कोलकाता । गत सोमवार को पुरुलिया में प्रशासनिक बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिलाधिकारी राहुल मजूमदार को सरेआम फटकार लगाते हुए कहा, “तुम किस तरह से जिला चला रहे हो? इतने दिनों से जिले में तुम्हारी नियुक्ति है। अगर तुम हमारे पार्टी के व्यक्ति होते तो तुमको खींचकर चार थप्पड़ लगाती।”
राज्य की संवैधानिक प्रमुख के इस तरह के बर्ताव और ऐसी भाषा में फटकार सुनकर भी डीएम ने कुछ नहीं कहा और 72 घंटे के अंदर गत गुरुवार को राहुल मजूमदार का तबादला कर दिया गया है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि ममता के कोप भाजन बनने की वजह से ही उनका तबादला हुआ है। अब मुख्यमंत्री के इस बर्ताव को लेकर प्रबुद्ध जनों ने सवाल खड़ा किया है। दावा किया है कि बनर्जी के इस तरह के बर्ताव की वजह से आईएएस-आईपीएस अधिकारी राज्य में पोस्टिंग नहीं चाहते हैं। इस बाबत बेसु के पूर्व कुलपति तथा वेबेल के पूर्व चेयरमैन निखिल रंजन बनर्जी ने “हिन्दुस्थान समाचार” से विशेष बातचीत में कहा, “मैं राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं और राजनीति की बातें भी नहीं करना चाहता। लेकिन जिस तरह का बर्ताव मुख्यमंत्री ने किया है, अगर ऐसा ही चलता रहा तो कई मेधावी बंगाली नौकरशाह हवा के साथ उड़ जाएंगे। यानी दूसरे राज्य में अपनी नियुक्ति चाहेंगे।”
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के इस तरह के बर्ताव पर न केवल दूसरे राज्यों की बल्कि केंद्र की भी नजर पड़ेगी और यह काफी अशोभनीय है। उन्होंने कहा कि यूरोप और अमेरिका में भी नौकरशाहों से इस तरह के बर्ताव के उदाहरण नहीं मिलते। प्रशासनिक बैठक में अधिकारियों को ममता बनर्जी द्वारा “तुम” कहकर संबोधन किए जाने की आलोचना उन्होंने की और कहा कि जब मैं शिक्षक था तो अपने छात्रों को तुम कहता था क्योंकि छात्र और शिक्षक के बीच का रिश्ता ऐसा ही ठीक लगता है। अपने सहपाठियों को तुम कहता हूं। इसके अलावा आज तक किसी को मैंने “आप” छोड़कर “तुम” नहीं कहा।” संवैधानिक शीर्ष पद पर बैठने वालों को तो निश्चित तौर पर अपने बर्ताव का ख्याल रखना चाहिए।”
इसी तरह से लंबे समय तक ममता बनर्जी के आंदोलन के साथ ही रहे मनोज चक्रवर्ती ने भी मुख्यमंत्री के इस बर्ताव की निंदा की है। तृणमूल प्रभावित राज्य सरकारी कर्मचारी फेडरेशन के संस्थापक और पूर्व अध्यक्ष रहे मनोज ने “हिन्दुस्थान समाचार” से विशेष बातचीत में कहा, “1967 में मैं सरकारी कर्मचारी बना था और 2007 में सेवानिवृत्त हुआ। और लगातार पार्टी तथा ममता बनर्जी के साथ मिलकर काम करता रहा हूं। जनता ने जिन्हें चुना है वह किस तरह से सार्वजनिक तौर पर बर्ताव करेंगे यह उनके विवेक पर निर्भर करता है। हर किसी के बात करने का अपना एक तरीका है।”
उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी के बारे में मैं बहुत कुछ नहीं कहूंगा लेकिन एक वरिष्ठ नौकरशाह से बात करते समय तुम के बजाय आप बोला जाए तो शोभनीय होता है। हालांकि डीएम खुद उनके इस बर्ताव को लेकर कुछ नहीं बोले और चुपचाप सह लिया तो मैं कोई नहीं होता। हालांकि अगर डी एम की जगह मैं होता तो इसका विरोध करता। मैंने माकपा के जमाने में भी लगातार विरोध किया और इसकी सजा मुझे कई बार तबादला कर दी गई लेकिन फिर भी मैंने अपमान नहीं सहा। मुझे लगता है कि मुख्यमंत्री ने जिस तरह से डीएम के साथ जिस भाषा में बात की है वह ठीक नहीं है।