साम्प्रदयिक एकता की अटूट मिशाल दान बाबा का मेला

रानीगज/ कांकसा थाना अंतर्गत दार्जलिंग मोड़ से से होकर जाने बाले नेशनल हाईवे 60 के बिल्कुल समीप दान बाबा की मजार स्थपित है जिसकी स्थापना 1960 ई में कई गई थी ! जहां मार्च के महीन में एक विशाल मेला लगता आ रहा है !.जिसका एकमात्र कारण बाबा के प्रति लोगो की अटूट आस्था ! गौरतलब हो कि मजार की देखभाल करने बाले एक पुराने जानकर ने हमे बताया की हजरत असरफ बीन कवीर चिश्ती निज़ाम खिदमते खुद्दाम की बदौलत आज मजार स्थपित हो पाई है ! आज दान बाबा को लोग कई नाम से जानते हैं जैसे दानी साह, पहाड़ी साह इत्यादि ! प्रत्येक साल 9 मार्च को यहाँ मजार पर एक विशाल मेला लगता है और फिर शुरू होता है बाबा की मजार पर चादर चड़ाने और मन्नतों का सिलसिला ! आम दिनों में लोग मजार पर सजदा करने रोजाना आते रहते है ! पर इन खाश दिन में जिनकी दुआएं काबुल होती है वो लोग गाजे बाजे के साथ चादर चढ़ाने सपरिवार पहुँचते है ! मजार पर मन्नत मांगने न केबल पानागढ़ के लोग जाते बल्कि मालदा, सिल्लिगुड़ी, दुवराजपुर,आसनसोल, रानीगंज से भी लोग पहुँचते है ! कहते हैं कि वर्षों से मजार पर पहली चादर पानागढ़ ग्राम के कवीर परिवार के बंसज ही चढ़ाते हैं ! फिर तो रोजाना सेकड़ो चादरे मजार पर चढ़ती है ! प्रसाद के रूप में नकुल दाने जिसे शिरनी कहते हैं चढ़ाया जाता हैं ! प्रसाद की सभी दुकाने मजार के पास ही है ! एक सप्ताह रहने बाले इस मेले में काफी भीड़ देखने को मिलती है ! यह मेला सचमुच साम्प्रदयिकता की अनूठी मिशाल क्योंकि मजार पर मुश्लिम समुदाय के अलाबा अन्य धर्मों के लोग भी चादर चढ़ने पहुँचते है !

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