मनुष्य को प्रकृति से आत्मसात करता है अष्टांग योग, हासिल होती है संपूर्णता

 

कोलकाता । 21 जून को दुनियाभर पर कम से कम 200 देश योग दिवस के तौर पर पालित कर रहे हैं। योग भारत की ओर से दुनिया को दी गई एक अनमोल धरोहर है जिसे लाखों सालों से हमारे ऋषि-मुनियों ने संजोकर मनुष्यता को उपहार के तौर पर दिया है। आज दुनिया भर में योग की उपयोगिता को समझा जाने लगा है। इसका उदाहरण हाल ही में देखने को मिला जब स्वामी शिवानंद को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। 126 साल के शिवानंद स्वामी उम्र के इस मोड़ पर भी हष्ट-पुष्ट चलते फिरते बोलते बतियाते और लोगों को योग सिखाते हैं।
आर्य समाज के गुरुकुल से जुड़े योग शिक्षक कमलाकर गुप्ता कहते हैं कि योग मनुष्य की भौतिकता को आध्यात्मिकता से जोड़कर मनुष्यता को संपूर्ण बनाता है।
“हिन्दुस्थान समाचार” से विशेष बातचीत में उन्होंने बताया कि पतंजलि योग सूत्र के मुताबिक योग का संपूर्ण रूप अष्टांग योग है। योग करने के वृहद लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि योग करने से मनुष्य के दिमाग में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है जो अच्छी बुरी परिस्थिति में मनुष्य को सकारात्मक रहने की शक्ति देता है। ऐसी उर्जा शरीर के साथ-साथ आत्मा को भी मजबूत बनाता है जिसकी वजह से मनुष्य रोगमुक्त और खुशहाली से युक्त होता है। इसीलिए कहते हैं कि योग मनुष्य को संपूर्णता दिलाता है।
कमलाकर ने कहा, “भारतीय धर्म एवं दर्शन में योग का अत्यधिक महत्व है। आध्यात्मिक उन्नतियां शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए योग की आवश्यकता व महत्व को प्रायः सभी दर्शनों एवं भारतीय धार्मिक सम्प्रदायों ने एकमत व मुक्तकंठ से स्वीकार किया है। ”
उन्होंने कहा, “वैदिक जैन और बौद्ध दर्शनों में योग का महत्व सर्वमान्य है। सविकल्प बुद्धि और निर्विकल्प प्रज्ञा में परिणित करने हेतु योग-साधना का महत्व सर्वमान्य स्वीकृत है। सविकल्प और निर्विकल्प का वर्तमान युग में महत्व और अधिक बढ़ गया है। इसके बढ़ने का कारण व्यस्तता और मन की व्यग्रता है।”
उन्होंने कहा कि आज आधुनिक मनुष्य को योग की ज्यादा आवश्यकता है, जबकि मन और शरीर अत्यधिक तनाव, वायु प्रदूषण तथा भागमभाग के जीवन से रोगग्रस्त हो चला है। अंतरिक्ष में योग का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है कि मनुष्यजाति को अब और आगे प्रगति करना है तो योग सीखना ही होगा। अंतरिक्ष में जाना है, नए ग्रहों की खोज करना है। शरीर और मन को स्वस्थ और संतुलित रखते हुए अंतरिक्ष में लम्बा समय बिताना है तो विज्ञान को योग की महत्ता और महत्व को समझना होगा।”
उन्होंने यह भी दावा किया कि योग भविष्य का धर्म और विज्ञान है इसीलिए भविष्य में योग का महत्व और अधिक बढ़ेगा। यौगिक क्रियाओं से वह सब कुछ बदला जा सकता है जो हमें प्रकृति ने दिया है और वह सब कुछ पाया जा सकता है जो हमें प्रकृति ने नहीं दिया है। अंततः मानव अपने जीवन की श्रेष्ठता के चरम पर अब योग के ही माध्यम से आगे बढ़ सकता है, इसलिए योग के महत्व को समझना होगा। योग व्यायाम नहीं, योग है विज्ञान का चौथा आयाम और उससे भी आगे।”

इसी तरह से भारतीय योग संस्थान से जुड़ी योग प्रशिक्षक अंजलि खूंगर ने  कहा कि केवल आसन और प्राणायाम करना ही योग नहीं है बल्कि अष्टांग योग को अपनाकर ही प्रकृति से असली जुड़ाव हो सकता है।
पेशे से केमिस्ट्री शिक्षक अंजलि ने कहा, ” आम तौर पर योग को आसन से जोड़कर देखा जाता है। यही वजह है कि सामान्य लोगों की जानकारी भी योग को लेकर आसन तक ही सीमित है।
योग में आसन एक महत्वपूर्ण अंग है लेकिन योग आसन से कहीं बढ़कर है। अष्टांग योग के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि अष्टांग योग के आठ अंग हैं।
पहला है यम। यम के अंतर्गत पांच महत्वपूर्ण बातें शामिल की गई हैं जिसका पालन आवश्यक माना गया है।इसमें हमेशा सत्य बोलना, अहिंसा का पालन, अस्तेय यानी चोरी ना करना, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यानी आवश्यकता से अधिक चीजों को संग्रहित ना करने का कहा गया है।

दूसरा अंग है नियम। यम की तरह ही नियम में भी पांच महत्वपूर्ण बातों को शामिल किया गया है। इसमें ईश्वर प्राणिधान यानी ईश्वर की उपासना, तप, संतोष, शौच और स्वाध्याय का नियमित पालन करने का कहा गया है।

तीसरा है आसन। अष्टांग योग का तीसरा और महत्वपूर्ण अंग है आसन। योग को आमतौर पर आसनों से ही जोड़कर देखा जाता है। जब हम स्थिर अवस्था में बैठकर सुख की अनुभूति करते हैं तो ये आसन कहलाता है। आसन के माध्यम से संपूर्ण बीमारियों का इलाज करने में मदद मिलती है।

चौथा अंग है प्राणायाम। शरीर को मजबूत बनाने के लिए जिस तरह आसन का प्रयोग किया जाता है उसी तरह मष्तिष्क और मन को मजबूती देने के लिए प्राणायाम किया जाता है। प्राणायाम सांसों की गति को नियंत्रित करने की प्रक्रिया होती है।

पांचवा हिस्सा है प्रत्याहार। हमारी समस्त इंद्रियों को सांसारिक विषयों से हटाकर आंतरिक विषयों पर लगाने की प्रक्रिया प्रत्याहार कहलाती है।‌

छठा है धारणा। धारणा का व्यापक अर्थ है। इसमें ईश्वर द्वारा निर्मित सभी वस्तुओं को उन्हीं का अंश मानने की भावना ली जाती है। संसार की हर वस्तु को समान समझना धारणा कहलाता है।

सातवां हिस्सा ध्यान है। अष्टांग योग का सातवां अंग है ध्यान। मन को एकाग्र करने की प्रक्रिया ध्यान कहलाती है। इस प्रक्रिया में आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की कोशिश की जाती है।
आठवां हिस्सा है समाधि। अष्टांग योग का आखिरी और आठवां अंग है समाधि। अष्टांग योग में समाधि वो अवस्था है जिसमें आत्मा का परमात्मा में मिलन हो जाता है। इस स्थिति में मनुष्य को किसी भी चीज का अहसास नहीं होता है। वह परम शांति और परम आनंद की अनुभूति प्राप्त करता है।
अंजलि ने कहा कि योग के इन आठों हिस्सों को अपनाकर ही पूर्णता की प्राप्ति हो सकती है। केवल आसन प्राणायाम अनुलोम विलोम से बहुत अधिक लाभ होने वाला नहीं है। उन्होंने बचपन से ही योग का अभ्यास करने की शुरुआत की नसीहत देते हुए कहा कि लोग अमूमन सोचते हैं कि उम्र के आखिरी पड़ाव में अथवा रिटायर होने के बाद योग आदि करेंगे लेकिन योग शरीर की शुद्धता और स्वस्थता को बचाए रखने का सबसे कारगर जरिया है इसीलिए बचपन से ही इसकी शुरुआत कर देनी चाहिए।

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