कोलकाता । 21 जुलाई 1993। तब ममता बनर्जी कांग्रेस युवा अध्यक्ष थीं और मतदाता पहचान पत्र की मांग पर तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार के सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग को घेरने के लिए हजारों कांग्रेस कार्यकर्ता उनके एक आह्वान पर सचिवालय के पास जा पहुंचे थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री का आदेश हुआ और गोली चली जिसमें कांग्रेस के 13 कार्यकर्ता मौत की नींद सो गए थे। घटना के करीब तीन दशक बीत गए हैं। उसके बाद 1998 में ममता ने तृणमूल कांग्रेस बनाई और 2011 में सत्ता में भी आ गईं। पिछले 11 सालों से मुख्यमंत्री हैं और घटना के भी तीन दशक बीत गए हैं। इन्ही शहीदों की याद में हर साल वह शहीद दिवस कार्यक्रम करती हैं और अपने राजनीतिक कार्यक्रमों की घोषणा करती हैं लेकिन आज भी शहीद परिवारों को न्याय नहीं मिला। आश्चर्यजनक यह भी है कि हर साल शहीद परिवार आंखों में आंसू लिए आता है, ममता के मंच का हिस्सा बनता है और मीडिया के कैमरों के सामने आंसू बहा कर वापस चला जाता है लेकिन उन्हें न्याय दिलाने की जहमत आज तक ममता बनर्जी ने नहीं उठाई है। महारानी मंडल जिनके पति रतन मंडल को उस दिन गोली मार दी गई थी वह आज यानी गुरुवार को भी शहीद दिवस कार्यक्रम में पहुंची हैं। जब पति की हत्या हुई थी तब उनके एक बेटे और तीन बेटियां छोटे थे। महारानी मंडल पर दुखों का पहाड़ टूट गया था लेकिन संघर्ष करते हुए उन्होंने बच्चों को पाला। आज घटना के लगभग 30 साल होने को है लेकिन आज भी फायरिंग करने वालों को कोई सजा नहीं मिली है और उनकी आंखों में आंसू हैं। मीडिया ने जब उनसे बात करनी चाही तो उन्होंने यही कहा कि जो दुख 1993की 21 जुलाई को मिला था वह जीवन भर खत्म होने वाला नहीं है