कोलकाता, 20 जुलाई । पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सत्ता में आने के बाद से हर साल 13 कांग्रेस कार्यकर्ताओं की शहादत की याद में शहीद दिवस कार्यक्रम का आयोजन करती हैं। इस दिन बड़ी बड़ी राजनीतिक बयानबाजी और राजनीतिक गतिविधियों की घोषणा तो करती हैं लेकिन शहीद परिवारों को कितना न्याय मिलता है इस बारे में कोई बात नहीं करता। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के लिए शहीद हुए न जाने कितने ही कार्यकर्ताओं का दर्द सत्ता के शोर में दबकर छटपटा रहा है। ऐसी ही एक दर्दनाक दासतां है सुदूर कूचबिहार जिले के तूफानगंज दो नंबर ब्लॉक के सालबड़ी गांव की। आठ साल पहले ऐसे ही एक शहीद दिवस कार्यक्रम में अपनी प्रिय नेत्री ममता बनर्जी को सुनने के लिए सहेंद्र दास नाम के एक तृणमूल कार्यकर्ता आए थे। लौटते समय दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। उसके बाद से ममता बनर्जी के प्रशासन का ऐसा ढुल मूल रवैया रहा है कि आज तक उनके परिवार को मृत्यु प्रमाण पत्र तक नहीं मिला। इसकी वजह से दुर्घटना में मौत के बाद जो कुछ मूलभूत सुविधाएं परिवार को मिलनी चाहिए थीं वह भी नहीं मिलीं। यहां तक कि तृणमूल कांग्रेस के ही नेताओं ने उनकी बेवा पत्नी और बेसहारा हुई मां की खोज खबर तक लेने की जहमत नहीं उठाई है।
बात वर्ष 2015 की है। तब ममता बनर्जी को सत्ता में आए मात्र चार साल हुए थे। 33 सालों के आतताई वाममोर्चा सरकार को उखाड़ फेंकने के बाद जब पहली बार ममता बनर्जी सत्ता में आई थीं तब सालों से मार खा रहे तृणमूल कार्यकर्ताओं में गजब का उत्साह था। अपनी प्रिय नेत्री को देखने के लिए 21 जुलाई के सम्मेलन में सहेंद्र दास भी पार्टी के बाकी कार्यकर्ताओं के साथ धर्मतल्ला के सम्मेलन में शामिल हुए थे। लौटते वक्त चलती ट्रेन की गेट पर जगह नहीं मिलने की वजह से वह खड़े थे और रेल लाइन के किनारे लैंप पोस्ट से टक्कर होने के वजह से मौके पर ही उनकी मौत हो गई थी। क्षत-विक्षत हालत में सहेंद्र का शव पत्नी, दो बच्चों और मां के पास ले जाया गया था जिन पर दुखों का पहाड़ टूट गया था। उस समय तो तृणमूल के कुछ स्थानीय नेता उनके घर पहुंचे थे और हर संभव मदद का आश्वासन दिया था। लेकिन उसके बाद से आठ साल गुजर गए। हर साल जब 21 जुलाई का दिन करीब आता है तो पूरे राज्य में शहीदों की याद में “धर्मतल्ला चलो” का शोर और सरगर्मी तेज हो जाते हैं। उनके इलाके में भी तृणमूल कार्यकर्ताओं का उत्साह और तैयारियां जोरों पर रहती हैं, लेकिन सहेंद्र का परिवार उनकी उनकी याद में बेवा पत्नी, मां और अन्य लोग चौखट पर बैठ आंसू बहाते हैं। आज तक उन्हें मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं मिला, बाकी चीजें तो छोड़ दीजिए।
सहेंद्र के बेटे सुरजीत दास कहते हैं, “पिता की मौत के बाद नौ महीने भी नहीं बीते थे कि मेरे बड़े भाई की मौत सांप काटने से हो गई। मजबूरी में केवल 10वीं के बाद मैंने पढ़ाई छोड़ दी और मजदूरी करके परिवार का भरण पोषण करता हूं। पिता के मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए मैंने तृणमूल नेताओं के घरों के चक्कर काटे लेकिन किसी ने मदद नहीं की।”
पत्नी कहती हैं, “दो बच्चों को छोड़कर जब पति की मौत हुई तो दुखों का पहाड़ टूट गया था। बच्चों को कैसे पालेंगे, कैसे संसार चलेगा यह समझ में नहीं आ रहा था। नई-नई ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनी थीं और पति तृणमूल के कार्यकर्ता थे तो उम्मीद थी कि हर तरफ से मदद मिलेगी लेकिन जैसे-जैसे वक्त गुजरा इस बात का एहसास हो गया कि कोई खोज खबर तक लेने वाला नहीं है।”
मां बूढ़ी हो गई हैं। ठीक से दिखाई नहीं देता। जवान बेटे का शव देखने के बाद जीने की इच्छा नहीं बची है लेकिन आठ सालों से इस दुख का बोझ सीने पर लेकर जी रही हैं। हर साल की तरह एक बार फिर 30 जुलाई करीब आ गया है और सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं के जिंदाबाद के शोर में इस परिवार का दर्द इस बार भी शायद दबकर सिसकियां लेता रहेगा।
