न ही प्रशासन का वर्चस्व रहे , वाहृ वाहि लूटने की निजी मंशा ने क्या इसके प्राकृतिक सौंदर्य के साथ पिछले वर्षो मे खिलवाड़ नहीं किया,यदि सरकार चौरागढ़ , महादेव , गुप्त महादेव, जटाशंकर , नागद्वारी ,आदि धार्मिक और पौराणिक स्थलों को अपने कब्जे मे लेकर शिरणी , मैहर आदि की तर्ज पर विकास करे तो सरकार को आय भी प्राप्त होगी ,रोजगार के अवसर भी मिलेगे ओर पचमढ़ी को एक पहचान!
किसी भी धामिर्क स्थल की एक पहचान हुआ करती है जो उस व्यक्ति को केन्द्रित कर उसको आभा प्रदान करती है कि हम मध्यप्रदेश के पर्वतीय पर्यटन और धार्मिक स्थल पर खडे हुये है
पचमढी अपनी शालीन और गरिमामय परम्पराओं को अतीत , वर्तमान , और भविष्य के कालांतर मे समेटे आज की विडम्बनाओं पर आंसू बहा रही है*
पचमढी देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों मे वह प्राकृतिक , रमणीय और नैसर्गिक स्थल है जहां पर्यटन और धार्मिक दोनों ही का समावेश है और ऐसा स्थल शायद ही भारत के किसी भी पर्यटन स्थल को नसीब होना ही सौभाग्य की बात है
यहाँ आदिकाल की रमणीय प्राकृतिक गुफाओं और कंदराओं मे मानों प्रकृति ने अपने गैर कामो को छोडकर इस प्रकृति के परिवेश को ऐसा सजाया और संवारा हैमानों आस्थाएं नतमस्तक हो जाया करती है,
प्रतिवर्ष बडे मेला पर्वों के दौरान यहां विदर्भ महाराष्ट्र , मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़, राज्यों से लाखों लाख श्रृध्दालुओ की आस्थाएं परबान चढती देखी जा सकती है, इसके अतिरिक्त पर्यटक और श्रृध्दालुओ का तांता सा लगा हुआ रहता.है पर्यटक यहा सबसे अधिक महाराष्ट्र , मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ , बंगाल , दिल्ली गुजरात आदि राज्यों से आता है
महाशिवरात्रि और नागपंचमी के बडे पर्वों पर तो श्रृद्धालुओं का सैलाब यहा देखने को मिलता ही है
महाराष्ट्र राज्य का आस्थावान श्रृद्धालु पचमढी की मिट्टी को माथे तिलक लगाता है और यहां की भावभूमि के कंकर कंकर मे शंकर की आकृति को देवतुल्य पूजता है यह है महाराष्ट्र की आस्था और विश्वासों की सुपूजित धरती परन्तु क्या 21,वीं सदी के दरवाजे पर हम या हमारी बदलती सरकारों जिले के प्रशासन , मेला आयोजन समीति ने इन लाखों श्रृद्धालुओं को एक रात की भी विश्राम की निशुल्क व्यवस्था करा पाई है ।
न ही यहां स्थाई रूप से श्रृद्धालुओं के लिए सुलभ शौचालय की कोई निशुल्क व्यवस्थाएं हैं और न ही धर्मशाला के रुप मे ही कोई निशुल्क व्यवस्था और न ही उचित मूल्य पर भोजन आदि की कोई सुलम व्यवस्थाएं ही धार्मिक स्थलो पर तो कहना ही क्या धार्मिक स्थल भी आज खंड्हर को प्राप्त हो रहे है जो गरिमामय नैसर्गिक वातावरण यहां आज से कुछ ही वर्षों पूर्व था वह भी अब प्रायः लुप्त हो चुका है , पर्यटन की अंधी आपाधापी अर्थ लोलुपता ने यहाँ के वातावरण को बदलने मे कोई भी कसर नहीं की अब यह कहने मे संकोच ही केसा हम सब जानते हैं अब तो यहाँ आने के बाद ऐसा लगता नहीं कि हम भारत के किसी महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल के किसी कैलाश पर्वत पर खडे हुये है जो विकृतियां आज यहा दिखाई दे रही है उसका सही मायने मे कौन जबाबदार है ।
देशरत्न डां. राजेंद्र प्रसाद जी जब पहली बार पचमढी पधारे तो यहा के नैसर्गिक वातावरण को देखकर ही उन्होंने यहाँ कुछ समय स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से रहने का मन संकल्प लिया और आज देखते ही देखते समय की किस करवट मे पचमढी के धार्मिक ,रमणीय और नैसर्गिक सभी स्थल मानो अपनी दुर्दशा पर आंसू भी नहीं बहा पा रहे है , विकास के नाम सिर्फ़ और सिर्फ़ लीपापोती अवश्य होती है पर उस विकास मे स्थाईत्व नहीं ।
कहने को एक महादेव मेला आयोजन समीति है परन्तु आप और हम उसकी कथनी और करनी से सभी वाकिफ़ है
धार्मिक स्थलो से प्राप्त आय का एक बडा हिस्सा मेला समीति को जाता है करोडों की जमापूंजी होने के बाद तह धार्मिक स्थल अपनी हो रही दुर्दशा पर आंसू भी नहीं बहा पा रहें है
महाराष्ट्र राज्य के श्रृद्धालुओं का तो यहाँ तक कहना है कि यह धार्मिक स्थल यदि हमारे महाराष्ट्र राज्य मे होता तो हमारी सरकार इसे चमन बना देती जिससें यहाँ रोजगार के अवसर तो प्राप्त होते ही साथ मे धार्मिक स्थलो का रख रखाव भी प्राकृतिक परिवेश के अनुकूल होता
इसकी शांत फिजा और नैसर्गिक परिवेश से यहा खिलवाड़ किया जा रहा है , उसका परिणाम गर्मियों मे इसका तापमानों देखा जा सकता है
महाराष्ट्र से आये श्रृध्दालुओ का ऐसा मत है कि धार्मिक स्थल के अनुरूप यहा कोई व्यवस्थाएं नहीं शिरणी के सांई दरबार , अथवा मैहर की तर्ज पर इन धार्मिक स्थलो का विकास किया जाये तो सरकार की आय भी बढेगी और रोजगार के अवसर भी प्रदान होगे साथ ही वन विभाग के आडे तिरछे नित बदलते नियमो और पर्यटकों की जेब पर भारी यह नियमो को वक्त रहते नहीं सुधारा गया तो यहां कौन आयेगा
अतः आवश्यक है वनविभाग के नियमो का हवाला देकर जो शुल्क वसूल किया जाता है वह पर्यटकों की जेब पर भारी से भारी है अत प्रदेश की निकम्मी सरकार और प्रशासन तो निष्किय होता दिखाई देता है केन्द्र सरकार को दखल देकर इसे संरक्षण और संरक्षित कर न्याय प्रदान कर सकने मे कामयाब हो सकेगी या मध्य भारत के किसी मसीहे को जन्म लेना पडेगा
महाराष्ट्र से आये ऐसे कितने आस्थावान श्रृद्धालु है जिन्होंने समय समय पर दुख व्यक्त किया अभी हाल ही मे महाराष्ट्र नागपुर के नमन भाई , राजू कन्नौजे , नमीता,जगन्नाथ चौधरी, महेश चौधरी, नानाभाऊ बाघमारे ,आदि ऐसे परिवार इस मेले के दौरान दर्शनार्थ चौरागढ़ आये जिन्होंने बताया यहां रात्रि तनिक विश्राम की कोई भी किसी भी प्रकार की कोई सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गई है वृक्ष की छाया मे विश्राम करना पडा यह है धार्मिक स्थल पर अव्यवस्थाएं न सुलभ शौचालय की स्थाई व्यवस्था है न पेईंग गेस्ट जेसी सुविधाएं अच्छा होता प्रदेश सरकार को पचमढ़ी मे आयोजन समिति जो धार्मिक स्थलो की व्यवस्था करती है तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर सरकार को पचमढ़ी के धार्मिक स्थलो को अपने संरक्षण मे लेकर मैहर , शिरणी की तर्ज पर इसका विकास अब आवश्यक हो गया है , नगर की जनचेतना ने भी इस और कभी ध्यान दिया हो, सब अपने अपने स्वार्थ की पूर्त मे लगे हुये है और धार्मिक स्थल अपनी हो रही दुर्दशा पर आंसू भी नहीं बहा पा रहे है
आदि ने बताया धामिर्क स्थलो पर जाने से जो शांति प्रदान यहाँ होती थी श्रृद्धा , आस्था का जो भाव उमडता था वह सब कपूर की भांति यहा से उड गया है और सिर्फ रह गई भौतिक वाद की अंधी आपाधापी
क्या केंद्र की सरकार जागेगी
बहरहाल पचमढ़ी मे आयोजित होने वाला विशाल महाशिवरात्रि पर्व का मेला प्रांरभ हो गया है , इसमे महाराष्ट्र विदर्भ से लाखो की बडी संख्या मे श्रृध्दालुओ का यहां दर्शनार्थ आना होता है,महाराष्ट्र का श्रृध्दालु पचमढ़ी के धार्मिक स्थलों को बद्रीनाथ और रामेश्वरम धाम के सम्तुल्य पूजता है, और इसी के साथ वह अपनी चौरागढ़ ,महादेव की यात्रा करता है और सोने अथवा चांदी के त्रिशूल मनोकामनाएं पूर्ण होने पर अर्पित करता है और दान राशि का चढावा चढाता है महाराष्ट्र का श्रृध्दालु पचमढ़ी के पौराणिक काल के धार्मिक स्थलों की सरजमीं की इस माटी को अपने माथे तिलक लगाता है उसकी यह यात्रा किसी धाम से कम नहीं होती आस्था,विश्वास और श्रृध्दा का अनूठा संगम यहाँ देखने को मिलता है अपने कंधो पर लोहे के त्रिशूल यहां लाते है ओर चौरागड महादेव पर अपनी कामना अनुसार चढाते है पूरे सतपुड़ा पर्वत के चप्पे चप्पे पर आस्था का यह जनसैलाब देखने को मिलता है उसकी आस्थाएं यहाँ परबान चढती देखी जा सकती है
आस्था का यह जनसैलाब सतपुड़ा की अजेय वादियों मे देखने को मिलता है इसी के साथ श्रृध्दालु नागपुर ,अमरावती , एक सडक मार्ग होते हुये या तो बैतूल होशंगाबाद नर्मदापुरम मार्ग होते हुये पिपरिया से मठकुली होते हुये पचमढ़ी या नागपुर से तामिया मार्ग होते हुये भूराभगत मार्ग से सीधे भूराभगत से चौरागड महादेव की यात्रा करता है, सतपुड़ा की इन अजेय वादियों मे हर भोला हर हर महादेव के जयकारों के साथ उसकी यह यात्रा होती है
पचमढ़ी मे आयोजित होने वाला यह विशाल महाशिवरात्रि मेला छिन्दवाड़ा और नर्मदापुरम कलेक्टर होशंगाबाद की अध्यक्षता मे सम्पन्न होता है और महाशिवरात्रि पर्व के पूर्व आला अधिकारियों की बैठक बुलाई जाती है, पचमढ़ी के धार्मिक स्थलो की देखरेख और प्रबंधन महादेव मेला समीति करती है और इसी के साथ मेला समीति को इस मेले मे व्यवस्था की दृष्टि से नीलामी मे लाखों लाख की आय भी प्राप्त होती है परन्तु क्या महादेव मेला समीति इन वर्षों मे धार्मिक स्थल के अनुरूप मेले मे आये इन तमाम श्रृध्दालुओ की आस्था , विश्वास के अनुरुप किसी प्रकार की व्यवस्था कर पाई है 21वीं सदी के दरवाजे पर क्या एक रात विश्राम की निशुल्क छाया इन श्रृध्दालुओ को मुहैया करा सकी है या कोई सुलभ शौचालय , धर्मशालाओं का निर्माण आदि जनसुलभ करा सकी है महाराष्ट्र राज्य से आये ऐसे सैकडों श्रृध्दालुओ का मानना है कि हमारी आस्था से यहां मात्र खिलवाड़ किया जाता है नगर मे भी न तो उचित टेन्ट बगैरा लगाये जाते है बल्कि कडकडाती भीषण ठंड मे किसी प्रकार के अलाव की व्यवस्था मेला क्षेत्र मे होती है श्रृध्दालु कडकडाती भीषण ठंड मे आस्था की इस नगरी मे भगवान शिव को साक्षी मानकर खुले आकाश के नीचे फुटपाथ पर , जंगलो मे रात्रि विश्राम करने को मजबूर हो जाता है और महादेव मेला समीति कहती है मेला सकुशल सम्पन्न हुआ श्रृध्दालुओ का ऐसा मानना है यह मेला प्रदेश स्तर पर यदि संचालित होता है तो हमे किराये मे कटौती , अथवा रेल सेवाओं मे छूट के साथ यहां जनसुलभ सुविधाएं हमे प्राप्त होती परन्तु मध्यप्रदेश सरकार के कांनो मे आज तक जूं तक नहीं रेगी न ही प्रशासन के हमारी श्रृध्दा आस्था और विश्वास को जो ठेस यहां पहुंचती है उसकी कल्पना बंद कमरों मे बैठकर नहीं की जा सकती पचमढ़ी के धार्मिक स्थलो की हालत भी किसी से छिपी नहीं अच्छा यही होता मेला समीति को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर प्रदेश स्तर पर समीति का गठन किया जाये और पचमढ़ी के धार्मिक स्थलो को शिरणी अथवा रामेश्वरम की तर्ज पर इसकी विकास किया जाये तो सरकार को आय भी प्राप्त होगी और रोजगार के अवसर भी साथ यहां मनमानियों का अंत भी होगा…. क्या केन्द्र अथवा राज्य सरकार इस पर ध्यान देगी या ढांक के वही तीन पात कहावत चरितार्थ होगी देखना है ऊंट किस करवट बैठता है
मनोज दुबे वरिष्ठ पत्रकार