वाराणसी। बदलते दौर में ऑनलाइन मार्केट और रेडीमेड कपड़ों की रफ्तार ने जहां पारंपरिक टेलरिंग को पीछे धकेल दिया, वहीं बनारस के हथुआ मार्केट स्थित ‘शौकीन टेलर्स’ ने इस धारा के विपरीत चलकर अपनी अलग पहचान कायम रखी है। वर्ष 1976 में हाजी शौकत खान द्वारा स्थापित यह टेलरिंग दुकान आज भी अपने बेमिसाल फिटिंग और पारंपरिक अंदाज के कारण ग्राहकों की पहली पसंद बनी हुई है।कभी शहर के मध्य स्थित हथुआ मार्केट में ग्राहकों की ऐसी भीड़ रहती थी कि पैर रखने की जगह नहीं मिलती थी। उस दौर में शौकीन टेलर्स के नाम से ही लोगों का भरोसा बनता था। आज जबकि बड़े-बड़े मॉल और ब्रांडेड आउटलेट्स शहर में खुल चुके हैं, फिर भी शौकीन टेलर्स ने सिलाई की कला को जिंदा रखा है। 70 वर्षीय शौकत मियां आज भी रोज घर से दुकान पर आते हैं और स्वयं ग्राहकों के कपड़ों की कटिंग करते हैं। वे कहते हैं कि उनके यहाँ दूर-दूर से लोग सिर्फ परफेक्ट फिटिंग के लिए आते हैं।शौकत मियां के पुत्र शाहिद खान अब व्यवसाय में सक्रिय रूप से साथ दे रहे हैं। दोनों पिता-पुत्र की मेहनत से अब दुकान का रूप और भी भव्य हो चुका है। परंपरागत सिलाई के साथ यह परिवार अब रेडीमेड कपड़ों का भी अच्छा संग्रह रखता है जिसमें बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के लिए आकर्षक परिधान उपलब्ध हैं। खुद की डिजाइन की हुई ड्रेस भी यहां खूब बिकती हैं।ग्राहकों की पसंद के अनुसार शौकीन टेलर्स में कुर्ता-पैजामा, सदरी, पैंट-शर्ट और शादी-विवाह के खास मौकों के लिए दूल्हे के परिधान सजावट के साथ तैयार किए जाते हैं। चुनावी दौर और त्योहारों के समय दुकान में इतनी भीड़ होती है कि किसी के पास बातचीत का भी समय नहीं रहता।शौकत मियां बताते हैं, “हमारे काम में समय की जरूरत होती है। हफ्ते-दस दिन का इंतजार ग्राहक शौक से करते हैं क्योंकि उन्हें भरोसा है कि कपड़ा जैसा उन्होंने सोचा, वैसा ही मिलेगा।” यही भरोसा इस टेलरिंग की असली पूंजी है।दरअसल, बनारस अपनी मस्ती, संस्कृति, घाटों, स्वाद और लोगों के शौक के लिए जाना जाता है। हथुआ मार्केट कभी बनारस के व्यापारिक केंद्रों में शुमार थी, जहां ग्राहकों को एक ही जगह लगभग सब कुछ मिल जाता था। हालांकि धीरे-धीरे बड़े बाजारों और ऑनलाइन शॉपिंग की मार से यहां का रौनक कम हुआ, लेकिन शौकत मियां जैसे कारीगरों ने इस बाजार की परंपरा को जिंदा रखा है।आज भी जब कोई ग्राहक फोटिंग या डिजाइन के लिए खास कपड़ा लेकर आता है, तो उसकी पहली मंजिल शौकीन टेलर्स ही होती है। यही वजह है कि यह दुकान सिर्फ सिलाई की नहीं बल्कि बनारसी जज्बे और हुनर की मिसाल बन गई है।
