आसनसोल (संवाददाता)। लोकतंत्र का राग और पत्रकार को चौथा स्तम्भ का खिताब अब महज़ एक मज़ाक बन चुका है। चुनाव के पूर्व पत्रकारों को लाइन में लगकर और धक्का खाकर निर्वाचन आयोग द्वारा पहचान पत्र बनवाना पड़ता है। फिर उसी पहचान पत्र का ओकात मतदान के दिन पता चल जाता है। जब चुनाव अधिकारी और केंद्रीय बल उस पहचान पत्र को देखकर भी पत्रकारों के साथ कुत्तों जैसा व्यवहार करते है। अब सवाल यह उठता है कि पत्रकार को भी चुनाव अधिकारी और केंद्रीय वाहिनी की तरह सम्मान मिलना चाहिए अन्यथा, चौथा स्तम्भ अर्थात पत्रकार को एक कानून बनाकर चुनाव के दायित्व से मुक्त कर देना चाहिए, मंगलवार को दिन भर फ़ोटो नही खीचना है, वीडियो नही बनाना है, गाड़ी हटाइए, पोलिंग प्रतिशत नकहि बताएंगे। अब चुनाव आयोग के निष्ठावान अधिकारियों से सवाल पूछना चाहता हूँ, आप ही बता दीजिए पत्रकारों को क्या करना चाहिए, चुनाव आयोग और अधिकारियों की व्यवस्था लोकतंत्र में राजतंत्र की अनुभूति कराती है।