स्त्री एवं पुरुष
जब युक्त होकर,
द्वी व्यक्तित्व की
महत्ता के संग
शोभायमान होते हैं।
तब जटिलताओं की
जंजीरें स्वतः टूट जाती हैं।
स्त्री व पुरुष के मध्य,
जिजीविषा की निरंतरता के लिए
प्रेम का रचनात्मक होना
वांछनीय है।
वस्तुतः स्त्री सिद्धि है तो
पुरुष का माध्यम होना,
परिपूरकता के लिए
वांछित ही नहीं
अपितु अनिवार्य है।
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शावर भकत ’भवानी ’
कोलकाता