पर्युषण पर्व आत्मीय सुख और आध्यात्मिक विकास पर केंद्रित है

कोलकाता । श्री वर्द्धमान जैन संघ में पर्युषण पर्व की साधना – आराधना में पधारे पंडितवर्य विधिकारक प्रिमल भाई शाह, भावेश भाई जैन ने श्रावक – श्राविकाओं को भाव विभोर किया । उन्होंने कहा पर्युषण पर्व के पांच मुख्य कर्तव्य हैं: क्षमा याचना, स्वाध्याय, तप, संयम और जीवदया/अहिंसा । पर्युषण पर्व आत्मीय सुख और आध्यात्मिक विकास पर केंद्रित है । क्षमा याचना पर्युषण पर्व का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है, जिसमें सभी से क्षमा मांगी जाती है और सभी को क्षमा किया जाता है। इसे ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहकर भी व्यक्त किया जाता है, जिसका अर्थ है जो भी गलती हुई हो, उसके लिए मैं क्षमा चाहता/चाहती हूं । स्वाध्याय का अर्थ है धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना । पर्युषण पर्व के दौरान, जैन धर्म के अनुयायी विशेष रूप से धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते हैं और प्रवचन सुनते हैं । तप आत्म-नियंत्रण और त्याग का अभ्यास है। पर्युषण पर्व के दौरान, कई जैन उपवास करते हैं, एकासना (दिन में एक बार भोजन करना), अट्ठम तप आदि । संयम का अर्थ है अपनी इंद्रियों और भावनाओं पर नियंत्रण रखना। पर्युषण पर्व के दौरान, जैन अनुयायी अपनी वाणी, कर्म और विचारों पर संयम रखने का प्रयास करते हैं । जीवदया / अहिंसा का अर्थ है सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और करुणा रखना । चैत्य परिपाटी का भी पालन किया जाता है । पर्युषण पर्व के दौरान, जैन अनुयायी मंदिर जाते हैं, धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं, और सामूहिक प्रार्थना करते हैं । विजय चन्द बैद, मुल्तानचंद सुराणा, दिलीप दुगड़, सुमेरमल बांगानी, रतनचंद बांगानी, महेन्द्र सुराणा एवम् श्रावक – श्राविका उपस्थित रहे ।

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