263 वा भिक्षु अभिनिष्क्रमण दिवस का हुआ आयोजन

गंगाशहर, ( कविता कंवर राठौड़ ) । श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, गंगाशहर द्वारा 263 वां भिक्षु अभिनिष्क्रमण दिवस का आयोजन आज शांति निकेतन में किया गया। इस अवसर पर सेवाकेन्द्र व्यवस्थापिका साध्वीश्री कीर्तिलताजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आचार्य भिक्षु ने अनेक कसौटियों से कसते हुए आचार्य श्री रूघनाथजी के पास दीक्षा ग्रहण की। राजनगर के श्रावकों की शंका के समाधान हेतु उन्होंने आगमों का गहनतापूर्वक अध्ययन कर प्राप्त सत्य को अपने गुरू के सम्मुख रखा। समाधान न होते देख उन्होंने आज के ही दिन अभिनिष्क्रमण किया। लोगों को विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा प्रतिभाशाली शिष्य गुरू को छोड़कर चला जाएगा। सत्य को पाने के लिए उन्होंने संघर्ष को चुना। उन्हें रहने का स्थान नहीं मिला, फिर भी वे डरे नहीं, रूके नहीं, आगे बढ़े। कष्टों को झेलते हुए उन्होंने आत्मार्थ का मार्ग चुना। उपासक प्राध्यापक निर्मल नौलखा ने अपने वक्तव्य में कहा कि आचार्य भिक्षु ने अनुभूत सत्य को स्वीकार किया। उन्होंने सत्य क्रान्ति की, उन्होंने शोधपूर्वक सत्य को प्राप्त किया तथा आगमवाणी की कसौटी पर कसकर सत्य को स्वीकार किया। उन्होंने मन से उपर उठकर सत्य को जीया व साक्षात किया था। महापुरूषों के बताए मार्ग का लोग शताब्दियों तक अनुसरण करते हैं। तेरापंथी सभा के अध्यक्ष अमरचन्द सोनी ने कहा का अभिनिष्क्रमण का अर्थ है संघर्षों से होते हुए सत्य की राह से मंजिल प्राप्त करना। कहा भी गया है कि यदि संगत में शुद्ध आचार व पंगत में शुद्ध आहार नहीं हो तो वहां रहना नहीं चाहिए। आचार्य भिक्षु ने जब अभिनिष्क्रमण किया तो उनका उद्देश्य तेरापंथ की स्थापना करना नहीं था, केवल आत्म कल्याण करना था। तेरापंथ की मर्यादा व अनुशासन ने तेरापंथ धर्मसंघ को दीर्घजीवी बनाया है। साध्वी श्री सोमश्री जी ने अपने विचारों तथा साध्वीश्री पूनमप्रभाजी ने गीतिका के माध्यम से कार्यक्रम को संबोधित किया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ सुमधुर गायिका प्रियंका सांड द्वारा मंगलाचरण से किया गया। तेरापंथ युवक परिषद् के मंत्री देवेन्द्र डागा, तेरापंथ महिला मंडल उपाध्यक्ष संजू लालाणी ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। अणुव्रत समिति अध्यक्ष राजेन्द्र बोथरा ने गीतिका का संगान किया। तेरापंथी सभा के मंत्री रतनलाल छलाणी द्वारा आभार ज्ञापन किया गया।

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