बंगाल विधानसभा में तृणमूल के 118 विधायकों ने नहीं लिया किसी भी चर्चा में हिस्सा

 

कोलकाता, 13 फरवरी ।पश्चिम बंगाल की विधानसभा में 118 तृणमूल विधायकों की निष्क्रियता को लेकर पार्टी नेतृत्व ने सख्त रुख अपनाया है। पिछले चार वर्षों में इन विधायकों ने किसी भी चर्चा, प्रश्नोत्तर सत्र, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव या विधेयक पर बहस में भाग नहीं लिया। अब तृणमूल नेतृत्व ने इन विधायकों को सक्रिय करने की जिम्मेदारी वरिष्ठ नेता और संसदीय कार्य मंत्री शोभनदेव चटर्जी और पार्टी के मुख्य सचेतक निर्मल घोष को सौंपी है।

हाल ही में तृणमूल कांग्रेस की विधानमंडलीय दल की समीक्षा बैठक में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि पार्टी के 222 विधायकों में से 118 ने बीते चार सालों में विधानसभा में एक शब्द तक नहीं बोला। इसे लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बजट सत्र के पहले ही दिन विधायकों की बैठक बुलाई थी।

संसद और विधानसभा की राजनीति में निष्क्रिय सदस्यों को मजाक में ‘मूकबधिर स्कूल’ कहा जाता है। कभी बंगाल के कुछ सांसदों को दिल्ली में इस उपाधि से नवाजा गया था, लेकिन आज बंगाल के कई सांसद लोकसभा और राज्यसभा में मुखर हैं। इसके विपरीत, विधानसभा में तृणमूल विधायकों की चुप्पी पार्टी के लिए असहज स्थिति उत्पन्न कर रही है।

2026 में बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं और पार्टी के पास अपने विधायकों को सक्रिय करने के लिए सिर्फ एक साल का समय है। इसी को ध्यान में रखते हुए तृणमूल नेतृत्व ने निर्णय लिया है कि 118 निष्क्रिय विधायकों को हर हाल में विधानसभा में बोलने के लिए प्रेरित किया जाएगा।

संसदीय कार्य मंत्री शोभनदेव चटर्जी ने कहा, “हम विधायकों को दंडित नहीं करना चाहते, बल्कि उन्हें सत्र के दौरान सक्रिय करने की जिम्मेदारी लेंगे। बजट सत्र ही नहीं, बल्कि भविष्य में भी सभी विधायकों को चर्चा में भाग लेने के लिए तैयार किया जाएगा।”

बुधवार को बजट पेश होने के बाद चार दिनों का अंतराल है, जिसमें सोमवार और मंगलवार को राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा होगी और बुधवार-गुरुवार को बजट पर बहस होगी। इस चर्चा के दौरान उन विधायकों को अनिवार्य रूप से बोलने के निर्देश दिए गए हैं, जिन्होंने अब तक विधानसभा में कोई भाषण नहीं दिया।

मुख्य सचेतक निर्मल घोष ने अपने कार्यालय को निर्देश दिया कि इन विधायकों के नाम स्पीकर के पास भेजे जाएं ताकि वे अनिवार्य रूप से चर्चा में भाग लें। तृणमूल संसदीय दल ने पहली बार बोलने वाले विधायकों की सूची भी तैयार कर ली है, जिसमें आमता से सुकांत पाल, बसीरहाट दक्षिण से सप्तर्षि बनर्जी, हरिपाल से करबी मन्ना, चांपदानी से अरिंदम गुइन सहित कई नाम शामिल हैं।

इसके अलावा, उपचुनाव में नवनिर्वाचित विधायकों को भी चर्चा में भाग लेने के लिए कहा गया है। इनमें मेदिनीपुर के विधायक सुजॉय हाजरा, नैहाटी के विधायक सनत डे, तालडांगर के विधायक फाल्गुनी सिंह, हाड़ोआ के विधायक शेख रबीउल इस्लाम और सिताई की विधायक संगीता राय प्रमुख हैं।

कुछ विधायकों ने अपनी चुप्पी को सही ठहराने की कोशिश की है। बर्दवान उत्तर के विधायक निशीथ मलिक जो 2016 से विधायक हैं, ने कहा, “मेरे क्षेत्र के सभी काम बिना बोले ही हो जाते हैं, इसलिए बहस में भाग लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती।”

हालांकि, तृणमूल के सभी विधायक ऐसे नहीं हैं। मुर्शिदाबाद के लालगोला विधायक मोहम्मद अली ने पहली बार विधायक बनने के बावजूद चार वर्षों में लगभग सभी महत्वपूर्ण चर्चाओं में भाग लिया। उनकी सक्रियता को देखते हुए पार्टी ने उन्हें नए विधायकों के साथ एक बार फिर बोलने का मौका दिया है।

 

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