रानीगंज/। सिख वेलफेयर सेवा सोसाइटी के संस्थापक एवं आसनसोल सेंट्रल गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रमुख सरदार सुरजीत सिंह मक्कड़ ने कहा कि दशम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी साहिब ने होली के लिए पुलिंग शब्द होला मोहल्ला का प्रयोग किया गुरुजी इसके माध्यम से समाज के दुर्बल और शोषित वर्ग की प्रगति चाहते थे सिखों के लिए होला मोहल्ला बहुत ही महत्वपूर्ण है यहां पर होली पुरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाई जाती है घोड़े पर सवार निहंग हाथ में निशान साहिब उठाए तलवारों के करतब दिखाकर साहस पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं गुलाब के फूलों और गुलाब से बने रंगों की खेली जाती है होली सिख इतिहास तथा सिख धर्म में होले मोहल्ले की खास महत्व है इस बात का प्रतीक बन गया है कि आनंद परमात्मा के बिना अपूर्ण है और मन में प्रभु प्रेम से अधिक गाढ़ा रंग कोई और नहीं।
रानीगंज गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान सरदार बलजीत सिंह बग्गा ने कहा कि श्री गुरु गोविंद सिंह जी साहिब ने होली के त्यौहार को नया स्वरूप दिया लोगों को इस त्यौहार को परमात्मा के प्रेम रंग में सरोवर कर अधिक आनंद का स्वरूप दिया श्री गुरु ग्रंथ साहिब में होली का उल्लेख करते हुए प्रभु के संग रंग खेलने की कल्पना की गई है गुरबाणी के अनुसार परमात्मा की अनंत गुणों का गायन करते हुए प्रफुलता उत्पन्न होती है और मन आनंद से भर उठता है जब मनुष्य होली पर संतों की सेवा करते हुए मनाता है तो लाल रंग अधिक गहरा हो जाता है। बाहुला गुरुदवारा प्रबंधकीय कमेटी के प्रमुख पदाधिकारी सरदार हरजीत सिंह वाधवा ने कहा कि श्री गुरु गोविंद सिंह जी साहिब ने होली को आध्यात्मिकता के रूप में रंग दिया और उन्होंने इसे होला मोहल्ला का नाम दिया।