हिंदी, भोजपुरी कवि गोष्ठी में कवियों ने श्रोताओं को खूब गुदगुदाया

जमानियां (उ. प्र.), 9 फरवरी : जमानियां स्टेशन बाजार में डा.सुरेश राय के संयोजकत्व में उनके आवास पर सौरभ साहित्य परिषद के संस्थापक वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र सिंह की अध्यक्षता में हिंदी, भोजपुरी कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हिंदू स्नातकोत्तर महाविद्यालय जमानियां गाज़ीपुर के हिंदी विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. अखिलेश कुमार शर्मा शास्त्री रहे। प्रो.शास्त्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि कवि जीवन की बिखरी हुई अनुभूतियों को अपने अगाध ज्ञान और विलक्षण प्रतिभा द्वारा सार्थक शब्दों के संयोग से कविता का निर्माण करते हैं जिसमें जीवन और जगत के नाना तान वितान श्रोता अथवा पाठक तक पहुंचता है जो लोक साहित्य और शिष्ट साहित्य तक अपना यथेष्ठ स्थान ग्रहण कर संग्रहणीय हो जाता है। कवि का यह कर्म जीवन को मंगल बनाने का उद्योग है इसलिए वह अपनी रचनाओं में सदा सर्वदा जीवित रहता है। उन्होंने कविता को जीवन के लिए उपयोगी बताते हुए सृजन को बेहतर बनाने की दिशा में प्रयत्नशील कवि कर्म की सराहना की।गाज़ीपुुर (उ. प्र.) के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य कामेश्वर द्विवेदी ने जब सस्वर पाठ शुरू किया “मंजरी मरन्द गंध उड़ती पवन संग धरती है रंग जाती वासंती के रंग में। भ्रमरों की गूंज और मीठी कूक कोकिलों की भर देती अमित उमंग अंग अंग में।” तो ऐसी शमा बंधी कि शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।पूर्व प्रधानाध्यापक (प. बं.) रामपुकार सिंह “पुकार गाज़ीपुरी” ने गोष्ठी को बुलंदी पर पहुंचाते हुए बसंत पर प्यारी रचना उद्धृत की।
वसंत आए तो मन भी वसंत हो जाए, प्रकृति से प्रेम मन ही मन अनंत हो जाए।गाजीपुरी जी की अन्य कविताएं भी स्तरीय एवं कर्णप्रिय थीं जिन्हें श्रोताओं का भरपूर प्यार मिला।कलकत्ता से पधारे शिक्षक सुकंठ कवि नागेंद्र कुमार दुबे ने जब सस्वर पाठ किया…” दिल में बसे हो मेरे प्रभु राम, तुम ही बताओ मैं क्या करूं?” को सुमधुर ध्वनि ने तालियों की निर्बाध स्थिति बन गई।उन्होंने अपनी माटी,बोली भाषा, खेती किसानी एवं मानवीय संबंधों को रेखांकित करती हुई अन्य कई रचनाओं से श्रोताओं को खूब गुदगुदाया।उमाशंकर सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि सभी कवियों की प्रस्तुति अद्वितीय है मैं अपनी ओर से सबके उज्ज्वल भविष्य की मंगलकामनाएं संप्रेषित करता हूं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सौरभ साहित्य परिषद के संस्थापक एवं वरिष्ठ साहित्यकार कृत कार्य शिक्षक राजेंद्र सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन के समय अपनी रचना ” जोर से ओके बोलाव आदमी बा, नेह के दियना जराव आदमी टूट गइल तार ई कहिए से जिनगी के आपुस में फिर से सटाव आदमी बा ” अपने अंदाज से पढ़ा तो श्रोता वाह वाह कह उठे।अंत में कार्यक्रम के संयोजक डा सुरेश राय ने सभी के प्रति आभार जताया।

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