
वरिष्ठ पत्रकार सीताराम अग्रवाल
कोलकाता। महानगर के सुप्रतिष्ठित हिन्दुस्तान क्लब में अध्यक्ष सहित पूरी कार्यकारिणी का चुनाव हो रहा है। 30 सितम्बर को अंतिम चरण है, जब सशरीर उपस्थित होकर मतदान करना है। इसके पहले ई वोटिंग के जरिए मतदान हो चुका है। द्वय चुनाव अधिकारियों अरविन्द अग्रवाल व कमल नयन जैन द्वारा देर रात तक परिणाम भी घोषित कर दिये जाने की आशा है। यूं तो कार्यकारिणी का चयन प्रतिवर्ष होता है, परन्तु मतदान के जरिये चुनाव 5 वर्षों के बाद हो रहा है। किसी भी संस्था में यदि वोटिंग के जरिए परिचालन समिति चुनी जाती है, तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसा होना स्वस्थ परम्परा कही जायेगी, परन्तु हिन्दुस्तान क्लब में इस बार ऐसा नहीं है। प्रतिद्वंदिता करने वाले 2 गुटों में बंट गये हैं। एक का नेतृत्व अध्यक्ष पद के उम्मीदवार अंजनि धानुका कर रहे हैं, जबकि दूसरी ओर अध्यक्ष पद प्रार्थी ॠषभ कोठारी कमान संभाले हुए हैं।
दोनों गुटों ने विभिन्न पदों के लिए अपने उम्मीदवार घोषित कर पिछले कई दिनों से जोरदार प्रचार के जरिए वोटरों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की हैं। आरोप प्रत्यारोप लगाये गये। यहां तक कि कोर्ट केस तक हुआ। गबन, धोखाधड़ी जैसे आरोप लगाये गये। मामला लोअर कोर्ट से हाईकोर्ट तक चला गया। अब सवाल यह पैदा होता है कि करोड़पतियों, यहां तक कि अरबपतियों के इस क्लब में ऐसा होना कहां तक समीचीन है। उल्लेखनीय है कि इस समय क्लब की सदस्यता फीस 25 लाख रुपये है।
31 मार्च 2024 तक के रिकार्ड के अनुसार सदस्यों की संख्या 2773 है। इसमें करीब 75 प्रतिशत मारवाड़ी तथा शेष गुजराती हैं। इक्का- दुक्का ही अन्य समुदाय से है। इस प्रकार मारवाड़ियों के वर्चस्व वाला यह धनाढ्य क्लब बंगाल में संभवतः पहला है, जिसके रसोईघर में आजतक लहसुन- प्याज का प्रवेश नहीं हुई। सच पूछिये तो मारवाड़ी-गुजरातियों की भोजन शैली की यह विशेष पहचान है, जिस पर इन समुदायों को गर्व होता है। इसके अलावा इस क्लब के अधिकांश सदस्य सेवाभावी विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं। अतः यह बात समझ से परे है कि समाज में क्रिमी लेयर समझे जानेवाले ये सदस्य क्लब में परिवार सहित सात्विक भोजन करने तथा सामाजिक- धार्मिक परिवेश में रहने के बावजूद तामसी प्रवृत्ति क्यों अपनाते हैं। विवादित मसलों को आपस में सुलझाने के बजाय एक दूसरे पर घृणित आरोप लगाने में अपना कीमती समय क्यों बर्बाद करते है। समाज का रहनुमा बनने के बजाय अपने व्यक्तित्व को दागदार क्यों बनाते हैं। कभी सोचा है कि आपके यह कृत्य आम जनता में मारवाड़ियों की क्या छवि बनाते है। इस चुनाव में किसी भी गुट या व्यक्तियों की जीत हो, क्या वे सुचारू रूप से क्लब चला पायेंगे? यह तो भविष्य बतायेगा। पर क्लब के सम्मानित सदस्यों को समय मिले तो इस बात पर गौर जरूर कीजियेगा। दोनों गुटों के बीच शक्ति परीक्षण का चुनाव परिणाम पर क्या असर पड़ता है और जीतने वाले आगे चलकर किस नीति पर चलते हैं, क्लब का भविष्य बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा।
