राष्ट्र क्षितिज पर कला की चमक बिखेर रहे हैं संस्कार भारती के तरासे नगीने

कोलकाता;; कहते हैं कलाकारी एक ऐसी खूबी है जिसमें बह कर पेड़-पौधे, पत्थर-पहाड़, नदियां, हवाएं बोलने लगती हैं। आसमान अपनी ऊंचाइयों पर बुलाने लगता है और पत्थरों के दिल भी धड़कने लगते हैं। लेकिन कहते हैं ना कि जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं, वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
इसी राष्ट्रवाद को केंद्रित कर संस्कार भारती ने कलाकारी और कला को ऐसे निखारना शुरू किया है कि आज इसके तरासे हुए नगीने वैश्विक पटल पर राष्ट्रवाद की चमक बिखेर रहे हैं। भारतीय परंपरा- संस्कृति को केंद्रित साहित्य, नाटक, नृत्य, रंगोली, चित्रकला जैसी बहूविध कलाकारी को वैश्विक मंच प्रदान करने वाली संस्था “संस्कार भारती” पिछले तीन दशक से देश के कोने-कोने से ऐसे नगीनों को ढूंढ ढूंढ कर सामने ला रही है जिनकी कला राष्ट्रवाद से ओतप्रोत हैं। हमारी पीढ़ियों के दिल देश के नाम धड़के, हम भारत माता के लिए जीएं और उसी के लिए अपनी सांसे कुर्बान कर दें, हम मनसा वाचा कर्मणा राष्ट्र के प्रति समर्पित हों, इसके लिए संस्कार भारती कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और कछ से लेकर कला की नगरी पश्चिम बंगाल के कोने कोने तक कला के जरिए इसी राष्ट्रवाद की खेती कर रहा है। लखनऊ में 1981 में संस्कार भारती की स्थापना के सात साल बाद 1988 में बंगाल की शाखा शुरू हुई। इसके संस्थापक सदस्यों में सुभाष भट्टाचार्य भी थे जिन्होंने हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में बताया कि 1987 के बाद से लेकर आज तक बंगाल में संगठन का विस्तार लगातार होता रहा है। पहली शाखा कोलकाता में शुरू की गई थी उसके बाद आज राज्य के हर जिले में संस्कार भारती की इकाई गठित हो गई है और राज्य भर से नवोदित कलाकारों को राष्ट्रीय और वैश्विक मंच प्रदान किया जाता है। उन्होंने बताया कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति को बढ़ावा देने वाली कविताएं, कलाकारी, चित्रकारी, नाटक, नृत्य आदि को बढ़ावा देना ही संस्कार भारती का मूल मकसद है और इसी के लिए हर एक कलाकार को प्रेरित करना और उसे मंच प्रदान करना हमारा मुख्य काम है। सुभाष ने बताया कि 1987 में बंगाल में संस्कार भारती की शाखाएं शुरू होने के साथ ही आज तक राज्य के कई बड़े कलाकार संगठन से जुड़े हैं और नई पीढ़ी को राष्ट्रवाद केंद्रित कलाकारी करने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने बताया कि संगठन का सदस्य बनने के लिए केवल वे लोग चुने जाते हैं जिन्हें भारतीय सभ्यता और संस्कृति में रुचि है और इसके प्रचार-प्रसार के लिए प्रतिबंध है। 1987 के बाद से लेकर 2019 तक ऐसा कोई साल नहीं रहा है जब संस्कार भारती ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे सांस्कृतिक आयोजन नहीं किया जिसमें कला के हर जरिए से भारतीय सभ्यता और संस्कृति का प्रचार-प्रसार और बढ़ावा देने का काम नहीं किया गया।
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राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित होने वाले सामान्य लोग संस्कार भारती की ही देन
– उन्होंने बताया कि पहले मिलने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार केवल उन लोगों को दिए जाते थे जो मशहूर होते थे, लेकिन संस्कार भारती की बदौलत यह परंपरा बदली है। आज पद्म पुरस्कार उन लोगों को मिल रहे हैं जो देश के दूरदराज, ग्रामीण, जंगली, सुदूर क्षेत्रों में बड़े बदलाव के लिए खुद को समर्पित कर जीवन गुजार चुके हैं। जिन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कोई नहीं जानता था लेकिन उन्होंने समाज और राष्ट्र में बदलाव के लिए अद्वितीय योगदान दिए हैं। ऐसा ही एक नाम कमली सोरेन का है जिन्हें हाल ही में केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कार दिया है। सोरेन के नाम का प्रस्ताव भी संस्कार भारती ने हीं किया था। इतना ही नहीं बंगाल के जिन कलाकारों को राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है उनमें से अधिकतर सामान्य वर्ग से हैं और गुमनाम रहकर राष्ट्र निर्माण में खुद को नींव की ईंट की तरह झोंक चुके थे। ऐसे राष्ट्र वीरों को ढूंढना, उनके कार्यों को परखना और उन्हें सम्मान दिलवाने का बीड़ा भी संस्कार भारती ने उठाया है। आज देश भर में पद्म पुरस्कार पाने वाले जिन सामान्य लोगों की चर्चा होती है उनमें संस्कार भारती मुख्य सूत्रधार रहा है।
सुभाष ने बताया कि भारत सेवाश्रम के संस्थापक स्वामी प्रणवानंद की जयंती पर संस्कार भारती ने राज्य में बड़े पैमाने पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया था जिसमें राष्ट्रवाद को समर्पित कलाकारी का आयोजन किया गया था। इसकी सराहना राष्ट्रीय स्तर पर हुई थी। उसी तरह से 2004 में भी एक बड़ा आयोजन हुआ था जिसमें नाट्य मंचन और संगीत के जरिए भारतीय पारंपरिक लोक सभ्यता, संस्कृति और गीतों का प्रदर्शन हुआ था जो अनुपम था।

सुभाष के अलावा संस्कार भारती की केंद्रीय कमेटी की सचिव और दक्षिण बंगाल की उपाध्यक्ष नीलांजना रॉय ने भी संगठन की अतुलनीय भूमिका के बारे में हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत की। उन्होंने बताया कि बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री हो अथवा बांग्ला कविता, कहानियां लिखने वाले लोगों की कलाकारी को मंच देने का काम संस्कार भारती ने बखूबी पिछले तीन दशक में किया है। उन्होंने बताया कि बंगाल में जब कविता और लोकगीत की बात होती है तो अमूमन गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, कवि नज़रुल, सरत चंद्र चटर्जी की बातें होती है लेकिन बंगाल में और भी कई लोग हैं जिनकी कविताएं और कहानियां कमाल की हैं। बंगाल में स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लोगों को एकजुट करने और उनमें राष्ट्रवाद की भावना भरने के लिए कविताओं और कहानियों का ही सहारा लिया गया था और उनमें से अधिकतर लेखक और कवि गुमनाम ही रह गए। ऐसे ही कई नए कलाकार हैं जिनकी कविताएं वैश्विक स्तर पर सम्मान पाने लायक हैं और संस्कार भारती यही कर रही है। उन्होंने बताया कि ऐसे ही कलाकारों को मंच देना, उनकी कला के जरिए भारतीय सभ्यता संस्कृति और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए लगातार काम किया जा रहा है। उन्होंने नई पीढ़ी के कलाकारों से संस्कार भारती से जुड़ने का आह्वान करते हुए कहा कि संगठन से जुड़ने पर उनकी कलाकारी का प्रदर्शन वैश्विक मंच पर होगा जो उन्हें बेहतर पहचान दिलाने के साथ राष्ट्र और समाज के बड़े तबके को सीखने का मौका देने वाला होगा।
नीलांजना ने बताया कि पश्चिम बंगाल में विपरीत राजनीतिक परिवेश होने के बावजूद बड़े पैमाने पर कलाकार संस्कार भारती की स्थापना के बाद से ही लगातार जुड़ते रहे हैं और विभिन्न कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं।

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