
कोलकाता, 09 जून। पश्चिम बंगाल की स्वनामधन्य संस्था ‘बंगीय हिन्दी परिषद ‘के तत्वावधान में कवि कल्प की गोष्ठी में क्रांतिकारी कवि व संत कबीर की जयंती मनायी गई। स्वागत वक्तव्य रखते हुए कवि कल्प संयोजक डाॅ मनोज मिश्र ने कहा कि संत कबीर के शब्द हमें याद दिलाते हैं कि सादगी का मतलब त्याग नहीं है, बल्कि प्रामाणिक रूप से और अपने मूल्यों के साथ सामंजस्य बिठाकर जीना है। डाॅ मिश्र ने यह भी कहा कि सच्चा बदलाव भीतर से शुरू होता है। कबीर की साहित्यिक विरासत में कथन शामिल है। कार्यक्रम अध्यक्ष डाॅ अभिज्ञात ने भी संत कबीर पर प्रकाश डाला और अपनी गंभीर रचना सुनाकर सबको भाव विभोर कर दिया। मुख्य अतिथि शब्दाक्षर राष्ट्रीय अध्यक्ष रवि प्रताप सिंह ने ‘सन्नाटे भी बोल उठेंगे-‐-कुछ इस तरह से गजल पढ़ी कि श्रोताओं की तालियाँ बजती रही। विशिष्ट अतिथि चन्द्रिका प्रसाद पाण्डेय ‘अनुरागी’ और रणजीत भारती ने भी उत्कृष्ट रचना सुनाकर खूब वाहवाही बटोरीं। कार्यक्रम का सफल संचालन प्रदीप कुमार धानुक ने किया। संत कबीर पर जिन्होंने रचनाएं सुनायीं उनमें नन्दू बिहारी, कमल पुरोहित ‘अपरिचित ‘, राम पुकार सिंह ‘पुकार गाजीपुरी ‘, कालिका प्रसाद उपाध्याय ‘अशेष ‘, अविनाश चन्द्र पाण्डेय, डाॅ सेराज खान ‘बातिश ‘, मोहम्मद अय्यूब, गौरव केसरी, संगीता व्यास, चन्द्र भानु गुप्त ‘मानव ‘,नन्दलाल सेठ ‘रौशन ‘, नजीर राही, सहर मजिदी, मंजू तिलक, जीवन सिंह, नीलम झा, हिमाद्री मिश्र, जोया अहमद, डाॅ शाहिद फरोगी, मुजतर इफ्तिखारी, श्वेता गुप्ता ‘श्वेतांबरी, जतिब हयाल, प्रणति ठाकुर, शहनाज रहमत, डाॅ अहमद मिराज, भारत भूषण शर्मा, भूपिंदर सिंघ ‘बशर ‘ तथा संजय शुक्ल ने कविताएँ सुनाकर गोष्ठी को यादगार बनाया। इस गोष्ठी की खास बात यह रही कि सेंट जेवियर्स स्कूल के कुछ छात्र-छात्रा भी इससे जुड़े थे और संस्था की गतिविधियों से अवगत हुए। अंत में धन्यवाद ज्ञापन ‘अपरिचित’ ने दिया।
