कोलकाता । पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा समितियों को वित्तीय अनुदान देने संबंधी ममता सरकार के फैसले के खिलाफ लगाई गई जनहित याचिका में सुनवाई गुरुवार को पूरी हो गई है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ में मामले की सुनवाई पूरी हुई है। हालांकि कोर्ट ने फिलहाल इस पर फैसला संरक्षित रखा है। सुनवाई के समय राज्य के महाधिवक्ता सोमेंद्र नाथ मुखर्जी ने कोर्ट को बताया कि पर्यटन, सांस्कृतिक धरोहर के विकास और पब्लिक पुलिस के बीच बेहतर तालमेल संबंधी व्यवस्थाएं विकसित करने के लिए दुर्गा पूजा पंडालों में राज्य सरकार की ओर से दी जाने वाली राशि का इस्तेमाल होगा। इस पर कोर्ट ने पूछा कि आप जो दावा कर रहे हैं उसी काम के लिए दुर्गा पूजा समिति इन पैसा का इस्तेमाल करेंगी, यह सुनिश्चित करने का क्या रास्ता है? इसके जवाब में सोमेंद्र नाथ मुखर्जी ने बताया कि खर्च का पूरा हिसाब और बिल वाउचर लिया जाएगा। जिन क्लबों को भी अनुदान दिया जाना है, वे बिल वाउचर देने पर सहमत हुए हैं। जो नहीं देंगे उन्हें अनुदान भी नहीं दिया जाएगा।
इसके बाद न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता के वरीय अधिवक्ता विकास रंजन भट्टाचार्य से पूछा कि आपकी इस पर क्या राय है। भट्टाचार्य ने कहा कि तीन साल सबसे पहले राज्य सरकार ने दावा किया था कि सेफ ड्राइव और सेव लाइफ के प्रचार प्रसार के लिए इस राशि का इस्तेमाल किया जाएगा। उसके बाद कोरोना रोकथाम इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के नाम पर रुपये दिए गए। अब सांस्कृतिक धरोहर का नाम लेकर रुपया दिया जा रहा है। दरअसल राज्य सरकार के पास जो रुपये आते हैं वह आम लोगों के कर से हासिल हुआ रुपया है। उसे इस तरह से पूजा क्लबों में बांटना बिल्कुल अन्याय है।
भट्टाचार्य ने आगे कहा कि एक खास समुदाय को पूजा के लिए सरकारी तौर पर पैसे देना संविधान के विपरीत है। इसी के आधार पर हाईकोर्ट ने पहले ही इमामों को भी भत्ता देने के फैसले को रद्द किया था। इस तरह से रुपये खर्च करने के लिए राज्यपाल की अनुमति की जरूरत पड़ती है लेकिन राज्य सरकार ने जो अनुदान देने की शुरुआत की है उसमें सरकार के संबंधित विभाग एक दूसरे को पत्र भेजकर रुपये दे रहे हैं। यह पूरी तरह से गैरकानूनी है। इस पर रोक लगनी चाहिए।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है।