ब्रिगेड मे गीता पाठ : उपस्थिति संख्या को लेकर विवाद क्यों

वरिष्ठ पत्रकार सीताराम अग्रवाल

ब्रिगेड परेड ग्राउन्ड (कोलकाता ) में गत 24 दिसम्बर को ” लक्ष क॔ठे गीता पाठ ” का आयोजन हुआ। आयोजक थे- सनातन संस्कृति संसद, मतिलाल भारत तीर्थ सेवा मिशन आश्रम व अखिल भारतीय संस्कृत परिषद । इसके अलावा विभिन्न धर्मीय व सामाजिक संगठनों ने स्वेच्छा से इसमें सहयोग दिया। हालांकि ब्रिगेड में पहले भी धार्मिक आयोजन होते रहे हैं पर लोगों की उपस्थिति की संख्या को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ। हां राजनीतिक दलों की रैलियों में भीड़ की संख्या चर्चित जरूर होती थी, क्योंकि वह उस पार्टी की शक्ति का परिचायक होती थी। हालांकि गीता पाठ की आयोजन समिति ने बार- बार यह स्पष्ट कर दिया था कि यह सनातनी गीतानुरागियों का जमावड़ा है, जिसमें सभी पार्टियों के लोग भाग ले सकते हैं। सामूहिक गीता पाठ के जरिये हम सामाजिक व सांस्कृतिक चेतना जाग्रत करेंगे। आयोजन समिति के सभापति स्वामी प्रदीप्तानन्द महाराज ने तो साफ शब्दों मे कहा कि बंगाल की पवित्र भूमि इस समय संकटापन्न अवस्था में है। हम निकट भविष्य को लेकर काफी चिन्तित हैं। इसलिए हम गीता के शरणापन्न हुए हैं। हमारा विश्वास है कि इसके सामूहिक पाठ से हमारे कष्ट दूर होंगे।


आखिर इस धार्मिक आयोजन को क्यों राजनीतिक चश्मे से देखा गया तथा उपस्थिति संख्या पर विवाद पैदा किया गया। इसके कुछ कारण हैं। पहले तो इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आने की बात थी और उसके लिए राज्य भाजपा के शीर्ष नेताओं ने पहल की थी। यह दीगर बात है कि अंतिम समय में उनका कोलकाता दौरा रद्द हो गया। हालांकि मोदी ने बधाई संदेश भेज कर आशा व्यक्त की है कि लाख क॔ठों के सामूहिक गीता पाठ से हमारी समरसता मजबूत होगी, जो देश के विकास के लिए आवश्यक है। शुभेन्दु अधिकारी, सुकान्त मजूमदार समेत कई शीर्ष भाजपाई नेताओं ने सभास्थल का दौरा कर तैयारियों का जायजा लिया था तथा आयोजकों के साथ मंत्रणा भी की थी। गीता पाठ में कई सांसदों, विधायकों के साथ बंगाल भाजपा व आरएसएस के बड़े-बड़े नेता भी शामिल हुए। हालांकि न तो कोई मंच पर बैठा और ना ही कोई राजनीतिक भाषण हुआ। सभी लोग मंच के सामने जनता के बीच बैठे और पाठ किया। वैसे आयोजकों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी आमंत्रित किया था और शुरुआत में उन्होंने थोड़ी खोज- बीन भी की थी, पर अंत में उन्होंने दिलचस्पी नहीं ली। परन्तु उनकी पार्टी के नेताओं ने इसे राजनीति से प्रेरित अनुष्ठान बताते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़ दिया। हालांकि अन्य पार्टियों ने भी आयोजकों की मंशा पर सवाल उठाये, पर सबसे ज्यादा मुखर तृणमूल रही। उसका कहना था कि हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण का यह प्रयास है। यह भी एक ध्रुव सत्य है कि बंगाल में इस समय असली राजनीतिक लड़ाई तृणमूल व भाजपा के बीच ही है।
अब जहां तक संख्या का सवाल है, आयोजकों का दावा है कि लखभग एक लाख पैतीस हजार लोग उपस्थित थे। पर तृणमूल के प्रवक्ता कुणाल घोष का कहना है कि मात्र 5-6 हजार ही लोग थे। उनके इस कथन से सनातनियों में काफी रोष है। विशेषकर उन लोगों में, जो आयोजन में शामिल थे। आयोजकों ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि मंच के सामने 20 ब्लाक बनाये जायेंगे तथा प्रत्येक में 5 हजार व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था होगी। इस प्रकार उनका एक लाख का लक्ष्य पूरा हो जाता है। अब लोगों का कहना है कि राज्य में तृणमूल की सरकार है। उसके पास अपना मीडिया सहित सारी सुविधाएं हैं। आजकल तो इतने आधुनिक संसाधन मौजूद है कि संख्या का अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है, तो फिर क्यों नहीं चित्रों, वीडियो व अन्य साधनों के जरिये तृणमूल अपनी बात साबित करके आयोजकों के दावे को खारिज कर जनता के समक्ष उनकी पोल खोल देती, क्योंकि दोनों ओर के दावों में जमीन – आसमान का अंतर है। दूसरी ओर लगभग सारा मीडिया यह यह चीख चीख कर कह रहा है कि आयोजकों के दावे में दम है। फिर अनावश्यक रूप से गलतबयानी क्यों?

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