मणिकर्णिकाघाट पर चिता भस्म से भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी, औघड़, संन्यासी, शैव-साक्त ने खेली होली

वाराणसी, 04 मार्च । रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन शनिवार को मोक्षतीर्थ महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म की होली खेली गई। घाट पर धधकती चिताओं के बीच खेलें मसाने में होली दिगंबर गीत पर थिरकते हुए युवाओं की टोली ने हर-हर महादेव के गगनभेदी उद्घोष से मोक्षतीर्थ को गुंजायमान कर दिया।

काशी में मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के ससुराल पक्ष के अनुरोध पर रंगभरी एकादशी के दिन उनके गौने में पिशाच, भूत-प्रेत, चुड़ैल, डाकिनी-शाकिनी, औघड़, अघोरी, संन्यासी, शैव-साक्त सहित अन्य गण शामिल नहीं हो पाते हैं। बाबा तो बाबा हैं, औघड़ हैं, सभी के हैं और सभी पर एक समान कृपा बरसाते हैं। ऐसे में गौने में शामिल न हो पाने वाले अपने गणों को निराश नहीं करते हैं। उन्हें गौने के अगले दिन महाश्मशान मणिकर्णिका पर बुलाकर उनके साथ चिता भस्म की होली खेलते हैं।

इसी मान्यता को लेकर काशी में रंगभरी एकादशी के अगले दिन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर मशाने की होली खेली जाती है। मणिकर्णिकाघाट पर इस अद्भुत चिता भस्म की होली देखने और शामिल होने के लिए श्रद्धालु पूर्वान्ह से ही पहुंचने लगे थे।

मणिकर्णिका घाट स्थित बाबा महामशानेश्वर को विधिवत भस्म, अबीर, गुलाल और रंग चढ़ाकर डमरुओं की गूंज के बीच भव्य आरती की गई। इसके बाद आयोजन समिति से जुड़े पदाधिकारियों के साथ युवाओं की टोली जलती चिताओं के बीच आ गई और डमरुओं, नगाड़ों की थाप पर ‘हर हर महादेव’ के जयकारे के बीच चिता-भस्म की होली खेली गई। राग-विराग के इस अद्भुत नजारे को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद करने के लिए देशी विदेशी पर्यटक बेकरार दिखे।

आयोजक समिति के गुलशन कपूर ने बताया कि पिछले 22 वर्षों से इस परम्परा को भव्य रूप देकर इसे जन सहयोग से विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाने का प्रयास किया है। चिता भस्म की होली के पूर्व बाबा मशान नाथ की आरती कर जया,विजया,मिष्ठान्न व सोमरस का भोग लगाया जाता है। इसके बाद बाबा और माता (पार्वती) को चिता भस्म नीला गुलाल चढ़ाया जाता है। जैसा कि द्वारिका जी का संदेश था होली योगेश्वर श्रीकृष्ण और राधा का प्रिय त्यौहार है। हर का उत्सव बिना हरि के कैसे संभव है। इस कारण इस वर्ष हर और हरि के लिए भस्म के साथ नीला गुलाल,माता मशान काली को लाल गुलाल चढ़ाकर होली खेली गई।

शिवाराधना समिति के डॉ मृदुल मिश्र ने बताया कि रंगभरी एकादशी पर काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ जगत जननी गौरा पार्वती की विदाई कराकर पुत्र गणेश के साथ काशी पधारते हैं । तब तीनों लोक से देवगण उनके स्वागत सत्कार के लिए आते हैं। इस समारोह में भाग लेने से वंचित भोले के प्रिय भूत-पिशाच, दृश्य-अदृश्य आत्माएं पलक पावंड़े बिछाये चराचर जगत के स्वामी के इंतजार में रहती है। बाबा भी अपने प्रिय भक्तों के साथ रंगभरी एकादशी गौने के दूसरे दिन महाश्मशान पर होली खेलते पहुंचते हैं।

काशी में मान्यता है कि इस दौरान किसी न किसी रूप में महादेव महाश्मसान पर उपस्थित रहते हैं। औघड़दानी बनकर बाबा खुद महाश्मशान में होली खेलते हैं और मुक्ति का तारक मंत्र देकर सबको तारते हैं। इस नगरी में प्राण छोड़ने वाला व्यक्ति शिवत्व को प्राप्त होता है। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि महाश्मशान ही वो जगह है, जहां कई वर्षों की तपस्या के बाद महादेव ने भगवान विष्णु को संसार के संचालन का वरदान दिया था। इसी घाट पर शिव ने मोक्ष प्रदान करने की प्रतिज्ञा ली थी। यह दुनिया की एक मात्र ऐसी नगरी है जहां मनुष्य की मृत्यु को भी मंगल माना जाता है। यहां शव यात्रा में मंगल वाद्य यंत्रों को बजाया जाता है।

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