“समर्पण, चेतना और राष्ट्रशक्ति की मूर्ति: पद्म भूषण दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा को समर्पित”

महामहिम राष्ट्रपति महोदया द्वारा परमपूज्या दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा को ‘पद्म भूषण’ सम्मान, सामाजिक कार्य के क्षेत्र में

लेखक: रविंद्र आर्य

नई दिल्ली। नई दिल्ली में आयोजित प्रतिष्ठित ‘पद्म पुरस्कार–2025’ समारोह में महामहिम भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आध्यात्मिक क्षेत्र की महान विभूति एवं सामाजिक नवजागरण की अग्रदूत पूज्य साध्वी ऋतम्भरा को ‘सामाजिक कार्य’ की श्रेणी में ‘पद्म भूषण’ सम्मान से विभूषित किया। इस विशिष्ट सम्मान के लिए उन्हें हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

उनका जीवन राष्ट्रभक्ति, सेवा और अध्यात्म का अद्वितीय संगम है। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में उन्होंने एक प्रखर भूमिका निभाई और इस ऐतिहासिक संघर्ष को स्वर देकर जनमानस में चेतना, जागरूकता और दृढ़ संकल्प का संचार किया। उनकी ओजस्वी वाणी, तपस्वी आचरण और समाजसेवा को समर्पित जीवन ने करोड़ों लोगों को नई दिशा दी।

साध्वी ऋतम्भरा: धर्म और सेवा का जीवंत स्वरूप

दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा का जीवन वाणी की शक्ति और विचार की अग्नि का प्रतीक है। उनका आध्यात्मिक प्रभाव केवल प्रवचनों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने समाज के सबसे वंचित वर्गों तक पहुँचकर उन्हें आश्रय, शिक्षा और गरिमा का जीवन प्रदान किया।

उन्होंने विवेकानंद केंद्र और वात्सल्य ग्राम जैसे संस्थानों की स्थापना कर नारी सशक्तिकरण, बाल संरक्षण, वृद्ध सेवा और ग्रामीण पुनर्विकास के क्षेत्रों में अनुकरणीय कार्य किए हैं। वात्सल्य ग्राम विशेष रूप से इस दृष्टि से अद्वितीय है कि यह ऐसा ग्राम है जहाँ खून के रिश्तों से नहीं, बल्कि वात्सल्य और करुणा के धागों से बंधे परिवारों की संरचना की गई है। यहाँ अनाथ बच्चे, विधवा महिलाएँ, वृद्धजन और निराश्रित मिलकर एक परिवार की गरिमा में जीवन यापन करते हैं।

राष्ट्रचेतना का पुनरुत्थान

पूज्य दीदी माँ का योगदान केवल समाजसेवा तक सीमित नहीं है; वे भारत की सांस्कृतिक अस्मिता और राष्ट्रचेतना की प्रखर प्रतिनिधि भी रही हैं। रामजन्मभूमि आंदोलन के समय उनकी ओजस्वी वाणी ने देशवासियों के अंतर्मन को झकझोर दिया। उन्होंने भारत की सनातन परंपरा को केवल भाषणों में नहीं, बल्कि सेवा और साधना के क्षेत्र में भी जीवंत किया।

यह पद्म सम्मान किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस विचार का सम्मान है जो मानता है कि भारत अपनी आत्मशक्ति से पुनः जाग्रत हो सकता है — जब उसके संन्यासी, सेवक और साध्वी पुनः जनमानस से जुड़ें।

नवभारत की साध्वी

जब भारत ‘अमृतकाल’ की ओर अग्रसर है, तब साध्वी ऋतम्भरा जैसी विभूतियाँ यह स्मरण कराती हैं कि सच्चा नवभारत वह होगा जो सेवा और अध्यात्म से सींचा गया हो। उनका संकल्प और साधना आने वाली पीढ़ियों को यह प्रेरणा देते रहेंगे कि राष्ट्रसेवा केवल राजनीति या प्रशासन के माध्यम से नहीं, बल्कि त्याग, तपस्या और सामाजिक समर्पण से भी संभव है।

 

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