क्रांति कुमार पाठक
भ्रष्ट अधिकारियों पर सतत निगरानी और कार्यवाही के दावों के बावजूद सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार किस कदर हावी है, झारखंड में हाल की कुछ घटनाओं ने एक बार फिर बखूबी साबित कर दिया है। अभी हाल ही में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रधान सचिव के रिश्तेदार से लेकर कुछ ऐसे करोबारी दलाल ईडी के शिकंजे में आएं हैं, जिनके सामने प्रदेश की नौकरशाही दुम हिलाती रही है। उनके पास से बरामद डिजिटल डिवाइसों, दस्तावेजों में छिपे राज को लेकर हर कोई हलकान दिख रहा है। क्योंकि खनन, उच्च स्तर पर अफसरों की ट्रांसफर -पोस्टिंग सहित तमाम नीतिगत फैसलों में दलालों की दखलंदाजी के नित नए नए हो रहे पर्दाफाश से राजधानी रांची में साइबर ठगी के लिए देशभर में बदनाम जामताड़ा पर बनी वेब सीरीज का यह डायलॉग दोहराया जा रहा है है कि बारी बारी से सबका नंबर आएगा। कहा तो यहां तक जा रहा है कि झारखंड के गठन के बाद से अब तक का यह सबसे बड़ा घोटाला साबित होगा। झारखंड की जनता बड़ी उम्मीद से जांच एजेंसियों पर नजर गड़ाए हुए है। शायद इस बार तमाम बड़ी मछलियां जेल की सलाखों तक पहुंच जाएं।
दरअसल, झारखंड एक दशक बाद फिर से भ्रष्टाचार के काले कारनामों को लेकर चर्चा में है। इससे पूर्व निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा के मुख्यमंत्रित्वकाल में हुई बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितता के कारण प्रदेश की छवि धूमिल हुई थी। इस बीच हालिया प्रकरण के तहत ईडी ने प्रदेश की एक चर्चित आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल और उनके करीबियों के 25 ठिकानों पर छापेमारी की। यह एक ऐसा सिंडिकेट है जो काले धन के निवेश से लेकर प्रदेश के पूरे प्रशासनिक तंत्र को अपने आर्थिक तंत्र के बलबूते नियंत्रित करता था। यहां अधिकारी पंगु और निवेशकों की भूमिका में हैं और सत्ता के इर्दगिर्द दलालों का प्रभुत्व है, जो तमाम नीतिगत फैसलों से लेकर खनन, उच्च स्तर पर अफसरों’ इंजीनियरों की ट्रांसफर -पोस्टिंग में जमकर दखलंदाजी करते थे। कहा तो यहां तक जा रहा है कि मुखौटा कंपनियों के माध्यम से इसके तार हवाला के जरिए पैसों के हस्तांतरण से भी जुड़ा है।
वरिष्ठ आईएएस पूजा सिंघल और खनन पदाधिकारियों से पूछताछ के बाद उनकी निशानदेही पर सत्ता शीर्ष के करीबी रहे रवि केजरीवाल, प्रेम प्रकाश, निशिथ केसरी, विशाल चौधरी आदि तक जांच की आंच पहुंच चुकी है। दरअसल, रवि केजरीवाल उन मुखौटा कंपनियों की देखरेख करता था, जिसमें सत्ता में बैठे प्रभावी लोगों की साझेदारी है। वह कभी सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा का कोषाध्यक्ष हुआ करता था।बाद में अंदरूनी मतभेद के चलते उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। निशिथ केसरी मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव आईएएस अधिकारी राजीव अरुण एक्का का करीबी रिश्तेदार है। ईडी का ताजा शिकार प्रेम प्रकाश है। वह बड़ी मछली है और आश्चर्यजनक तौर पर शासन में प्रभावी भूमिका में रहा है। ईडी की सतत छापेमारी ने प्रदेश के पूरे प्रशासनिक तंत्र को कठघरे में खड़ा कर दिया है। जो खनिज संपदा प्रदेश के लिए वरदान है, उसे किस प्रकार से सत्ताधीशों, अधिकारियों और दलालों का नेटवर्क ने दोनों हाथों से कैसे लूटा है, उसकी यह एक बानगी भर है। अगर इसकी कड़ी दर कड़ी जुड़ी तो यह बिहार के चर्चित चारा घोटाले से भी बड़ा घोटाला साबित हो सकता है, जिसके घेरे में दर्जनों भ्रष्ट नेता, नौकरशाह और दलाल आ सकते हैं। इससे राज्य सरकार का भी संकट बढ़ा है। खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का पूरा कुनबा भी आरोपों के घेरे में है। उन पर आरोप है कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए पत्थर खनन पट्टा लिया। भाजपा ने जब इसकी शिकायत राज्यपाल से करते हुए उन्हें अयोग्य ठहराने की मांग उठाई तो मामला आगे बढ़ा। भारत निर्वाचन आयोग ने उनसे जवाब मांगा है, जिसके उत्तर में उन्होंने कहा कि उनके पास कोई खनन पट्टा नहीं है। वे इसे पूर्व में ही सरेंडर कर चुके हैं। वाकई मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस मामले में जन प्रतिनिधित्व कानून के दायरे में आ सकते हैं। उन पर पद के दुरुपयोग का आरोप है। इसके साथ ही उनकी पत्नी पर रांची से सटे औद्योगिक क्षेत्र में जमीन लेने का आरोप भी उन्हें असहज कर रखा है। उनके भाई विधायक बसंत सोरेन भी खनन कंपनी चलाने के आरोपों में निर्वाचन आयोग को अपना जवाब भेजा है। हेमंत सोरेन को 31 मई को ही व्यक्तिगत तौर पर अथवा वकील के माध्यम से भारत निर्वाचन आयोग ने तलब किया था, लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा बार बार निर्वाचन आयोग से समय ही मांगा जा रहा है। इसके अलावा खनन पट्टा और मुखौटा कंपनियों को लेकर झारखंड उच्च न्यायालय में भी एक याचिका पर सुनवाई चल रही है। ऐसी स्थिति में प्रदेश एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। जिसके जिम्मेदार निस्संदेह सत्ता शीर्ष पर बैठे लोग और भ्रष्ट अधिकारी ही हैं, जिन्होंने भ्रष्ट प्रवृतियों को खुलकर प्रदेश में बढ़ावा देने का काम किया।