आसनसोल:’बड़े और नामी गिरामी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में एडमिशन के लिए मोटी रकम ली जाती है,जिसे पूरा करना हर गार्डियन के लिए संभव नहीं है।ऐसे में उनके सपनों को पूरा करते हैं छोटे छोटे स्तर पर चलने वाले स्कूल्स।इसलिए ऐसे स्कूलों को बचाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।’ ये कहना है मीडिया पर्सनैलिटी और सोशल एक्टिविस्ट संजय सिन्हा का।उन्होंने इस संवाददाता से बातचीत के क्रम में कहा कि, ‘ ‘कोरोना महामारी के दौरान देश भर के सैकड़ों छोटे स्कूल्स बंद हो गए।प्रतिकूल परिस्थियों में भी टिके रहने वाले स्कूलों को बचाना जरूरी है,वरना मध्यम तथा निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों को काफी दिक्कत हो जाएगी।छोटे स्कूलों पर प्रशासन का अनावश्यक प्रेशर भी बहुत होता है,इसलिए इन्हें सपोर्ट करने की जरूरत है। ‘ संजय सिन्हा ने अखिल भारतीय प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के माध्यम से ऐसे स्कूलों को सहयोग और संरक्षण देने का अभियान शुरू किया है।मंगलवार को उन्होंने अपनी टीम के साथ जामुडिया के निंघा,श्रीपुर तथा आसपास के इलाकों में चल रहे स्कूलों का दौरा किया और संचालकों तथा शिक्षकों से मिलकर उनकी समस्याएं सुनीं।उन्होंने बताया कि बड़े स्कूलों में अक्सर इनके टीसी को मान्यता नहीं दी जाती है।संजय सिन्हा ने बताया कि इन स्कूलों के प्रबंधन को विशेषज्ञों से उचित मार्गदर्शन भी दिलवाया जाएगा।संजय सिन्हा ने अपनी टीम के साथ निंघा के साउथ प्वाइंट स्कूल,सरस्वती शिक्षा मंदिर स्कूल,चिल्ड्रन ऑफ़ गॉड्स स्कूल तथा श्रीपुर उर्दू जूनियर हाई स्कूल का दौरा किया।उनके साथ थे हरे राम प्रसाद,अनुपम बाउरी,दीपांकर महता,अमित सिंह आदि।