कोलकाता, 16 अप्रैल । पश्चिम बंगाल में 33 सालों तक शासन करने वाली वामपंथी पार्टियां 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में लगातार उपचुनाव से लेकर नगरपालिका और हर स्तर पर मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। अब 2024 में लोकसभा चुनाव होना है और एक बार फिर राज्य में राजनीतिक मोहरे बिछाए जाने लगे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समेत अन्य समान विचारधारा वाले संगठनों के अलावा हिंदूवादी संगठनों के मुकाबले के लिए वामदलों ने विशेष रणनीति बनाई है। पार्टी की ओर से एक समर्पित टीम बनाई गई है जो हिंदूवादी संगठनों की ना केवल निगरानी करेगी बल्कि उनकी रणनीति का काट भी ढूंढेंगी।
सीपीएम के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने कोलकाता में संपन्न हुई पार्टी की दो दिवसीय राज्य समिति की बैठक में अपनी समापन टिप्पणी के दौरान हिंदुत्व निगरानी समूह की घोषणा की।
सलीम ने कहा, “हमारी केंद्रीय समिति ने फैसला किया कि हम राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ सभी राज्यों में इस तरह के संगठन बनाएंगे। बंगाल में कई लोग अपने स्तर पर यह काम कर रहे हैं। अब, हम इस पर एकजूट काम करेंगे।”
आरएसएस के सूत्रों ने बताया कि पिछले एक दशक में बंगाल में संघ का तेजी से विस्तार हुआ है। इस साल मार्च में, संगठन ने पूरे बंगाल में 1,664 दैनिक शाखाएं लग रही हैं। एक साल पहले 1,549 शाखाएं लगती थीं। 2011 में ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद से, सीपीएम ने बंगाल में संघ परिवार के उदय के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राजनीति की शैली को जिम्मेदार ठहराया है।
सलीम ने कहा, मुझे विभिन्न स्रोतों से पता चला है कि जब ममता ने 2011 में राज्य की कमान संभाली थी, तब बंगाल में आरएसएस की करीब 700 ‘शाखाएं’ थीं। आरएसएस और उसके सहयोगी नफरत फैलाने और सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने के तरीके बना रहे हैं। हमारी पार्टी राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से इससे निपटेगी।”
संघ की ओर से 12-14 मार्च को, हरियाणा के पट्टीकल्याण, समालेखा में एक अखिल भारतीय प्रतिनिधिमंडल का आयोजन किया गया था। आरएसएस परिसर की रूपरेखा को लेकर भी चर्चा हुई। इसके आधार पर 18 मार्च को कोलकाता में संघ के प्रधान कार्यालय केशव भवन में एक पत्रकार वार्ता आयोजित की गईं जिसमें बंगाल में शाखाओं को बढ़ाने पर बल देने की जानकारी दी गई थी।
सूत्रों के मुताबिक, सीपीएम के चार युवा नेता कालतन दासगुप्ता, सोमनाथ भट्टाचार्य, सत्यजीत बनर्जी और मधुजा सेनरॉय को पार्टी ने आरएसएस समेत हिंदुत्व की गतिविधियों और विस्तार पर नजर रखने का जिम्मा सौंपा है।
प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, हिंदू एकता के अध्यक्ष देवतनु भट्टाचार्य ने हिन्दुस्थान समाचार से कहा, “सीपीएम अब अस्तित्व के संकट में है। उन्हें सोचने दें कि वे कैसे जीवित रहेंगे। हिंदुत्व अब पश्चिम बंगाल में काफी मजबूत है। उनके पीछे जाना अपना ही विनाश करना है – यह सीपीएम को समझना चाहिए। और सिर्फ हिंदुत्व वॉच ग्रुप ही क्यों? इस्लामिक जिहाद वॉच ग्रुप क्यों नहीं? पार्टी मोहम्मद सलीम के नेतृत्व में चल रही है?”
अखिल भारत हिंदू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष (पश्चिम बंगाल) चंद्रचूड़ गोस्वामी ने कहा, “सीपीएम हमेशा दूसरों के भरोसे अस्तित्व बचाने में जुटी है। लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि सीपीएम पार्टी हिंदुत्व का ही मुकाबला क्यों करना चाहती है, अन्य धार्मिक कट्टरवादों का भी मुकाबला करने का ईमानदार साहस क्यों दिखाती है। क्योंकि उन्होंने धर्मतला में खड़े होकर सुबोध सरकार को गोमांस खिलाया लेकिन मोहम्मद सलीम को सूअर का मांस नहीं खिला सके। इसलिए लोग अब उन पर भरोसा नहीं करते हैं।
