डॉ उमेश प्रताप वत्स
बम बम भोले, बम बम भोले, जय शिव शंकर, हर हर महादेव के बहुत ही पवित्र, ऊर्जावान, आस्था से भरपूर इन जय घोष से गूंजित पूरा हिमालय प्रति वर्ष आषाढ़ मास में भक्ति में शक्ति के पवित्र सामंजस्यपूर्ण संबंध का साक्षी बनता है।
उत्तर से दक्षिण और अटक से कटक तक भगवान शिव शंकर के भक्त खान-पान, रहन-सहन, भाषा-क्षेत्र आदि सब भेद भूलाकर हिंदुओं के इस सर्वोत्तम पावन तीर्थ पर आकर एक हो जाते हैं। यहां एक ही भाव होता है कि भोले के भक्त सब भाई-भाई। यही भाव कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाता है और इसकी सुरक्षा के लिए कोई भी बलिदान देने को सदैव तत्पर रहता है।
जम्मू-कश्मीर में हिमालय की गोद में सुदूर स्थित एक पवित्र गुफा है। बर्फीले पहाड़ो से घिरी हुई ये गुफा हिंदुओं का सबसे पवित्र स्थल है। यहां पर हर वर्ष प्राकृतिक रूप से बर्फ के शिवलिंग का निर्माण होता है। गर्मियों के कुछ दिनों को छोड़कर यह गुफा हमेशा बर्फ से ढकी रहती है। सिर्फ इन्ही दिनों में लगभग दो मास के लिए यह गुफा तीर्थयात्रियों के दर्शनार्थ खुली रहती है। शिवलिंग के रूप में बर्फानी बाबा के दर्शन करने के लिए देश के सभी क्षेत्रों से लाखों भक्त यहां आते हैं। प्राकृतिक रूप से बर्फ से निर्मित इस शिवलिंग को बाबा बर्फानी के नाम से जाना जाता है।
पिछले दो वर्षों से कोरोना के चलते यह यात्रा नहीं हो रही थी। इस बार अमरनाथ यात्रा 30 जून से शुरु हो रही है जो कि 11 अगस्त रक्षाबंधन तक चलेगी। उल्लेखनीय है कि आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए भारतभर से लाखों लोग यहां आते हैं।
यात्रा के मुख्यतः दो मार्ग हैं। एक बालटाल से दूसरा पहलगाम से। बालटाल से गुफा की दूरी लगभग 14 किलोमीटर हैं जो कि सीधी उतराई और फिर संगम से सीधी कठिन चढ़ाई है अक्सर जो भक्त कम समय में यात्रा पूरी करना चाहते हैं वे इस मार्ग का चुनाव करते हैं क्योंकि इस मार्ग से यदि सुबह 6 बजे यात्रा प्रारंभ की जाये तो बाबा बर्फानी के दर्शन करके भक्तजन देर शाम तक दिन के दिन वापिस आ सकते हैं अथवा शाम को गुफा के पास ठहरकर सुबह वापिस आ सकते हैं। यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टि से भी संदिग्ध है। इसीलिए सरकार इस मार्ग को सुरक्षित नहीं मानती और अधिकतर यात्रियों को पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन रोमांच और जोखिम लेने का शौक रखने वाले लोग इस मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं। इस मार्ग से जाने वाले लोग अपने जोखिम पर यात्रा करते है। रास्ते में किसी अनहोनी के लिए भारत सरकार जिम्मेदारी नहीं लेती है।
जबकि पहलगाम के आगे चंदनबाड़ी से यात्रा प्रारंभ करके शाम तक पंचतरणी तक पंहुचा जा सकता है, जहां रात्रि विश्राम के पश्चात सुबह उठकर ही गुफा के लिए पुनः यात्रा प्रारंभ की जा सकती है। यद्यपि इस मार्ग में भरपूर प्राकृतिक रोमांच होने के कारण भक्त जनों को यात्रा की थकान महसूस नहीं होती। यह रास्ता काफी कठिन है, यहाँ पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत शेषनाग नाम की झील है। इस झील में झांककर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया। यह झील करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली है। किंवदंतियों के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं। तीर्थयात्री यहाँ रात्रि विश्राम करते हैं। फिर गुफा के लिए आगे की 8 किलोमीटर पंचतरणी व पंचतरणी से पवित्र गुफा के लिए 8 किलोमीटर खड़ी चढ़ाई वाली कठिन यात्रा प्रारंभ होती है। यद्यपि अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुँचते ही यात्रा की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार माता पार्वती के कहने पर भगवान शिव अमर कथा सुनाने को तैयार हुए थे। इसके लिए उन्होंने एक ऐसी गुफा चुनी थी जहां कोई और इस कथा को न सुन सके।
अमरनाथ गुफा में पहुंचने के पहले शिवजी ने नंदी, चंद्रमा, शेषनाग और गणेशजी को अलग-अलग स्थानों पर छोड़ दिया था। भगवान शंकर जब अर्द्धांगिनी पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने सर्वप्रथम छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा। जो आज भी अनंतनाग शहर के नाम से विख्यात है। शिवशंकर ने नंदी को जिस स्थान पर छोड़ा उसे बैलगांव कहा जाता था जो कि बाद में उच्चारण बिगड़कर पहलगाम हो गया। माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा और अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर छोड़ दिया। गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था, जहाँ आज भी शेषनाग झील है। जब मैं 2010 में तीसरी बार अपने परिवार के साथ बाबा बर्फानी के दर्शनों के लिए अमरनाथ यात्रा पर गया तो आकाश छूते ऊँचे पर्वतों के बीच शेषनाग झील में मुझे बहुत विशाल शेषनाग होने की अनुभूति हुई तब मैं यात्रा के मुख्य मार्ग से अलग होकर लगभग डेढ़ किलोमीटर नीचे झील में गया और परिवार सहित किनारे पर स्नान भी किया है। तर्कशील लोगों को शायद इस बात पर संदेह रहेगा। खैर! शेषनाग के बाद भोले बाबा ने गणपति गणेश जी को भी रुकने का आदेश दिया, जो गणेश टॉप नाम से जाना जाता है। कुछ दूर आगे चलकर महादेव नटराज ने तांडव नृत्य किया जिससे जटा में विराज गंगा की पांच धाराएं वहां बहने लगी, जिसे आज भी पंचतरणी के नाम से जाना जाता है। तब सबको यथास्थान छोड़कर पार्वती के संग ऐसे स्थान की खोज करने के लिए चल दिये जहां प्राणीमात्र कोई न आ सके। वर्तमान गुफा ही वह पवित्र स्थान था जहां देवों के देव महादेव शंकर ने देवी पार्वती को अमर कथा सुनाई।
ये सभी उल्लेखित स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा के मार्ग में आते हैं।
यहां यह जनश्रुति भी प्रचलित है कि इसी गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी। जिस आसन पर भगवान श्री शंकर बैठे थे उसके नीचे एक तोते का अण्डा पहले से ही था जो कि कालाग्नि को दिखाई नहीं दिया। इसके पश्चात् भगवान श्री शंकर नेत्र मूंद कर एकाग्रचित हो पार्वती जी को अमर कथा सुनाने लगे और पार्वती जी उनके हर वाक्य पर हुंकारा भरने लगीं। धीरे-धीरे पार्वती जी को नींद आने लगी। उसी समय उस अण्डे में से जीव प्रकट हुआ। श्री पार्वतीजी तब तक हुंकारा देते-देते सो चुकी थी। अब उसके स्थान पर तोता हुंकारा देने लगा। जब भगवान शंकर अमरकथा समाप्त कर चुके तो श्री पार्वतीजी की आँखे खुलीं। भगवान शंकर ने उनसे पूछा कि क्या- उन्होंने अमर कथा सुनी है ? श्री पार्वती ने उत्तर दिया कि पूरी अमर कथा नहीं सुनी। इस पर भगवान श्रीशंकर ने पूछा- “ तब हुंकारा कौन देता था ? ”
पार्वती जी बोली –“ मुझे नहीं मालूम ।”
तब भगवान श्री शंकर ने इधर-उधर देखा तो उनको एक तोता दिखाई दिया जो कि उनके देखते ही देखते उड़ गया। भगवान शंकर उठकर पीछे दौड़े। वह तोता उड़ता- उड़ता तीनों लोकों में गया लेकिन उसको कहीं जगह नहीं मिली। श्री वेदव्यास की पत्नी अपने घर के द्वार पर बैठी जम्हाई ले रही थी, बस तोता उनके पेट में चला गया। वह उनके गर्भ में रह गया। ऐसा कहा जाता है कि ये बारह वर्ष तक गर्भ के बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पड़ेगा, तभी ये गर्भ से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र शुकदेव कहलाये। अमरकथा सुनने के कारण गर्भ में ही इन्हें वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान हो गया था। कहते हैं कि तोते के अतिरिक्त कबूतर-कबूतरी का जोड़ा भी यह अमरकथा सुनकर अमृत्व को प्राप्त हो गया।
कहते हैं कि गुफा में आज भी पवित्र मन वाले भाग्यशाली श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। भक्तजनों का उद्धार करने के लिए ही शिव और पार्वती अमरनाथ गुफा में बर्फ से बने शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए। जिनका आज भी प्राकृतिक रूप से निर्माण होता है।
यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। यह अलग बात है कि हेलिकॉप्टर सुविधा के कारण एवं श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ के चलते भी साइज का यह नियम खंडित हो जाता है। आश्चर्य की बात है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए।
कुछ विद्वानों का मत है कि अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गडरिए को चला था। आज भी एक चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। वैसे भी यात्रा की व्यवस्था में सेना व अर्धसैनिक बलों के अतिरिक्त मुस्लिम युवकों का भी योगदान रहता है। हजारों मुस्लिम परिवारों के घर के चुल्हें इसी यात्रा के बल पर खचर, टेंट, गाइड, मजदूरी के माध्यम से वर्ष भर चलते हैं।
यद्यपि राजनैतिक कारणों एवं पाक पोषित आतंकी गुटों के चलते अमरनाथ यात्रा का विरोध भी किया जाता है और इसे अवरुद्ध करने के लिए यदा-कदा यात्रा पर घात लगाकर कायराना हमला भी किया जाता है। किंतु इस बार ऐसी मानसिकता के मंसूबों को नेस्तनाबूद करने के लिए चाक-चौबंद व्यवस्था की गई है। इस बार लंगर, चिकित्सा सुविधाओं के साथ-साथ सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं ताकि हिंदूस्थान के हर क्षेत्र से आने वाले भक्तजन श्रद्धापूर्वक अपने भोले बाबा के दर्शन कर सकें।