“भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष:अटल बिहारी वाजपेयी”

(पुण्य तिथि 16 अगस्त पर विशेष)

क्रांति कुमार पाठक

वक्त के साथ बढ़ते चले गए,
विकास और केवल विकास करते चले गए,
देश की हर बाधा को दूर करते चले गए,
ना सोचा कभी अपने बारे में,
हर वक्त बस देश की परवाह करते चले गए।
न थके,न रूके बस निरंतर काम किया,
हैं ये वही शख्स जिसने विरोधियों का भी सम्मान किया।
है बेदाग, जिसका जीवन वह राजनीति का आदर्श हैं,
करे जिसका विपक्ष भी पूरा सम्मान,
हर कोई उनका कायल हैं।
रहेगी यादें उनकी युगों युगों तक,
उन्नत उनका मान रहेगा।
मातृभूमि के इस सपूत का,
विश्व में गौरव गान रहेगा।

सचमुच, कविता बीथियों में रमने वाला एक जीवन जब राजनीति का पथचर बना, तो न केवल उसके शिखर तक पहुंचा, बल्कि वहां वह अमर हो गया। यह जीवन था भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का। वास्तव में अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के असली हीरो थे। वे देश के तीन बार प्रधानमंत्री रहे। हरदिल अजीज अटलजी की एक लोकप्रिय राजनेता, ओजस्वी कवि,प्रखर पत्रकार, सम्मानित समाजसेवी और नरम हिंदूत्ववादी के रूप में क‌ई छवियां रहीं। पहले भी और आज भी भले ही कोई उनसे ताकतवर, सक्षम व समर्थ नेता हुआ हो, किंतु उनके जैसा मंत्र-मुग्ध करने वाली छवि भारतीय जनमानस में किसी की भी नहीं है। उनके स्वभाव और व्यक्तित्व का ऐसा जादू रहा कि अपनी पार्टी के लोगों के साथ साथ विपक्ष भी उनकी प्रशंसा और सम्मान करता था।
भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष अटलजी सही मायने में भारतीय राजनीति के अजातशत्रु थे। उनकी विद्वता तथा कवित्वपूर्ण भाषण शैली में अद्भुत और अद्वितीय सम्मोहन क्षमता थी। लगभग पांच दशकों तक भारतीय राजनीति के प्रकाशपुंज बने रहने वाले अटलजी आगामी क‌ई युगों तक भारतीय जनमानस के हृदय सम्राट बने रहेंगे। क्योंकि वे भारतीय राजनीति के सबसे सहज,सरल व्यक्तित्व थे। उनके पूरे जीवन वृत्त का अवलोकन करें, तो लगता है कि वह बिना किसी अथक परिश्रम के अपने आप ही न सिर्फ लोकप्रिय हो गए, बल्कि सर्व-स्वीकार्य भी। प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने वाले नेताओं में तो वह क‌ई तरह से विरले ही थे। सहज सरल व्यक्तित्व के मामले में उनकी तुलना कुछ हद तक सिर्फ लालबहादुर शास्त्री से की जा सकती है। बोल-चाल, रहन-सहन में वह हमेशा ही हमारे बीच के किसी शख्स की तरह ही लगते थे। लोगों से जुड़ने का उनके पास एक सशक्त औजार था, उनकी वाणी। बहुत बड़े जन-समुदाय को मंत्र मुग्ध कर देने वाला उनके जैसा कोई दूसरा कलाकार भारतीय राजनीति को नहीं मिला है। उनका जन्म 25 सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी कवि और अध्यापक थे और मां कृष्णा देवी घरेलू महिला थी। अटलजी अपने माता-पिता के सातवीं संतान थे।उनका शुरुआती सफर जरा भी आसान न था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बड़नगर,गोरखी के सरस्वती शिशु मंदिर से हुई। उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कालेजिएट स्कूल से इंटरमीडिएट और विक्टोरिया कालेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। उसके बाद अटलजी कानपुर आ ग‌ए और यहां के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एम.ए. किया। उन्होंने कालेज जीवन से ही राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। पहले वह छात्र संगठन से जुड़े, फिर आर‌एस‌एस से शाखा प्रभारी के रूप में कार्य किया। राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर के बाद अटलजी ने पत्रकारिता में अपना कैरियर शुरू किया। उन्होंने राष्ट्र धर्म, पांचजन्य, और वीर अर्जुन का संपादन किया।
अटलजी सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में काफी सक्रिय रहे और हिंदूवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े रहे। वर्ष 1951 में वे जनसंघ के संस्थापक सदस्य बने। अपनी कुशल वक्तृत्व शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया।वे पहली बार 1957 में संसद सदस्य बने जब जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा क्षेत्रों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में वो चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई। लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो पहली बार लोकसभा पहुंचे। अगले पांच दशकों के उनके संसदीय कैरियर की यह शुरुआत थी।1968 से 1973 तक वो भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे। जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जनांदोलन छेड़ा गया तब आपातकाल के दौरान नवंबर 1975 से 1977 के बीच इन्हें भी जेल जाना पड़ा।1977 में जनता पार्टी की सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में उन्होंने पहली बार हिन्दी में भाषण दिया और वे इसे अपने जीवन का सबसे सुखद क्षण बताया।1980 में वे भाजपा के संस्थापक सदस्य रहे।जब जनता पार्टी का विभाजन हुआ तो जनसंघ के सदस्यों ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया और छः साल तक वाजपेयी इसके अध्यक्ष रहे। इस दौरान वे भाजपा संसदीय दल के नेता भी रहे।
16 म‌ई 1996 को वे पहली बार प्रधानमंत्री बने। लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से मात्र 13 दिनों में ही उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे।1988 के आम चुनावों में सहयोगी दलों के साथ उन्होंने लोकसभा में बहुमत साबित किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। लेकिन तेरह महीने बाद ही एआईएडीएमके के द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार फिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए।1999 में हुए आम चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणा पत्र पर चुनाव लड़े गए और इस चुनाव में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया। गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। म‌ई 1998 भारत ने दूसरी बार पोखरण में परमाणु बम धमाके किए। इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना हुई और  कुछ प्रतिबंध भी लगे। लेकिन वाजपेयी ने इन्हें भारत की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी बताया। इसके बाद फरवरी 1999 में वाजपेयी पड़ोसी देश पाकिस्तान से रिश्ते बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण पहल की और बस यात्रा करते हुए अमृतसर से लाहौर पहुंचे। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर उनकी खासी प्रशंसा हुई।
दरअसल गठबंधन राजनीति में क्षेत्रीय दलों की आकांक्षा, अपेक्षा और महत्त्वाकांक्षा को साधने वाले अटल ही पहले ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। चौबीस दलों का गठबंधन बनाकर जो राजनीतिक प्रयोग उन्होंने किया वह आने वाले क‌ई वर्षों के लिए प्रासांगिक बन गया है। स्वीकार्यता उनका सबसे बड़ा गुण था। वे सच्चे मन से दूसरों को इस हद तक स्वीकार करते थे कि सामने वाला उन्हें अपनाने के लिए विवश हो जाता था।
कांग्रेस में भी वाजपेयी की स्वीकार्यता कम नहीं थी।जब नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे, उन्होंने विपक्ष के नेता वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। उन्होंने यह जिम्मेदारी बखूबी निभाई थी। दरअसल, वैचारिक मतभेदों के बावजूद वाजपेयी की नरसिंह राव, चंद्रशेखर और मधु लिमये जैसे समाजवादी नेताओं से गहरी मित्रता थी। सचमुच, अटलजी के व्यक्तित्व को उनके कार्य, उनके व्यवहार और उनकी सर्व-स्वीकार्यता को एक आदर्श के रूप में हमेशा जाना जाएगा। उन्होंने काल के कपाल पर कभी न मिटने वाली ऐसी छाप छोड़ी है, जो आती दुनिया में ‘अटल’ बनी रहेगी।

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