“वैष्णो देवी:पर्यटन नहीं,आस्था की यात्रा

क्रांति कुमार पाठक

वैष्णो देवी की यात्रा सिर्फ धार्मिक यात्रा ही नहीं बल्कि अविचल,स्थिर आस्था की यात्रा है जिसमें लोग मंदिरों की नगरी के नाम से मशहूर जम्मू शहर उत्तर पूर्व में 70 किलोमीटर की दूरी तय करके पवित्र त्रिकुटा पहाड़ियों पर स्थित वैष्णो देवी की पावन गुफा के दर्शनार्थ आते हैं। अगर किसी धर्मस्थल पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या ही एक पैमाना हो माप का तो उत्तर भारत में श्रद्धालुओं के प्रसिद्ध केंद्र के रूप में वैष्णो देवी की गुफा का नाम सूची में सबसे ऊपर दिखाई पड़ेगा।
त्रिकुटा पर्वत पर स्थित इस पवित्र गुफा की कथा जम्मू प्रदेश के एक ऐतिहासिक किसान बाबा जित्तो,जो स्वयं भी माता वैष्णोदेवी के अनन्य भक्त के रूप में जाने जाते थे,से जुड़ी हुई है और लोक कथाओं में भी प्रचलित है। हमेशा बाबा जित्तो की गाथाओं में इस पवित्र गुफा का संदर्भ दिया जाता है। वैसे इस तीर्थ स्थल के साथ अनेक कथाएं जुड़ी हुई हैं। लेकिन असल कथा या इतिहास आज तक मालूम नहीं हो पाया है।
समुद्र तल से लगभग 5200 फुट की ऊंचाई पर स्थित मां वैष्णो देवी की पवित्र गुफा में अवस्थित- महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की पिंडियों के नयनाभिराम और मन को सकुन देने वाले दर्शनों की खातिर इतना तो भक्तगणों को करना ही पड़ेगा कि वे 13 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई कर भवन तक पहुंचें। और यह भी सच है कि इन दर्शनों की अभिलाषा लेकर आने वालोें के लिए न ही गर्मियों की चिलचिलाती धूप और न ही ठिठुरा देने वाली सर्दी उनकी यात्रा में बाधक होती है। तभी तो जम्मू से 55 किलोमीटर दूर व समुद्र तल से 6हजार फुट की ऊंचाई पर पहुंचते ही भक्तगणों में माता के प्रति अनंत आध्यात्मिक भावनाएं अपने आप उमड़ती हैं।
माता वैष्णोदेवी के दर्शनों के लिए भक्तों की भीड़ तो वैसे सालभर लगी रहती है, परंतु कुछ विशेष अवसरों पर यह क‌ई गुणा बढ़ जाती है।चाहे जमाना कितना भी आधुनिक हो जाए लेकिन माता के विषय में यह कहा जाता है कि अपने दर्शनों हेतु वैष्णो देवी अपने भक्तों को आप ही बुलाती हैं और जिसके नसीब में उनके दर्शन नहीं बंधे हो,वे गुफा के बाहर से ही बिना दर्शन लौट जाते हैं। यही कारण है कि जाड़े की ठिठुरती रात हो या गर्मियों की चिलचिलाती धूप भक्त माता के दर्शनों हेतु स्वयं ही खिंचे चले आते हैं।
वैष्णो देवी की यात्रा के लिए जम्मू तक पहुंचना होता है,जो हवाई,रेल एवं सड़क मार्ग द्वारा देशभर से जुड़ा है। जम्मू से कटरा तक की यात्रा अब रेल और सड़क मार्ग दोनों से की जा सकती है। फिर कटरा से आगे भवन तक की 13 किलोमीटर की धार्मिक यात्रा भक्तों को पैदल ही करनी पड़ती है। वृद्ध, विकलांग एवं छोटे बच्चे जो पैदल यात्रा नहीं कर सकते, उनके लिए विशेष सुविधा के रूप में यहां पर खच्चर और पिट्ठू आसानी से मिल जाते हैं। वैष्णो देवी के लिए कटरा से पदयात्रा आरंभ करने से पहले बाणगंगा नदी तक पहुंचना होता है। कटरा में श्रद्धालुओं के लिए विश्रामालय, धर्मशालाएं, होटल इत्यादि की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
बाणगंगा से आगे वैष्णो देवी के मंदिर के दो रास्ते – एक पैदल एवं एक सीढ़ियों का मार्ग है।भक्तगण सुविधानुसार कोई भी मार्ग तय कर सकते हैं। रास्ते में क‌ई स्थानों पर यात्रियों की सुविधा के लिए विश्राम शेड एवं अल्पाहार केंद्र भी बनाए गए हैं। बाणगंगा से आगे डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर एक पवित्र स्थान चरण पादुका आता है।चरण पादुका से आगे 4.5 किलोमीटर की दूरी पर माता वैष्णोदेवी का अर्द्धकुंवारी मंदिर और गर्भजून गुफा स्थित है। यह गर्भजून गुफा भी दर्शनीय और आकर्षक है। अर्द्धकुंवारी में भी क‌ई धर्मशालाएं हैं। भक्तगण यहां भी विश्राम कर सकते हैं। जबकि अर्द्धकुंवारी से आगे की यात्रा एकदम सीधी चढ़ाई के रूप में आरंभ हो जाती है,जो कि हाथी मत्था की चढ़ाई कहलाती है। यह अर्द्धकुंवारी से 2.5 किलोमीटर की दूरी तक है।
अर्द्धकुंवारी से आगे साढ़े चार किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद सांझी छत नामक स्थान आता है। इस स्थल पर पहुंचने के बाद माता के भवन तक केवल सीधा एवं उतराई वाला रास्ता है। यहां से चढ़ाई समाप्त हो जाती है। सांझी छत से 2.5 किलोमीटर की दूरी पर एवं समुद्र तल से 5200 फुट की ऊंचाई पर त्रिकुट पर्वत के आंचल में वैष्णोदेवी का दरबार स्थित है। यही वह पवित्र स्थल है, जहां श्रृद्धालुओं को माता के दर्शन होते हैं। कटरा से भवन तक की इस यात्रा में लगभग 6 घंटे का समय लग जाता है। पवित्र गुफा में अंदर पिंडीं दर्शन करने हेतु श्रृद्धालुओं के पैरों के नीचे से शीतल जल की ठंडी धारा बहती रहती है। गुफा के अंत में महालक्ष्मी, महासरस्वती एवं महाकाली की तीन भव्य पिंडियों के रूप में माता के दर्शन कर श्रृद्धालु गदगद हो उठते हैं और वापसी पर भैरों मंदिर में अवश्य जाते हैं, क्योंकि दंतकथा यही है कि भैरों मंदिर के दर्शन के बिना यह तीर्थ यात्रा अधूरी रहती है।वर्ष 1950 तक इस पवित्र गुफा के दर्शन के लिए मात्र तीन हजार श्रद्धालु ही आया करते थे। आज यह आंकड़ा पचासों लाख के आंकड़ों को पार कर चुका है।

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