– डॉ उमेश प्रताप वत्स
भारत की तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने अपनी बहुत ही विलक्षण टीम के साथ दो वर्ष तक अथक, गहन अध्ययन के पश्चात एक ऐसी योजना तैयार की जिसके लागू होने पर सेना की अधिकतर समस्या का समाधान हो सके। इस योजना को अग्निपथ नाम दिया गया। जल,थल, वायु सेनाध्यक्षों ने इस योजना की अनुशंसा करते हुए रक्षामंत्री, गृहमंत्री एवं प्रधानमंत्री के पास स्वीकृति हेतु भेजा।
इस योजना के तहत सेना के तीनों अंगों में हर साल दो बार भर्तियां निकाली जाएंगी। इस साल सरकार ने 46 हजार अग्निवीरों की भर्ती का लक्ष्य रखा है। अगले वर्ष से लगभग 50 हजार भर्तियां हर साल होंगी। अभी तीनों सेनाओं में कमिशन रैंक के अतिरिक्त एनसीओ जैसे हवलदार, नायक और लांस नायक जैसे एक लाख 25 हजार पद खाली हैं। हालांकि इनमें कुछ पद जेसीओ के भी हैं। इसके अतिरिक्त कमिशन अधिकारियों के लगभग 10 हजार पद सेना के तीनों अंगों में खाली हैं। जिन्हें सरकार ने अगले कुछ वर्षों में भरने का लक्ष्य रखा है। इस समय भारत के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। चीन के पास 20 लाख सैनिकों की फौज है, भारत के पास साढ़े 14 लाख सैनिकों की फोज है। अमेरिका के पास 13 लाख 90 हजार सैनिक हैं और रूस के पास साढ़े आठ लाख सैनिकों की फौज है।
उल्लेखनीय है कि 24 जून से 46000 सैनिको के लिए अग्निवीर के रूप में भर्ती प्रारंभ हो जायेगी। सरकार ने इस योजना को युवाओं एवं देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण बताया किंतु कहीं न कहीं सरकार के प्रतिनिधि और सेना के उच्चाधिकारी युवाओं को यह समझाने में पूर्णतया सफल नहीं रहे कि इस योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है तथा यह योजना युवाओं के लिए कैसे लाभदायक सिद्ध होगी। तभी देश के कई भागों में अग्निपथ योजना के विरोध में युवा हिंसा व आगजनी पर उतर आये हैं। युवाओं के प्रारम्भिक रोष व क्रोध को देशविरोधी गुटों ने हाथों-हाथ लेते हुए इस नासमझ भीड़ को दिशा देना शुरु कर दिया और यह विरोध अग्निपथ योजना के स्थान पर मोदी के और उनके विधायक, सासंदों के विरुध्द हो गया। दंगाइयों की भीड़ ने रेलगाड़ी, बसें, सरकारी भवन, थानों के साथ-साथ मंत्रियों के घरों पर भी हमला कर दिया । यह बहुत ही आश्चर्यजनक है कि नौकरी की तलाश में युवा बेरोजगारों के हाथों में पत्थर, डंडों के साथ राइफल, रिवाल्वर कहां से आ गये? कौन है जो इस भीड़ को उग्र के साथ ही हिंसक बना रहा है? कौन इस भीड़ को नियंत्रित कर निर्देश दे रहा है? कौन पर्दे के पीछे से इन युवाओं के कंधे पर बंदूक रख फायर कर अपना राजनैतिक उल्लू सीधा कर रहा है? कैसे एकाएक सभी पार्टियों के तथाकथित नेता टीवी डिबेट में युवाओं के हमदर्द बनकर सेना की इस चिरप्रतीक्षित योजना को देश को बर्बाद करने वाली योजना सिद्ध करने पर तुले हुए हैं। देश की जनता के साथ-साथ विशेषरूप से हिंसक हो चुके इन युवाओं को यह सारा खेल समझना होगा।
2014 से सत्ता परिवर्तन के साथ जैसे ही गुजरात के यशस्वी मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित हो चुके नरेन्द्र मोदी ने देश में प्रधानमंत्री की कमान संभाली, तभी से देश विरोधी ताकतों में हडकंप मच गया। देशविरोधी गतिविधियों में संलिप्त गुटों में असुरक्षित होने का भय पसर गया। इंडिया टीवी के कार्यक्रम जनता की अदालत में तो यासीन मलिक ने कहा भी था कि देश में जो सरकार सत्ता में है, इंशाअल्लाह आगे की डगर बहुत कठिन है। इसी भय के कारण देश को सीमाओं पर, आर्थिक स्तर पर एवं धार्मिक दंगे-फसाद के माध्यम से आंतरिक स्तर पर जो विदेशी षड्यंत्रों के अन्तर्गत असंख्य गुट कमजोर करने में लगे हुए थे, वे सब आपसी मतभेद भूलाकर एक होते चले गए। उनका मानना था कि जब तक मोदी सरकार है, सब षड्यंत्र फेल है अतः हर गतिविधि का अंतिम लक्ष्य मोदी विरोध होना चाहिए। अर्बन नक्सलियों के बड़े नेताओं ने इन सबका नेतृत्व करने का बीड़ा उठाया। वे योजना बनाते और सभी देशविरोधी गुट योजनाओं को अंजाम देते। नोटबंदी और जीएसटी से नाराज लोग इन गुटों के मोहरे बने फिर सीएए और एनआरसी लागू करने के दौरान इन गुटों को देश में अराजकता फैलाने का अवसर मिल गया। मोहरा बना मुस्लिम समाज, जो इतना उग्र हो गया कि अर्ध सैनिक बलों को मोर्चा संभालना पड़ा। कोरोना काल में भी इन गुटों ने पूरे देश में अफरा-तफरी मचाने का बहुत प्रयास किया किंतु सरकार की सजगता के कारण इन्हें मायूसी ही हाथ लगी। फिर इनके हाथ बड़ा अवसर आया किसान आंदोलन के रूप में। इस बार मेहरा बना सिख समाज व हरियाणा – यूपी का जाट समाज। पूरी दुनिया ने देखा कि किस तरह देश की अस्मिता लाल किले पर चढ़कर नंगा नाच खेला गया। सुरक्षाकर्मियों को हिंसा का शिकार बनाया गया। ये गुट भली-भांति जानते थे कि सरकार किसानों पर एक्शन लेने का जोखिम नहीं उठायेगी। इस आंदोलन में खालिस्तान का प्रबंधन खुलकर सामने आया। सरकार को देश हित में किसान के भविष्य वाले तीनों बिल वापिस लेने पड़े। किसान आंदोलन के बाद इन अर्बन नक्सलियों को बड़े दिनों से कोई बड़ा मुद्दा हाथ नहीं लग रहा था किंतु ज्ञानव्यापी डिबेट के चलते हजरत मोहम्मद के बारे में नुपुर शर्मा द्वारा दिये गये ब्यान से इन्हें पुनः ऊर्जा मिली। सरकार जैसे-कैसे इस मुद्दे को संभालने का प्रयास ही कर रही थी कि आ बैल मुझे मार कहावत को साकार करते हुए अग्निपथ योजना के अन्तर्गत चार वर्ष के लिए हजारों नौकरियां देने की घोषणा कर युवा बेरोजगारों में भूचाल ला दिया। जिसे इन नक्सली गुटों ने मोहरा बनाकर जलजला बना दिया। कही न कही सरकार की नासमझी के कारण ही इन गुटों को बैठे-बैठाएं अराजकता फैलाने का सुनहरा अवसर मिल गया। सरकार ने 46000 अग्निवीरों की चार वर्ष के लिए भर्ती को जिस तरह अपनी उपलब्धि दिखाकर प्रस्तुत किया और चार वर्ष के बाद रिटायर्मेंट के बारे में बताया, यह किसी भी युवा के गले नहीं उतरा। सरकार को इस प्रकार प्रस्तुत करना चाहिए था कि, “हम देश के युवाओं को सेना में इंटरशिप की तरह निःशुल्क चार वर्ष की ट्रेनिंग करवायेंगे। फिर 11500 सैनिकों के लिए भर्ती निकाली जायेगी जिसमें ट्रेनिंग प्राप्त युवा ही आवेदन कर पायेंगे। रिटायर्मेंट की तो बात ही नहीं करनी चाहिए थी। इस प्रकार प्रस्तुतिकरण के बाद एक भी युवा सड़क पर नहीं निकलता ”
किसान आंदोलन के बाद यह दूसरी बार जल्दबाजी में लिया गया निर्णय सरकार के गले की फांस बनता जा रहा है। जबकि यह योजना बहुत ही श्रेष्ठ, सेना व देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है किंतु लॉन्च करने का ढंग बहुत ही दयनीय रहा है। देश भर में सेना की इस योजना के लेकर जिस तरह हिंसक विरोध हो रहा है। लाखों की भीड़ तोड़फोड़, पत्थरबाजी, आगजनी व फायरिंग कर रही है, लगता है कि इन सबकों सेना द्वारा फुलटाइम के लिए नियुक्ति पत्र दे दिया गया था, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बदलकर चार वर्ष का पार्ट टाइम नियुक्ति पत्र थमा दिया है। जिस कारण ये सब देश की संपत्ति को अग्नि की भेंट चढ़ाने को विवश हुए हैं।
ये क्यों नहीं समझते कि जिस प्रकार अन्य विभागों में कुछ स्थाई भर्ती निकाली जाती है और कुछ रिक्ति पूर्ती के लिए अस्थाई, जिन्हें कभी भी सेवामुक्त किया जा सकता है। यहां भी सेना को 11500 सैनिक स्थाई रूप से नियुक्त करने हैं और 34500 अस्थाई रूप से।
सेना और सरकार भी इस योजना को स्पष्ट करने में एकदम असफल रहे हैं। अग्निपथ योजना के अन्तर्गत अग्निवीर के रूप में चार वर्ष की लिए 46000 सैनिकों की भर्ती की जा रही है के स्थान पर बताना चाहिए था कि हम देश के सभी नागरिकों को सैन्य प्रशिक्षण देने के उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए 17 वर्ष से 21 वर्ष के 46000 युवाओं को सेना की निःशुल्क ट्रेनिंग देने जा रहे हैं तथा साथ में सैन्य सुविधाओं के साथ सम्मान राशि भी प्रदान की जायेगी। जो भी इस ट्रेनिंग में रूचि रखते हैं वे निश्चित तिथि तक आवेदन करें। चार वर्ष की ट्रेनिंग के बाद 11500 पदों पर रैगुलर भर्ती की जायेगी।
इस प्रकार की घोषणा से कोई भी युवा इसे नौकरी न मानकर अपरेंटिश, इंटरशिप की तरह ही ट्रेनिंग मानता। किंतु सेना के प्रवक्ता सिविल सोसायटी की नब्ज पहचानने में असमर्थ रहे और ना ही सरकार ठीक ढंग से इस विषय को स्पष्ट कर पायी जिसका परिणाम यह हुआ कि आज युवा लाल झंडे, दांती-हथोडे के चंगुल में एक बार फिर फंसकर रह गये हैं।
युवाओं को समझना चाहिए कि अग्निवीर को वे नौकरी न मानकर इंटरशिप ट्रेनिंग ही माने और उसके बाद स्थायी नौकरी के लिए अन्यत्र आवेदन करें।
पूरे विश्व में तीसरे विश्व-युद्ध की जबरदस्त आशंका बनी हुई है। रूस-युक्रेन युद्ध को चार महीने होने जा रहे हैं और ताइवान पर चीन भी गिद्ध दृष्टि जमाये बैठा है। ऐसे वातावरण में किसी भी देश की जनता विशेष रूप से युवा देश की सुरक्षा के लिए सेना को मजबूत करने का ही समर्थन करेंगे किंतु हमारे देश में इन अर्बन नक्सलियों ने इतना युवाओं में इतना जहर घोला हुआ है कि वे आगजनी के साथ-साथ सुरक्षाकर्मियों पर फायरिंग तक कर रहे हैं।
इस योजना से सरकार हथियारों की खरीद पर ज्यादा पैसा खर्च कर पाएगी। अब तक सरकार को रक्षा बजट का आधे से ज्यादा हिस्सा सैनिकों को सैलरी और पेंशन देने पर खर्च करना पड़ रहा है। वर्ष 2021 में भारत का रक्षा बजट 4 लाख 85 हजार करोड़ रुपये था। जिसमें से एक लाख 34 हजार करोड़ रुपये सरकार ने वेतन पर खर्च किए। एक लाख 28 हजार करोड़ रुपये पूर्व सैनिकों को पेंशन देने पर खर्च किए। केवल एक लाख 31 हजार करोड़ रुपये नए हथियारों को खरीदने पर खर्च किए गए। रक्षा बजट का 54 प्रतिशत हिस्सा केवल वेतन और पेंशन पर खर्च किया गया। जिससे सरकार चाह कर भी सेना के आधुनिकीकरण पर ज्यादा जोर नहीं दे पाती। लेकिन इस योजना के बाद इस खर्च को कम किया जा सकेगा। हमारे देश में इस समय सरकार 32 लाख पूर्व सैनिकों को पेंशन देती है और पेंशन का ये खर्च, वन रैंक-वन पेंशन स्कीम लागू होने से ओर अधिक बढ़ गया है।
इस योजना भारतीय सैनिकों की औसत उम्र कम हो जाएगी। जो वर्तमान में 32 वर्ष तक है जबकि अमेरिका के सैनिकों की औसतन उम्र 27 वर्ष और ब्रिटेन के सैनिकों की औसत उम्र 30 वर्ष है। हर वर्ष सेना के तीन अंगों में लगभग 50 हजार अग्निवीरों की भर्ती होगी। इस नए कदम से भारतीय सेना की औसत आयु 32 साल से घटकर 26 साल हो जाएगी। सेना किसी भी देश की सुरक्षा के लिए उसकी रीढ़ होती है। इसलिए सेना में देश के युवाओं को अवसर देने का अर्थ है सुदृढ़ सेना का गठन। युवाओं को भी समझना होगा कि इस अवसर को नौकरी न समझकर चार वर्ष की इंटरशिप ट्रेनिंग ही समझे तभी उनके मन में उपजी समस्याओं का समाधान होगा और देश जलने से बच सकेगा।