संघ और बीजेपी के रिश्ते सामान्य नहीं, खुद को संघ से बड़ा समझने लगे हैं नरेंद्र मोदी

दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी-केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी ने केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान को बीजेपी संसदीय बोर्ड से बाहर कर दिया।

उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी बीजेपी केन्द्रीय चुनाव समिति से हटा दिया।

यह सत्ता और अधिकार का साफ प्रदर्शन था क्योंकि तीनों ही- गडकरी, चौहान और योगी संगठन के प्रमुख सदस्य माने जाते थे। आरएसएस ने सर्वोच्च समिति से गडकरी को हटाया जाना ठीक नहीं माना। न वह राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को किनारे कर दिए जाने से खुश था। वसुंधरा की मां विजया राजे सिंधिया ने जनसंघ, और प्रकारांतर से आरएसएस को मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। लेकिन मोदी संदेश देना चाहते थे कि वह किसी किस्म की आलोचना नहीं सहने वाले।

गडकरी और वसुंधरा ने वर्तमान शासन के दौरान पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र में कमी को लेकर सार्वजनिक तौर पर विपरीत प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। यह सबको स्पष्ट है कि मोदी को कोई भी आलोचना बर्दाश्त नहीं। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने हाल में इस बात पर जोर भी दिया था कि मोदी की सनक दुनिया में कहीं भी सबसे ज्यादा है और उनसे भिन्न राय रखने वाले को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, भले ही वह मातृ संस्था ही क्यों न हो!

आखिरकार, मोदी ने यह बात नहीं छिपाई है कि उन्हें आरएसएस ने शुरू से ही किस तरह पाला-पोसा है, खास तौर से अभी के सर संघचालक मोहन भागवत के पिता मधुकर राव भागवत जो गुजरात में पंत प्रचारक थे। वह खुद भी आरएसएस प्रचारक रहे हैं और गुजरात में मुख्यमंत्री बनने और राष्ट्रीय स्तर पर 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में उनकी जीत में संघ ने प्रमुख भूमिका निभाई।

लेकिन मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी आरएसएस के बीच दृष्टिकोण में मूलभूत अंतर रहा है जिससे दोनों के बीच गहरी खाई बन गई है। यह माना जाता रहा है कि संघ किसी व्यक्ति विशेष की पूजा का कभी समर्थक नहीं रहा है और संगठन सब दिन किसी व्यक्ति से बड़ा रहा है। वह सामूहिक नेतृत्व के सिद्धांत में विश्वास करते हुए यह मानता रहा है कि ‘संगठन में ही शक्ति है।’ मोदी इससे उलट विश्वास रखते हैं। अपने हाथों में अभूतपूर्व शक्ति केन्द्रित करते हुए उन्होंने अपने इर्द-गिर्द एक पर्सनैलिटी कल्ट निर्मित किया है।

केएस सुदर्शन जब आरएसएस प्रमुख थे, तब वह आरएसएस के एजेंडे से विचलन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की खुले तौर पर आलोचना से हिचकिचाते नहीं थे। उसके उलट भागवत कहीं अधिक विनयशील हैं और टकराव की स्थिति से बचते हैं। वह सार्वजनिक तौर पर व्यवहार कुशल रहते हैं, भले ही निजी बातचीत में कहें कि बीजेपी के साथ वैसे तो कोई मुद्दा नहीं है, पर मोदी के कामकाज की निरंकुश शैली से वह नाखुश हैं।

पिछले दस साल में मोदी नियमित तौर पर आरएसएस को किनारे करते रहे हैं। वह नागपुर तो बराबर जाते हैं लेकिन उन्होंने संघ मुख्यालय जाने से मना कर रखा है। कई अवसरों पर तो उन्होंने भागवत समेत कई प्रमुख संघ पदाधिकारियों से मिलने से भी मना कर दिया है। वस्तुतः, अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के दौरान भी उन्होंने भागवत के साथ व्यक्तिगत बैठक से इनकार कर दिया।

संघ के कई आनुषंगिक संगठनों ने मोदी द्वारा प्रोत्साहित किए जाने वाले फ्री मार्केट पर या इस तथ्य पर नाखुशी जाहिर की है कि भारत का 60 प्रतिशत धन कुछेक क्रोनी पूंजीपतियों के पास है। स्वदेशी जागरण मंच ने खेती के बड़े पट्टे कुछ एक कॉरपोरेट घरानों को देने और जीएम फसलों को भारत में अनुमति देने के सरकार के अभी के फैसलों का भी खुलकर विरोध किया है। कोविड-19 के दौरान लाखों लोगों की मौत हुई, उस वक्त सरकार ने इस मसले को जिस तरह संभाला, उस पर भी संघ सरकार का आलोचक रहा। दो साल पहले संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने आय और धन पर बढ़ती असमानता तथा देश भर में बेरोजगारी बढ़ने की बात सार्वजनिक तौर पर कही थी। भले ही यह आत्ममुग्ध नेतृत्व को अपना रास्ता दुरुस्त करने के लिए कहने की कोशिश हो, पर ऐसा हुआ तो नहीं।

वैसे, इसमें शक नहीं कि मोदी हिन्दुत्व का कोर एजेंडा लागू करने में हिचकिचाए नहीं। इस मामले में अनुच्छेद 370 को रद्द किया जाना, नागरिकता (संशोधन) कानून और राम मंदिर निर्माण में बाधाओं को हटाना उदाहरण हैं। अल्पसंख्यकों को लेकर मोदी के रवैये के संदर्भ में संघ में दो किस्म की राय रही है। कुछ लोगों का कहना है कि वह काफी आगे चले गए हैं। इसी संदर्भ में भागवत ने हाथ बढ़ाया और वह पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल जमीर उद्दीन शाह और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दिकी समेत कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मिलने को तैयार हुए। पर इसे भी मोदी ने सही तरीके से नहीं लिया। उन्हें लगा कि संघ कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गया है।

लेकिन संघ में इस मसले को लेकर राय छुपी हुई नहीं है जिस तरह से उसके आधारभूत मूल्यों को लचीला बना दिया गया है। संघ ने अपने पदाधिकारियों के बीच संयमी और मितव्ययी जीवनशैली अपनाने की भावना प्रेरित की थी। लेकिन अब संघ को यह बात नजर आती है कि कैसे वे तरीके छोड़ दिए गए हैं। मोदी तक भी महंगे सन ग्लास पहनने और महंगी बीएमडब्ल्यू से चलने वाली महंगी जीवनशैली को बढ़ावा देते दिखते हैं। संघ में भी यह भावना बढ़ रही है और संघ के लोग भी ऐसी जीवनशैली अपनाने लगे हैं। आज सिर्फ बीजेपी नेता ही संदिग्ध जमीन और खनन सौदों के जरिये अपने धन का प्रदर्शन करते नहीं दिखते, संघ के वरिष्ठ नेतृत्व वाले भी उसी राह पर चल पड़े हैं। जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक एसएमए काजमी कहते भी हैं कि ‘इनमें से कई लोगों ने नैतिक आदर्शों तथा भारतीय मूल्यों के समर्थन को त्याग दिया है। आखिर, अंकिता भंडारी के अभिभावकों ने उसकी हत्या में उत्तराखंड में संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का नाम लिया ही।’

हाल में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू की बातों से तो भागवत भी सकते में आ गए। नड्डा ने इस इंटरव्यू में कहा कि ‘शुरू में हम अक्षम होंगे, थोड़े कम होंगे, तब संघ की जरूरत पड़ती थी… आज हम बढ़ गए हैं, सक्षम हैं। बीजेपी अपने आपको चलाती है।’ उन्होंने यह भी कहा कि संघ हमारा वैचारिक मोर्चा है। वैसे, नड्डा इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि पार्टी संरचना काफी बढ़ गई है और इसमें संदेह नहीं है कि यह दुनिया में सबसे बड़ी और सबसे धनी राजनीतिक पार्टी हो गई है। इसे इस तरह समझिएः पिछले पांच साल में पार्टी ने काफी जमीन खरीदी है और हर जिले में पार्टी ऑफिस बना रही है जिस पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं।

इन सबसे संघ दुविधाग्रस्त हो गया है। भले ही मोदी के शासनकाल में हिन्दुत्व का उभार हुआ है, उन्होंने इस महीन तरीके से संघ को ढंक दिया है कि लोग उन्हें इस दर्शन के स्रोत के तौर पर देखते हैं। हिन्दुत्व का केन्द्र अब नागपुर नहीं रह गया है बल्कि दिल्ली हो गया है। मोदी की एकमात्र चिंता यह है कि उनकी चमक अब जनता में बनी रहे। और उसके लिए टेक्नोक्रैट्स की उनकी टीम सकारात्मक तौर पर सुनिश्चित रूप से उन्हें पेश करने करने के लिए 24X7 लगी रहती है। मतलब, शिष्य गुड़ से आगे बढ़कर चीनी हो गया है और वह किसी को लगाने को तैयार नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Open chat
1
Hello
Can we help you?