
पुरुलिया : 16 दिसंबर 2010 के 14 साल पहले हुए नरसंहार की हाड़ कंपा देने वाली याद आज भी झालदा के पड़ोसी गांवों बाघबिंधा, चिरुटाड़, गुतिलौआ, नौआगढ़, अयोध्या पहाड़ियों के पास के लोगों को भयभीत कर देती है। आज भी उस शापित नरसंहार की भयावह तस्वीर लोगों की आंखों के सामने तैर जाती है।
उल्लेखनीय है कि 16 दिसंबर 2010 को लगभग शाम हो गयी थी। ऑलिव रंग के कपड़े पहने माओवादियों के इलाके में समझने में देर नहीं हुई की क्या होने वाला है। थोड़ी देर बाद माओवादियों की जन अदालत बैठी। उन्होंने तत्कालीन प्रमुख चपला गड़ात समेत उस क्षेत्र के गांवों के सात फॉरवर्ड ब्लॉक कर्मियों की हत्या कर खून की होली खेली। लोग उस दिन तमाम मीडिया के प्रभाव में माओ की हत्यालीला की खबर पूरे देश में जंगल की आग की तरह फैल गई।
आज माओवादी गतिविधियों की कोई खबर नहीं है। उस दिन की केवल भयानक यादें हैं। उस दिन माओवादियों ने चपला गाड़त को छोड़कर तपन सिंह सरदार, किंकर सिंह, अनंत महतो, गोपेश्वर महतो, अर्जुन सिंह मुरा, झालदा नंबर 1 पंचायत समिति के तत्कालीन अध्यक्ष चंडीचरण सिंह सरदार के भाई गोवर्धन सिंह की हत्या कर दी थी।
दहशत का आलम यह था कि घटना के बाद झालदा थाने की पुलिस की भी इलाके में घुसने की हिम्मत नहीं हुई। अगले दिन सुबह होने पर बड़ी संख्या में फोर्स गई और शवों को उठाकर थाने ले आई। आज घटना के 14 साल बाद कैसे हैं वो लोग जिन्होंने पहाड़ों में अपने परिजनों को खोया है? माओवादियों ने अपना आधार मजबूत करने के लिए जिस अविकसितता का सहारा लिया, क्या उसमें बदलाव आया है? क्या विकास आ गया है?
इलाके के कई घरों में अभी भी ताले लगे हुए हैं। उस घटना के बाद से कई लोग बाहर किराए के मकानों में रहते हैं। अगर आएं भी तो गांव में रात न गुजारते हैं। इतने समय बाद भी इलाके के लोग बाहरी लोगों के सामने इस तरह मुंह नहीं खोलना चाहते।
हर साल 16 दिसंबर को फॉरवर्ड ब्लॉक टीम द्वारा यह दिन मनाया जाता है। यह क्षेत्र अभी भी यादों और भय से ग्रस्त दिन गुजार रहा है।
