
कोलकाता। “स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बंगाल स्वदेशी आंदोलन का प्रमुख केंद्र था। आज फिर देश में स्वदेशी चेतना जगाने की आवश्यकता है। स्वदेशी के मार्ग पर चलकर ही गौरवशाली बनेगा भारत का भविष्य..“ – ये उद्गार थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल के जो स्वदेशी जागरण मंच और स्वदेशी रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से स्वदेशी बलिदान दिवस पर आयाेजित कार्यक्रम काे मुख्य वक्ता के रुप में संबाेधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत पर अनेक आक्रमण हुए, लेकिन भारत एक रहा। लाहौर से लेकर ढाका तक यह सब हमारा अपना था, है और रहेगा। हमारी नदियों, हमारी भूमि और हमारे स्वभाव का ज्ञान नई पीढ़ी में जागृत होना चाहिए।
नेशनल लाइब्रेरी में आयोजित इस कार्यक्रम में अंग्रेजाें के विदेशी कपड़े के आयात का विरोध करने के दाैरान 12 दिसंबर, 1930 में बलिदान हुए बाबू गेनू को श्रद्धांजलि दी गई। उनके बलिदान को स्वदेशी चेतना का प्रेरक क्षण बताते हुए राष्ट्रनिर्माण में स्वदेशी के योगदान का वर्णन किया। स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत काे याद करते हुए आपने कहा कि 12 दिसंबर, 1930 का दिन स्वदेशी आंदोलन को नई दिशा देने वाला दिन था। एक समय था जब भारत दुनिया के 40 प्रतिशत लोगों को कपड़ा निर्यात करता था। यूरोप कपास को पहचानता भी नहीं था और भारत वस्त्र उत्पादन में विश्वगुरु था। लेकिन अंग्रेज व्यापार करने नहीं आए थे, वे भारत की समृद्धि को नष्ट करने आए थे। हमारे उद्योग-धंधे को खत्म कर यही के धन का उपयोग कर ब्रिटेन से सामान भेजना शुरू किया गया। इसी षड्यंत्र के बीच 1905 में बंगाल का विभाजन कर भारत को बांटकर शासन करने की नीति अपनाई गई। उन्होंने कहा कि 1840 से 1920 के बीच बंगाल स्वदेशी आंदोलन का प्रमुख केंद्र था। इस दौरान यहां के समाज ने वैदिक युग के गौरव को पुनर्जीवित किया जिससे देश में स्वदेशी चेतना प्रबल हुई। अंग्रेजाें ने भारत के गौरवशाली इतिहास को धुंधला कर हमारी उपलब्धियों को छिपा दिया और शिक्षा व्यवस्था की दिशा ही बदल दी। उन्होंने कहा कि दुनिया में जब लोकतंत्र का नाम भी नहीं था, तब वैशाली में लोकतंत्र विकसित हो चुका था। अंग्रेजों के आने से पहले भारत वैश्विक जीडीपी में 24 प्रतिशत योगदान देता था, लेकिन 1947 में यह घटकर केवल 2.2 प्रतिशत रह गया। इसके बाद भी भारत की आत्मा नहीं टूटी। विकास तभी संभव है जब समाज स्वावलंबन की ओर लौटे और हर सुविधा सरकार पर निर्भर होकर न मांगे। अतीत में गुरुकुल, मंदिर और समाज ने मिलकर हर प्रकार की व्यवस्था बनाई थी, वही भावना फिर जागृत होनी चाहिए।
समारोह के मुख्य अतिथि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल डॉ. सीवी आनंद बोस ने कहा कि भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी है और अन्य भाषाओं के साथ सौतेली मां जैसा व्यवहार नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर “वोकल फॉर लोकल” का संदेश स्वदेशी को नई ऊर्जा दे रहा है। उन्होंने कहा कि भारत आत्मनिर्भर बनने की दिशा में तैयार है और बंगाल भी इस यात्रा में अग्रिम भूमिका निभाने को तैयार है। स्वामी विवेकानंद का संदेश दोहराते हुए उन्हाेंने कहा कि लक्ष्य प्राप्ति तक रुकना नहीं चाहिए। नेशनल लाइब्रेरी के निदेशक अजय प्रताप सिंह ने कहा कि स्वदेशी अपनाना ही देश को विकास की राह पर ले जाना है। अर्थशास्त्री श्री धनपत राम अग्रवाल ने भारत के गौरवशाली अतीत को याद करते हुए कहा कि यह देश स्वावलंबन के दम पर इतना मजबूत था कि दुनिया भर के लोग आकर्षित होकर आए और हमें लूट कर गरीब बना गए। विश्व सेवाश्रम संघ के ठाकुर श्री समीरेश्वर ब्रह्मचारी भी मौजूद रहे। वक्ताओं ने इस बात पर जाेर दिया कि भारत का अतीत गौरवशाली था, वर्तमान चुनौतीपूर्ण है, लेकिन भविष्य केवल स्वदेशी के मार्ग पर ही गौरवशाली बन सकता है।
आयोजन की सफलता में अरुण प्रकाश मल्लावत , राजेन्द्र कुमार व्यास, जयगोपाल गुप्ता, सुभाष सराफ, अशोक गुप्ता आदि सक्रिय रहे।
